Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस देश में अल्प जल व घास हो, तथा वायु, धूप व अन्न अधिक हो उसे जांगल कहते हैं। उसमें तथा जिस देश में सज्जन पुरुष हों, नीरोग हों, जो फल फूल व लतादि से मनोहर हो जहाँ की प्रत्येक दिशा के मनुष्य विनीत हों, जहाँ कृषि व्यापारादि धन प्राप्ति के साधन सरलता से प्राप्त हो सकें ऐसे देश में राजा निवास करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. राजा जांगल प्रदेश (जहां उपयुक्त पानी बरसता हो, बाढ़ न आती हो, खुली हवा और सूर्य का पर्याप्त प्रकाश हो, धान्य आदि बहुत उत्पन्न होता हो) हरा - भरा श्रेष्ठ लोगों का बाहुल्य रोगरहित रमणीय विनम्रता का व्यवहार करने वाले निवासी आजीविकाओं से सम्पन्न जो हो ऐसे देश में निवासस्थान करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१. अल्पोदकतृणो यस्तु प्रवातः प्रचुरातपः। स ज्ञेयो जाङ्गलो देशो बहुधान्यादिसंयुतः॥ अर्थात्, जांगल देश वह कहलाता है जहां जल व घास-फूस अत्यधिक न हो, वायु का संचार पर्याप्त हो, प्रचुर धूप पड़ती हो, और बहुतायत से धान्यादिक पैदा होते हों।
टिप्पणी :
जो प्रदेश सुन्दर जंगल से युक्त हो, जहां प्रचुर सस्य उत्पन्न होते हों, जहां अधिकतर धार्मिक आर्य लोग वसते हों, जहां किसी प्रकार के रोगादि उपद्रवों का भय न हो, जो फल-फूल-लताओं से रमणीक हो, जहां आस पास के रहने वाले सब लोग विनीत हों, और जहां सुगमतया जीवन-निर्वाह हो सकता हो, ऐसे प्रदेश में राजा निवास करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
राजा अपने महल ऐसे स्थान में बनावे, जहाँ जंगल हों, अन्न पर्याप्त हो, अच्छे पुरूष रहते हों रोग आदि उपद्रवों का डर न हों रम्य हो, निकट के लोग उनका आरद करते हो और जहाँ कला कौशल की उन्नति हो सकती हो।