Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बाल तथा हड्डी से पृथक् रहने के हेतु भूमि पर देखकर पाँव रक्खें। छोटे-छोटे जीवों के रक्षार्थ छान कर जल पीवें, सत्य वचनों ही को बोलें, मन को इच्छा से रहित रखकर प्रत्येक समय पवित्रात्मा रहें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जब संन्यासी मार्ग में चले तब इधर - उधर न देख कर नीचे पृथिवी पर दृष्टि रखके चले सदा वस्त्र से छान के जल पिये निरन्तर सत्य ही बोले सर्वदा मन से विचार के सत्य का ग्रहण कर असत्य को छोड़ देवे ।
(स० प्र० पंच्चम समु०)
टिप्पणी :
‘‘चलते समय आगे - आगे देखके पग धरे, सदा वस्त्र से छानकर जल पीवे, सबसे सत्य वाणी बोले अर्थात् सत्योपदेश ही किया करे, जो कुछ व्यवहार करे वह सब मन की पवित्रता से आचरण करे ।’’
(सं० वि० सन्यासाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जब संन्यासी मार्ग पर चले तब इधर-उधर न देखकर नीचे पृथिवी पर द्ष्टि रख के चले, सदा वस्त्र से छान के जल पीवे, निरन्तर सत्य ही बोले, और सर्वदा मन से विचार के सत्य का ग्रहण कर असत्य को छोड़ देवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(घ्ष्टिपूतं पादं न्यसेत्) घ्ष्टि से पवित्र करके पैर रक्खे अर्थात् देखकर चले, वस्त्र से छानकर जल पिये। सत्य से पवित्र करके वाणी बोले । मन अर्थात् ज्ञान से पवित्र करके (अर्थात् विचार पूर्वक) आचरण करें।