Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उस गृह में बस कर अपनी जाति की उत्तम कुल की कन्या से विवाह करें जो हृदय को प्यारी हो, रूपवती, गुणवती व सहृदय हो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इतना अर्थात् ब्रह्मचर्य से विद्या पढ़के यहां तक राज - काम करके पश्चात् सौन्दर्यरूप गुणयुक्त हृदय को अतिप्रिय बड़े उत्तम कुल में उत्पन्न सुन्दर लक्षणयुक्त अपने क्षत्रिय कुल की कन्या जो कि अपने सदृश विद्यादि गुण - कर्म - स्वभाव में हो उस एक ही स्त्री के साथ विवाह करे । दूसरी सब स्त्रियों को अगम्य समझकर दृष्टि से भी न देखे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा ऐसे राजभवन में आसीन होकर तत्पश्चात् अपने सद्श विद्यादि गुण-कर्म-स्वभाव वाली क्षत्रिय कुलवती, सुन्दर लक्षण-युक्ता, बड़े कुल में उत्पन्न, हृदय को अतिप्रिया और सौन्दर्यरूप-गुणयुक्ता स्त्री से विवाह करे। एवं अन्य सब स्त्रियों को अगम्य समझ कर उन पर कभी द्ष्टिपात भी न करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तत् अध्यास्य) ऐसे किले में निवास करके राजा ऐसी भार्या से विवाह करे जो (लक्षणान्विताम्) अच्छे लक्षण वाली हो (कुले महति संभूताम्) बडे कुल में उत्पन्न हुई हो और (हृद्याम्) मनोहर (रूपगुणान्विताम्) रूपवती हो।