Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य झूँठे और अनुचित तर्क द्वारा वेद और शास्त्रों का अनादर करता है, वह नास्तिक है, उसको साधु लोग अपनी मण्डली से बाहर कर दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यः द्विजः जो कोई मनुष्य ते मूले वेद और वेदानुकूल आप्तग्रन्थों का हेतुशास्त्राश्रयात् तर्कशास्त्र के आश्रय से अवमन्येत अपमान करे सः उसको साधुभिः बहिष्कार्यः श्रेष्ठ लोग जातिबाह्य कर दें, क्यों कि वेदनिन्दकः जो वेद की निन्दा करता है नास्तिकः वही नास्तिक कहाता है ।
(स० प्र० दशम समु०)
‘‘जो तर्कशास्त्र के आश्रय से वेद और धर्मशास्त्र का अपमान करता अर्थात् वेद से विरूद्ध स्वार्थ का आचरण करता है, श्रेष्ठ पुरूषों को योग्य है कि उसको अपनी मण्डली से निकाल के बाहर कर देवें क्यों कि वह वेदनिन्दक होने से नास्तिक है ।’’
(द० ल० वे० ख० ४८)
‘‘जो वेद और वेदानुकूल आप्त पुरूषों के किये शास्त्रों का अपमान करता है, उस वेदनिन्दक नास्तिक को जाति, पंक्ति और देश से बाह्य कर देना चाहिये ।’’
(स० प्र० तृतीय समु०)
धर्म के चार लक्षण -
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः) जो (अवमन्येत) अपमान करे (ते मूले) इन दो धर्म के मूलों अर्थात् वेद और स्मृति का (हेतु शास्त्र-आश्रयात्) तर्क के आश्रय से (द्विजः) ब्राह्मण (स) वह (साधुभिः) साधुओं द्वारा (बहिष्कार्यः) निकाला जाना चाहिये। (नास्तिकः वेदनिन्दकः) नास्तिक वेद का निन्दक।
अर्थात् जो पुरुष कुतर्क से वेद और स्मृति की निन्दा करे उस वेद के निन्दक नास्तिक का भले आदमी बहिष्कार कर दें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः, जो द्विज (त्रैवणिंक) तर्कशास्त्र के आश्रय से उन धर्ममूल वेदों व आर्ष धर्मशास्त्रों का अपमान (त्याग व विरुद्धाचरण) करे, उसको श्रेष्ठ लोग जातिबाह्य कर दें, क्योंकि वेदनिन्दक (वेद का त्याग व विरुद्धाचरण करनेवाला) नास्तिक होता है।