Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दश दोष काम से उत्पन्न होते हैं, आठ दोष क्रोध से उत्पन्न होते हैं। इन अठारह दोषों को प्रयत्न करके परित्याग करना उचित है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
दृढ़ोत्साही होकर जो काम से दश और क्रोध से आठ दुष्ट व्यसन कि जिनमें फंसा हुआ मनुष्य कठिनता से निकल सके उनको प्रयत्न से छोड और छुड़ा देवे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसलिए राजा को चाहिए कि वह दस काम से उत्पन्न होने वाले और आठ क्रोध से पैदा होने वाले दुर्व्यसनों को, कि जिन में फंसा हुआ मनुष्य बड़ी कठिनता से निकल पाता है, प्रयत्न से छोड़ देवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
काम से उत्पन्न हुए दस, क्रोध से उत्पन्न हुए आठ, कठिन दुव्र्यसनों को सत्नपूर्वक छोड़ दे