Manu Smriti
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अग्निहोत्रं समादाय गृह्यं चाग्निपरिच्छदम् ।ग्रामादरण्यं निःसृत्य निवसेन्नियतेन्द्रियः ।।6/4

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अग्निहोत्र को तथा सामिग्री सहित घर की अग्नि को लेकर और इन्द्रिय जीत होकर गाँव का परित्याग कर वन में रहें। सामथ्र्य भर (अर्थात् जहाँ तक हो सके) किसी नगर में न जावें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब गृहस्थ वानप्रस्थ होने की इच्छा करे तब अग्निहोत्र को सामग्री - सहित लेके गांव से निकल जंगल में जितेन्द्रिय होकर निवास करे । (सं० वि० वानप्रस्थाश्रम सं०)
टिप्पणी :
‘‘सांगोपांग अग्निहोत्र को लेकर ग्राम से निकल दृढ़ेन्द्रिय होकर अरण्य में जाकर बसे ।’’ (स० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वन जाते समय हवनकुण्ड तथा अग्निहोत्र-सम्बन्धी अन्य सब गृहस्थ के उपकरण लेकर गांव से निकल जंगल में, जितेन्द्रिय होकर, निवास करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अग्निहोत्रम्) अग्निहोत्र (गृहयं च अग्निपरिच्छदम्) और होम सम्बन्धी पात्रों को (समादाय) लेकर (ग्रामात्) बस्ती से (अरण्यं निःसृत्य) वन में जाकर (नियतेन्द्रियः निवसेत्) जितेन्द्रिय होकर रहे।
 
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