Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
(1) इन्द्र, (2) यमराज, (3) वायु, (4) सूर्य, (5) अग्नि, (6) वरुण, (7) चन्द्रमा, (8) कुबेर, इन आठों के अंश से श्री ब्रह्माजी ने राजा को उत्पन्न किया।
टिप्पणी :
राजा के आठ कार्य हैं-1. इन्द्र से पालन, 2. यमराज से न्याय, 3. सूर्य से प्रकाश अर्थात् शिक्षोन्नति, 4. अग्नि से पवित्रवेद को पृथक करना, 5. चन्द्रमा से प्रजा को प्रसन्न करने का प्रयत्न करना, 6. वरुण से शांति स्थापित करना, 7. कुबेर से धन की रक्षा करना।
1-श्लोक 10 में रूप धारण करने से यह तात्पर्य है कि राजा पालन करने के समय इन्द्र व न्याय समय यमराज तथा शिक्षा प्रचार के समय सूर्य आदि का रूप हो जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह सभेश राजा इन्द्र अर्थात् विद्युत् के समान शीघ्र ऐश्वर्यकत्र्ता वायु के समान सबको प्राणवत् प्रिय और हृदय की बात जानने हारा यम - पक्षपातरहित न्यायाधीश के समान वत्र्तने वाला सूर्य के समान न्याय धर्म विद्या का प्रकाशक, अंधकार अर्थात् अविद्या अन्याय का निरोधक अग्नि के समान दुष्टों को भस्म करने हारा वरूण अर्थात् बांधने वाले के सदृश दुष्टों को अनेक प्रकार से बांधने वाला चन्द्र के तुल्य श्रेष्ठ पुरूषों को आनन्ददाता, धनाध्यक्ष के समान कोशों का पूर्ण करने वाला सभापति होवे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
इनकी स्वाभाविक मात्राओं - अंशों का सार लेकर ‘राजा’ के व्यक्तित्व का निर्माण किया है । (‘च’ से पूर्वश्लोक की क्रिया की अनुवृत्ति है) ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह राजा इन्द्र, अनिल, यम, अर्क, अग्नि, वरुण, चन्द्र और वित्तेश, इनकी निरन्तर रहने वाली मात्रायों, अर्थात् गुण धर्मों को लेकर बनाया गया है। अतः, राजा को विद्युत् के समान आशुकारी, वायु के समान सब का प्राणप्रि, मृत्यु के समान न्यायकारी, सूर्य के समान न्याय-धर्म-विद्या का प्रकाशक और अविद्या-अन्याय-अन्धकार का निरोधक तथा प्रतापी, अग्नि के समान दुष्टों को भस्म करने वाला, मेघ के समान विद्यामृत-वर्षक, चन्द्र के समान श्रेष्ठपुरुषों को शान्ति-आनन्द देने वाला, और पूर्णिमा के समान पूर्ण तेजस्वी कोशयुक्त होना चाहिये।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
राजा को इन इन गुणों का सार इकठ्टा करके बनायाः-इन्द्र, अनिल (वायु), यम, अर्क (सूर्य), अग्नि, वरूण, चन्द्र, विक्षेश,(कुबेर)।
अर्थात् राजा मे यह सब गुण पाये जाने चाहिये।