Manu Smriti
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अनेन क्रमयोगेन परिव्रजति यो द्विजः ।स विधूयेह पाप्मानं परं ब्रह्माधिगच्छति ।।6/85

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य इस विधि से सन्यास धारण करता है वह इस लोक में पाप से विमुक्त होकर परलोक में परब्रह्म को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस क्रमानुसार संन्यास - योग से जो द्विज अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य संन्यास ग्रहण करता है वह इस संसार और शरीर में सब पापों को छोड़ - छुड़ाके परब्रह्म को प्राप्त होता है । (सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस, क्रमानुसार संन्यास-योग, से जो द्विज, अर्थात् ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य, संन्यास ग्रहण करता है, वह इस संसार से और इस शरीर से सब पापों को छुड़ा-छोड़ के परब्रह्म को प्राप्त होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो ब्राहम्ण इस क्रमयोग से संन्यासी होता है, वह पापों को नष्ट करके पर ब्रह्म का प्राप्त होता है।
 
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