Manu Smriti
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दूतं चैव प्रकुर्वीत सर्वशास्त्रविशारदम् ।इङ्गिताकारचेष्टज्ञं शुचिं दक्षं कुलोद्गतम् ।।7/63

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य शास्त्र विशारद (ज्ञाता), सैन व आकार (रूप) को समझने वाला, शुद्ध व पवित्र, नतुर (दत्त) तथा कुलवान् हों उनको दूत नियम करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो प्रशंसित कुल में उत्पन्न चतुर पवित्र हावभाव और चेष्टा से भीतर हृदय और भविष्यत में होने वाली बात को जानने हारा सब शास्त्रों में विशारद चतुर है उस दूत को रक्खे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
‘‘तथा जो सब शास्त्र में निपुण नेत्रादि के संकेत, स्वरूप तथा चेष्टा से दूसरे के हृदय की बात को जानने हारा, शद्ध, बड़ा स्मृतिमान्, देश, काल जानने हारा, सुन्दर, जिसका स्वरूप बड़ा वक्ता और अपने कुल में मुख्य हो, उस और स्वराज्य और परराज्य के समाचार देने हारे अन्य दूतों को भी नियत करे ।’’ (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसी प्रकार राजा एक दूत को नियुक्त करे जोकि सब शास्त्रों में चतुर, हाव-भाव-चेष्टा (इशारा-मुखविकृति-चेष्टा) से हृदयस्थ और भविष्यत् में होने वाली बात को जानने वाला, पवित्र, दक्ष और प्रशंसित कुल में उत्पन्न हुआ हो।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ऐसों को दूत बनावे:- सब शात्र के जानने वाले, इशारों से ही समझने वाले, शुद्ध हृदय वाले चतुर और अच्छे कुल वालें।
 
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