Manu Smriti
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दण्डस्य पातनं चैव वाक्पारुष्यार्थदूषणे ।क्रोधजेऽपि गणे विद्यात्कष्टं एतत्त्रिकं सदा ।।7/51

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
1-क्रोध द्वारा उत्पन्न व्यसनों में दण्ड से हनन करना, 2-कटु भाषण, 3-देने योग्य पदार्थ को न देना यह तीन सदैव निकृष्ट हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. और क्रोधजो में बिना अपराध दण्ड देना कठोर वचन बोलना और धन आदि का अन्याय में खर्च करना ये तीन क्रोध से उत्पन्न हुए बडे दुःखदायक दोष हैं । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसी प्रकार क्रोधजन्य दुर्व्यसनों में भी बिना अपराध दण्ड देना, कठोर वचन बोलना, तथा बुरे कामों में धन लगाना, इस तिकड़ी को सदा अत्यन्त कष्टकारी महादुष्ट दुर्व्यसन समझना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(क्रोधजे अपि गणे) क्रोध से उत्पन्न हुए दोषों में (एतत् त्रिकम् सदा कष्टतमम् विद्यात्) इन तीन को सब से कठिन जान-(1) दण्डस्य पातनं- पीटता (2) गाली देना (3) धन ले लेना ।
 
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