Manu Smriti
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सर्वेषां अपि चैतेषां वेदस्मृतिविधानतः ।गृहस्थ उच्यते श्रेष्ठः स त्रीनेतान्बिभर्ति हि ।।6/89

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वेदों और स्मृतियों में कहे अनुसार इन सब आश्रमों में गृहस्थ सबसे महत्त्वपूर्ण या श्रेष्ठ है क्यों कि वह इन तीनों को ही धारण करता है अर्थात् उत्पत्ति और जीवन यापन की दृष्टि से ये तीनों आश्रम गृहस्थाश्रम पर आश्रित हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यासी, ये चारों पृथक्-पृथक् आश्रम गृहस्थश्रम से उत्पन्न होते हैं। इसलिए, वेद और स्मृति के प्रमाण से इन सभी आश्रमों के बीच में गृहस्थाश्रम श्रेष्ठ कहलाता है, क्योंकि यही आश्रम ब्रह्मचारी आदि अन्य तीनों आश्रमों का धारण-पालन करता है। (सं० वि० गृहाश्रम)।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
वेद और स्मृति के विधानानुसार इन चारों में गृहस्थ सबसे श्रेष्ठ है, क्योंकि यह शेष तीनों का पालन करता है।
 
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