माई भगवती जीः प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

माई भगवती जीः ऋषि के पत्र-व्यवहार में माई भगवती जी का भी उल्लेख है। ऋषि मिशन के प्रति उनकी सेवाओं व उनके जीवन के बारे में अब पंजाब में ही कोई कुछ नहीं जानता, शेष देश का क्या कहें? पूज्य मीमांसक जी की पादटिप्पणी की चर्चा तक ही हम सीमित रह गये हैं। पंजाब में विवाह के अवसर पर वर को कन्या पक्ष की कन्यायें स्वागत के समय सिठनियाँ (गन्दी-गन्दी गालियाँ) दिया करती थीं। वर भी आगे तुकबन्दी में वैसा ही उत्तर दिया करता था। आर्य समाज ने यह कुरीति दूर कर दी। इसका श्रेय माता भगवती जी की रचनाओं को भी प्राप्त है। मैंने माताजी के ऐसे गीतों का दुर्लभ संग्रह श्री प्रभाकर जी को सुरक्षित करने के लिये भेंट किया था।

मैं नये सिरे से महर्षि से भेंट की घटना से लेकर माताजी के निधन तक के अंकों को देखकर फिर विस्तार से लिखूँगा। जिन्होंने माई जी को ‘लड़की’ समझ रखा है, वे मीमांसक जी की एक टिप्पणी पढ़कर मेरे लेख पर कुछ लिखने से बचें तो ठीक है। कुछ जानते हैं तो प्रश्न पूछ लें। पहली बात यह जानिये कि माई भगवती लड़की नहीं थी। ‘प्रकाश’ में प्रकाशित उनके साक्षात्कार की दूसरी पंक्ति में साक्षात्कार लेने वालों ने उन्हें ‘माता’ लिखा है। आवश्यकता पड़ी तो नई सामग्री के साथ साक्षात्कार फिर से स्कैन करवाकर दे दूँगा। श्रीमती व माता शदों के प्रयोग से सिद्ध है कि उनका कभी विवाह अवश्य हुआ था।

महात्मा मुंशीराम जी ने उनके नाम के साथ ‘श्रीमती’ शद का प्रयोग किया है। इस समय मेरे सामने माई जी विषयक एक लोकप्रिय पत्र के दस अंकों में छपे समाचार हैं। इनमें किसी में उन्हें ‘लड़की’ नहीं लिखा। क्या जानकारी मिली है- यह क्रमशः बतायेंगे। ऋषि के बलिदान पर लाहौर की ऐतिहासिक सभा में (जिसमें ला. हंसराज ने डी.ए.वी.स्कूल के लिए सेवायें अर्पित कीं) माई जी का भी भाषण हुआ था। बाद में माई जी लाहौर, अमृतसर की समाजों से उदास निराश हो गईं। उनका रोष यह था कि डी.ए.वी. के लिए दान माँगने की लहर चली तो इन नगरों के आर्यों ने स्त्री शिक्षा से हाथाींच लिया। माता भगवती 15 विधवा देवियों को पढ़ा लिखाकर उपदेशिका बनाना चाहती थी, परन्तु पूरा सहयोग न मिलने से कुछ न हो सका।

माई जी ने जालंधर, लाहौर, गुजराँवाला, गुजरात, रावलपिण्डी से लेकर पेशावर तक अपने प्रचार की धूम मचा दी थी। आर्य जन उनको श्रद्धा से सुनते थे। उनके भाई श्री राय चूनीलाल का उन्हें सदा सहयोग रहा। ‘राय चूनीलाल’ लिखने पर किसी को चौंकना नहीं चाहिये। जो कुछ लिखा गया है, सब प्रामाणिक है। माई जी संन्यासिन नहीं थीं। उनके चित्र को देखकर यहा्रम दूर हो सकता है। वह हरियाना ग्राम की थीं, न कि होशियारपुर की। पंजाबी हिन्दी में उनके गीत तब सारे पंजाब में गाये जाते थे। सामाजिक कुरीतियों के निवारण में माई जी के गीतों का बड़ा योगदान माना जायेगा। मैंने ऋषि पर पत्थर मारने वाले पं. हीरानन्द जी के  मुख से भी माई जी के गीत सुने थे। उनके जन्म ग्राम, उनकी माता, उनके भाई की चर्चा पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ने को मिलती है, परन्तु पति व पतिकुल के बारे में कुछ नहीं मिलता। हमने उन्हीं के क्षेत्र के स्त्री शिक्षा के एक जनक दीवान बद्रीदास जी, महाशय चिरञ्जीलाल जी आदि से यही सुना था कि वे बाल विधवा थीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *