Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
(1) जिसके चारों ओर पानी न हो, (2) जहाँ की भूमि ठंडी हो, (3) जिसके चारों ओर पानी हो, (4) जिसके चारों ओर वृ़क्ष हों, (5) जिसके चारों ओर वीर योद्धा बसते हों, (6) जिसके चारों ओर पहाड़ हों यह छः स्थान दुर्ग (कोट) के समान हैं, ऐसे स्थान पर राजा निवास करे जहाँ पर दूसरे की सेना न जा सके।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
धन्वदुर्ग - मरूस्थल में बना किला जहां मरूभूमि के कारण जाना दुर्गम हो महीदुर्ग - पृथिवी के अन्दर तहखाने या गुफा के रूप में बना किला या मिट्टी की बड़ी - बड़ी मेढ़ों से घिरा हुआ जलदुर्ग - जिसके चारों ओर पानी हो अथवा वृक्षदुर्ग - जो घने वृक्षों के वन से घिरा हो नृदुर्ग - जो सेना से घिरा रहे, जिसके चारों ओर सेना वा निवास हो अथवा गिरिदुर्ग - पहाड़ के ऊपर बना या पहाड़ों से घिरा किला बनाकर और उसका आश्रय करके अपने निवास में रहे ।
टिप्पणी :
महर्षि दयानन्द ने ‘धन्वदुर्गम्’ के स्थान पर ‘धनुदुर्गम्’ पाठ लेकर इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार किया है -
‘‘इस लिए सुन्दर जंगल धन - धान्य युक्त देश में धनुर्धारी पुरूषों से गहन मिट्टी से किया हुआ जल से घेरा हुआ अर्थात् चारों ओर वन चारों ओर सेना रहे अर्थात् चारों ओर पहाड़ों के बीच में कोट बना के इस के मध्य में नगर बनावे ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
बड़ी दूर तक सर्वथा जलविहीन मरुभूमि से घिरे हुए, अथवा प्राकार-प्रकोष्ठ से घिरे हुए, अथवा नदी-नद आदिकों के जल से घिरे हुए, अथवा वृक्षों के सघन झुण्डों से घिरे हुए, अथवा सशस्त्र सेना से घिरे हुए, अथवा पर्वतमाल से घिरे हुए किसी दुर्गम स्थान का आश्रय लेकर उपर्युक्त सुन्दर प्रदेश में राजा अपनी राजधानी बनावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
न्गर को इस प्रकार सुरक्षित करे:- धन्वदुर्ग - (अस्त्रशस्त्रों से अभिरक्षित - Fortified by artillery), मही दुर्ग (भूमि इस प्रकार हो कि बाहर का आक्रमण न हो सके - जैसे धुस् किले होते है। गोला बाहर से आकर भूमि मे ही धँस जाता है।) अब्दुर्ग (पानी की खाई चारों ओर हो), वाक्र्षम् (चारों ओर धना जंगल हो नृदुर्ग (सेना से घिरा हो) गिरिदुर्ग (पहाड़ से घिरा हो)।