Manu Smriti
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स ताननुपरिक्रामेत्सर्वानेव सदा स्वयम् ।तेषां वृत्तं परिणयेत्सम्यग्राष्ट्रेषु तच्चरैः ।।7/122

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘जो नित्य घूमने वाला सभापति हो उसके अधीन सब गुप्तचर और दूतों को रखे, जो राज पुरूष और भिन्न - भिन्न जाति के रहें, उन से सब राज और प्रजा पुरूषों के सब दोष और गुण गुप्तरीति से जाना करे । जिनका अपराध हो उनको दंड और जिनका गुण हो उनकी प्रतिष्ठा सदा किया करें ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
वह (७।१२० में वर्णित) सचिव - मन्त्री उन निर्मित (७।१२१) सब सचिवालयों का सदा स्वंय घूम - फिरकर निरीक्षण करता रहे और देश में अपने दूतों के द्वारा वहंा नियुक्त राज पुरूषों के आचरण की गुप्तरीति से जानकारी प्राप्त करता रहे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वह राजा उन सब नगरों में सदा स्वयं पारी पारी घूमता रहे और तत्तत् भिन्न-भिन्न जाति के गुप्तचरों के द्वारा उन ग्रामपति आदि राजपुरुषों और प्रजाओं के गुण-दोषों को सम्यक्तया गुप्तरीति से जाना करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(स) वह राजा (तान सर्वान) उन सब पर सदा स्वयं (अनु परि का्रमेत) दौरा करता रहे। राष्ट्रो मे दूतो द्वारा (समयक भलीभाती (तेषा वृतम) उनके चालचलन को (परिणयेत) जनता रहे ।
 
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