Manu Smriti
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अलाभे न विषदी स्याल्लाभे चैव न हर्षयेत् ।प्राणयात्रिकमात्रः स्यान्मात्रासङ्गाद्विनिर्गतः ।।6/57

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. भिक्षा के न मिलने पर दुःखी न हो और मिलने पर प्रसन्नता अनुभव न करे अधिक - कम, अच्छी - बुरी भिक्षा की मात्रा का मोह न करके अर्थात् जैसी भी भिक्षा मिल जाये उसे ग्रहण करके केवल अपनी प्राणयात्रा को चलाने योग्य भिक्षा प्राप्त कर ले ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अलाभे न विषादी रयात्) भीख न मिले तों दुखी न हो। (लाभे च एव न हर्षयेत्) मिलने पर हर्ष न करे, (प्राणि यात्रिक मात्रः स्यात्) केवल इतना खाय कि जीवन-यात्रा बनी रहे। (मात्र संगात् विनिर्गतः) विषय के संग से बचा रहे।
 
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