Manu Smriti
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अनुरक्तः शुचिर्दक्षः स्मृतिमान्देशकालवित् ।वपुष्मान्वीतभीर्वाग्मी दूतो राज्ञः प्रशस्यते ।।7/64

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा के निमित्त ऐसे दूत की आवश्यकता है जो राजा का मित्र, स्वामी को प्रसन्न रखने वाला, शुचि, दक्ष, प्रत्येक बात स्मरण रखने वाला देशकालज्ञाता, सुरूपवान (सुन्दर) सुवार्तालाप करने वाला, तथा निडर हो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. वह ऐसा हो कि राज - काम में अत्यन्त उत्साह प्रीतियुक्त निष्कपटी, पवित्रात्मा चतुर बहुत समय की बात को भी न भूलने वाला देश और कालानुकूल वर्तमान का कत्र्ता सुन्दररूपयुक्त निर्भय, और बड़ा वक्ता वही राजा का दूत होने में प्रशस्त है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, राज-काम में अत्यन्त उत्साह-प्रीतियुक्त, निष्कपटी पवित्रात्मा, चतुर, चिरकाल की बात को भी न भूलने वाला, देश-काल के अनुसार काम करने वाला, सुन्दर रूपयुक्त, निर्भय और कुशल वक्ता राजदूत प्रशस्त है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ऐसे दूत राजा के लिये हितकर हैः- अनुरक्त अर्थात् राजा से प्रेम करने वाला, शुचि - हृदय वाला, दक्ष- चतुर, स्मृतिमान्- अच्छी स्मृतिवाला, देशकाल का पहचानने वाला, (वपुष्मान्) शरीर में हृष्ट-पुष्ट, (वीतभी) न डरने वाला (वाग्मी) उचित रीति से बातचीत करने वाला।
 
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