Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
यस्तु भीतः परावृत्तः संग्रामे हन्यते परैः ।भर्तुर्यद्दुष्कृतं किं चित्तत्सर्वं प्रतिपद्यते ।।7/94
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य भय वश रण से परामुख होकर दूसरे के शस्त्र से घायनल होकर मारा जाता है वह अपने स्वामी के पाप को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और जो पलायन अर्थात् भागे और डरा हुआ भृत्य शत्रुओं से मारा जाये वह उस स्वामी के अपराध को प्राप्त होकर दण्डनीय होवे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो कायर युद्ध में पीठ दिखाने से शत्रुओं द्वारा पीटा जाता है, वह एक ऐसे निकम्मे भर्ता को, जो कुछ निरादर-अप्रतिष्ठा-दुःख आदि, दण्ड होता है, उस सब को पाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो डरकर भागता हुआ युद्ध मे शत्रु से मारा जाता है उसको अपने स्वामी किये हुए सब पापों का फल भोगना पडता है।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS