Manu Smriti
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सांवत्सरिकं आप्तैश्च राष्ट्रादाहारयेद्बलिम् ।स्याच्चाम्नायपरो लोके वर्तेत पितृवन्नृषु ।।7/80

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा अपने राज्य से अपना भाग प्रतिवर्ष लेवे, वेदाज्ञानुसार कार्य करे, सारी प्रजा का अपनी सन्तान की नाईं पालन करे तथा प्रजा उसको पिता के समान समझ कर उसकी आज्ञा माने।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वार्षिक कर आप्त पुरूषों के द्वारा ग्रहण करे और जो सभापतिरूप राजा आदि प्रधान पुरूष हंज वेसब सभा - वेदानुकूल होकर प्रजाके साथ पिता के समान वत्र्तें । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा प्रजा से वार्षिक कर आप्त पुरुषों के द्वारा वसूल करावे, और लोक में वेदाज्ञा पर तत्पर रहे, तथा प्रजाजनों में पितृवत् वर्ताव करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(आप्तैः च) होशियार आदमियों द्वारा (राष्ट्रात्) राज से (सांवत्सरिकम् बलिम् आहारयेत्) वर्ष भर की मालगुजारी को वसूल करावे। (लोके आन्नाय परः च स्यात्) लोक में वेद पर चलने वाला हो। (वर्तेत पितृवत् नृषु) प्रजा के साथ ऐसा बर्ताव करे जैसे पिता पुत्र के साथ करता है।
 
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