Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राग-द्वेष (शत्रुता-मित्रता) रहित उत्तम पण्डित लोगों ने धर्म का पक्ष लिया है और वह धर्म कल्याणदाता है। उस धर्म को हम से सुनिये -
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. अद्वेषरागिभिः सद्भिः विद्वद्भिः नित्यं सेवितः जिसका सेवन रागद्वेष - रहित श्रेष्ठ विद्वान् लोग नित्य करें यो हृदयेन अभ्यनुज्ञातः धर्मः जिसको हृदय अर्थात् आत्मा से सत्य कत्र्तव्य जाने वही धर्म माननीय और करणीय है । तं निबोधत उसे सुनो ।
(स० प्र० दशम समु०)
‘‘जिसको सत्पुरूष रागद्वेषरहित विद्वान् अपने हृदय से अनुकूल जानकर सेवन करते हैं , उसी पूर्वोक्त को तुम लोग धर्म जानो ।’’ (सं० वि० गृहा० प्र०)
सकामता - अकामता विवेचन -
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(विद्वद्भिः) विद्वानों से (सेवितः) पालन किया हुआ (सद्भिः) सत् पुरुषों से (नित्यम्) सदा (अद्वेषरागिभिः) राग द्वेष रहित (हृदयेन) हृदय से (अभि-अनुज्ञातः) जाना हुआ (यः धर्मः) जो धर्म है (तं निबोधत) उसको जानिये।
जिस धर्म का पालन सदा विद्वान, राग-द्वेष दोषों से मुक्त सत्पुरुष समझ बूझकर किया करते हैं उस धर्म को आप सुनिये।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राग द्वेष से रहित सच्चे विद्वानों ने जिस धर्म का नित्य सेवन किया और जिसे हृदय से सत्कर्तव्य जाना, उसे मानवीय और करणीय समझे।१