Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अन्य राजाओं के चित्त का सत्य तत्व (वृत्तन्त) अपने प्रयत्न से ज्ञात करें, तथा ऐसा उपाय करें जिससे अपनी आत्मा को पीड़ा (दुःख) न पहुँचे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वह सभापति और सब सभासद् वा दूत आदि यथार्थ से दूसरे विरोधी राजा के राज्य का अभिप्राय जान कर वैसा यत्न करे कि जिससे अपने को पीड़ा न हो ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार राजा दूत-द्वारा यथार्थरूप से दूसरे विरोधी राजा के राज्य का सब अभिप्राय जानकर ऐस प्रयत्न करे कि जिस से स्व-राष्ट्र पर कोई संकट न आवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सर्वम् परराजचिकीर्षितम् च तत्वेन बुद्धवा) दूसरे के राज के विचारों को ठीक-ठीक जानकर (तथा प्रयत्नं आतिष्ठेत्) ऐसा प्रयव करे (गथा आत्मानम् न पीडयेत्) जिससे अपने राज्य को किसी प्रकार की हानि न पहुँचा सके।