Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो वस्तु भोजन के लिये उपस्थित हो उसी से बलि वैश्य कर्म करें और उसी को ब्रह्मचारी आदि को भिक्षा देवें, तथा जो अतिथि घर पर आ जावें उसकी कन्द, मूल, जल, फल आदि से पूजा करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो भी खाने का पदार्थ हो उससे ही बलिवैश्वदेव यज्ञ करे और यथाशक्ति भिक्षा भी दे आश्रम में आये अतिथियों को जल, कन्दमूल, फल आदि प्रदान करके उनका सत्कार करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, जो भक्ष्य विद्यमान हो, उसी में से यथाशक्ति बलि और भिक्षा दे। इस प्रकार आश्रम में आए अतिथियों को जल, कन्द, मूल, फलों की भिक्षा से सत्कृत करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यद् भक्ष्यं स्यात्) जो कुछ खाने योग्य पदार्थ हो (ततः) उसमें से (शक्तितः) अपनी शक्ति के अनुसार (बलि भिक्षा च दद्यात्) बलि और भिक्षा दे। बलि का अर्थ है प्राणियों का भोजन। (आश्रम + आगतान्) आश्रम में आये हुओं का (अप्, मूल, फल, भिक्षाभिः) जल, मूल, फल आदि से (अर्चयेत्) सत्कार करे।