Manu Smriti
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तेषां ग्राम्याणि कार्यानि पृथक्कार्याणि चैव हि ।राज्ञोऽन्यः सचिवः स्निग्धस्तानि पश्येदतन्द्रितः ।।7/120

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘और एक - एक, दश - दश सहस्त्र ग्रामों पर दो सभापति वैसे करें जिनमें एक राजसभा में और दूसरा अध्यक्ष आलस्य छोड़कर सब न्यायाधीश आदि राजपुरूषों के कामों को सदा घुमकर देखते रहें ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
उन पूर्वोक्त अध्यक्षों (११६ - ११७) के गांवों से सम्बद्ध राजकार्यों को और अन्य भिन्न - भिन्न कार्यों को भी राजा का एक विश्वासपात्र मन्त्री आलस्यरहित होकर देखे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा का एक प्रिय-विश्वस्त मन्त्री आलस्यरहित होकर उन ग्रामपति आदि सब पतियों के उन ग्राम-प्रबन्ध-सम्बन्धी कामों की देख-भाल किया करे। और, इसी प्रकार एक दूसरा विश्वस्त राजमन्त्री आलस्यरहित होकर न्यायाधीशों के, प्रबन्ध से पृथक्, न्यायसम्बन्धी कामों की जांच-पड़ताल किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
उनके ग्राम सम्बन्धी काम तथा अन्य कामों को राजा का एक प्यारा मन्त्री आलस्यर हित होकर किया करे ।
 
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