Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जब मनुजी ने देखा कि आचार से ही धर्म प्राप्त होता है, तब सब तपों का मूल जो आचार है, उसी को अपनाया।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. एवम् इस प्रकार आचारतः धर्माचरण से ही धर्मस्य धर्म की गतिम् प्राप्ति एवं अभिवृद्धि दृष्ट्वा देखकर मुनयः मुनियों ने सर्वस्य तपसः परं मूलम् सब तपस्याओं का श्रेष्ठ मूल आधार आचारम् धर्माचरण को ही जगृहुः स्वीकार किया है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एवम्) इस प्रकार (आचारतः) आचार की अपेक्षा से (दृष्टवा) देखकर (धर्मस्य) धर्म के (मुनयः) मुनि लोगों ने (गतिम्) गति को (सर्वस्य तपसः) सब तप के (मूलम् आचारम्) मूल आचार को (जगृहुः) ग्रहण किया (परम्) बड़े को।
इस प्रकार मुनियों ने धर्म की गति को सदाचार की अपेक्षा से देखकर सब तप के मूल सदाचार का ग्रहण किया।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार मुनियों ने धर्माचरण से धर्म के प्रवर्तन का देख कर सब प्रकार की तपस्या के मूल श्रेष्ठ आचार को ग्रहण किया।