Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शरीर-शुद्धि के लिये तथा तप बढ़ाने के लिये उस विद्या का सेवन करें जिस विद्या का सेवन ऋषि तथा गृहस्थ ब्राह्मणों ने किया है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अनेक ऋषियों, ब्राह्मणों और गृहस्थों ने विद्या और तप की वृद्धि के लिए और शरीर की शुद्धि के लिए इन श्रुतियों का सेवन किया है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि विद्या-तप की अभिवृद्धि और शरीर की शुद्धि के लिए तत्त्वदर्शी संन्यासियों, ब्रह्मचारियों, और गृहस्थों से भी इन्हीं श्रुतियों का अभ्यास किया जाता है, अतः वनस्थ को भी इन्हीं का चिन्तन होना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
विद्या और तप की वृद्धि तथा शरीर की शुद्धि के लिये यह उपनिषदों के नियम तो ऋषियों, ब्राह्मणों और गृहस्थों को भी पालने चाहिये।