Manu Smriti
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विद्वद्भिः सेवितः सद्भिर्नित्यं अद्वेषरागिभिः ।हृदयेनाभ्यनुज्ञातो यो धर्मस्तं निबोधत । 2/1

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राग-द्वेष (शत्रुता-मित्रता) रहित उत्तम पण्डित लोगों ने धर्म का पक्ष लिया है और वह धर्म कल्याणदाता है। उस धर्म को हम से सुनिये -
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. अद्वेषरागिभिः सद्भिः विद्वद्भिः नित्यं सेवितः जिसका सेवन रागद्वेष - रहित श्रेष्ठ विद्वान् लोग नित्य करें यो हृदयेन अभ्यनुज्ञातः धर्मः जिसको हृदय अर्थात् आत्मा से सत्य कत्र्तव्य जाने वही धर्म माननीय और करणीय है । तं निबोधत उसे सुनो । (स० प्र० दशम समु०) ‘‘जिसको सत्पुरूष रागद्वेषरहित विद्वान् अपने हृदय से अनुकूल जानकर सेवन करते हैं , उसी पूर्वोक्त को तुम लोग धर्म जानो ।’’ (सं० वि० गृहा० प्र०) सकामता - अकामता विवेचन -
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(विद्वद्भिः) विद्वानों से (सेवितः) पालन किया हुआ (सद्भिः) सत् पुरुषों से (नित्यम्) सदा (अद्वेषरागिभिः) राग द्वेष रहित (हृदयेन) हृदय से (अभि-अनुज्ञातः) जाना हुआ (यः धर्मः) जो धर्म है (तं निबोधत) उसको जानिये। जिस धर्म का पालन सदा विद्वान, राग-द्वेष दोषों से मुक्त सत्पुरुष समझ बूझकर किया करते हैं उस धर्म को आप सुनिये।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राग द्वेष से रहित सच्चे विद्वानों ने जिस धर्म का नित्य सेवन किया और जिसे हृदय से सत्कर्तव्य जाना, उसे मानवीय और करणीय समझे।१
 
USER COMMENTS
Comment By: Jagdish pant
Hum bhi karte rahenge
Comment By: rambhrosh
Agree
 
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