Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
काम द्वारा उत्पन्न दोषों में, मद्य पीना, पाँसा खेलना, स्त्री वशीभूति होना, आखेट खेलना, यह चारों यथाक्रम (एक दूसरे से) निकृष्ट हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
काम के व्यसनों में बड़े दुर्गुण, एक मद्य आदि अर्थात् मदकारक द्रव्यों का सेवन, दूसरा - पासों आदि से जुआ खेलना, तीसरा - स्त्रियों का विशेष संग, चैथा - मृगया (शिकार) खेलना ये चार महादुष्ट व्यसन हैं ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
क्रम से पूर्व - पूर्व के अधिकाधिक...................
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उन कामोत्पन्न व्यसनों में मादक द्रव्यों का पान, जूआ खेलना, स्त्रियों का अति संग, और शिकार करना, इस चौकड़ी को क्रमानुसार अत्यन्त दुःखदायी महादुष्ट दुर्व्यसन समझना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(कामजे गणे) काम से उत्पन्न हुए दोषों में (एतत् चतुष्कम् कष्टतमम् विद्यात्) इन चारों दोषों को सब से बडा़ समझेः-
पनम्-शराब पीना, अक्षाः--जुआ खेलना, स्त्रियः -- स्त्रियों का संसर्ग, मृगया- शिकार। क्रमानुसार अर्थात् सब से कठोर नशा है, उससे कम जुआ, उससे कम स्त्री-संग, उससे कम शिकार।