Manu Smriti
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तापसेष्वेव विप्रेषु यात्रिकं भैक्षं आहरेत् ।गृहमेधिषु चान्येषु द्विजेषु वनवासिषु ।।6/27

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तपस्वी ब्राह्मण से भिक्षा माँगें, अथवा जो वन वासी द्विज गृहस्थ हैं, उनसे भी भिक्षा याचन करें (मांगें)।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो जंगल में पढ़ाने और योगाभ्यास करने हारे तपस्वी, धर्मात्मा विद्वान् लोग रहते हों । जो कि गृहस्थ वा वानप्रस्थ वनवासी हों, उनके घरों में से ही भिक्षा ग्रहण करे । (सं० वि० वानप्रस्थाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
आवश्यकता पड़ने पर, जो जंगल में पढ़ाने और योगाभ्यास करने वाले तपस्वी धर्मात्मा विद्वान् लोग रहते हों, जोकि गृहस्थ वा वानप्रस्थ वनवासी हों, उनसे प्राणरक्षार्थ भिक्षा ग्रहण करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ब्राह्मणों से अत्यावश्यक भिक्षा ले लेवें। (गृहमेधिष च अन्येषु) अन्य गृहस्थों से भी, (द्विजेषु वनवासिषु) यदि कोई जंगल में बसा हुआ ब्राह्मण हो, तो उससे भी ले लें।
 
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