Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रत्येक पुरुष को वेद और शास्त्र को ज्ञान दृष्टि से देखना और उन पर विश्वास रखना चाहिए तथा अपने धर्म पर दृढ़व्रत रखना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(विद्वान्) (विद्वान्) मनुष्य (इदं सर्वं तु निखिलं समवेक्ष्य) सम्पूर्ण शास्त्र वेद, सत्पुरूषों का आचार, अपने आत्मा के अविरूद्ध विचार कर (१।१२५ में वर्णित) ज्ञानचक्षुषा ज्ञान नेत्र करके श्रुतिप्रामाण्यतः श्रुतिप्रमाण से स्वधर्म वै निविशेत स्वात्मानुकूल धर्म में प्रवेश करे ।
(स० प्र० दशम समु०)
श्रुति - स्मृति -प्रोक्त धर्म के अनुष्ठान का पात्र -
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सर्वं तु समवेक्ष्य इदं निखिलं ज्ञानचक्षुषा) ज्ञान की आँख से इस सब को देखकर (श्रुति प्रामाण्यतः) वेद के प्रमाण से (विद्वान्) विद्वान् (स्वधर्मे निविशेत वै) अपने धर्म में प्रवेश करे।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
विद्वान मनुष्य ज्ञान-नेत्र से, धर्ममूल वेद, आर्ष स्मृति-शास्त्र, साधुजनों का आचार और आत्म-तुष्टि, इस सब को पूर्णतया भली प्रकार देख कर वेदप्रमाणता के आधार पर स्वात्मानुकूल धर्म में प्रवेश करे।