Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य भय वश रण से परामुख होकर दूसरे के शस्त्र से घायनल होकर मारा जाता है वह अपने स्वामी के पाप को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और जो पलायन अर्थात् भागे और डरा हुआ भृत्य शत्रुओं से मारा जाये वह उस स्वामी के अपराध को प्राप्त होकर दण्डनीय होवे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो कायर युद्ध में पीठ दिखाने से शत्रुओं द्वारा पीटा जाता है, वह एक ऐसे निकम्मे भर्ता को, जो कुछ निरादर-अप्रतिष्ठा-दुःख आदि, दण्ड होता है, उस सब को पाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो डरकर भागता हुआ युद्ध मे शत्रु से मारा जाता है उसको अपने स्वामी किये हुए सब पापों का फल भोगना पडता है।