लिव इन रिलेशनशिप
लेखक – इंद्रजीत ‘देव’
मार्च २०१० में भारतीय उच्चतम न्यायलय ने एक महत्व पूर्ण निर्णय दिया है । बिना विवाह किये भी कोई भी युवक व युवती अथवा पुरुष व स्त्री इकट्ठे रह सकते हैं । यदि कृष्ण व राधा बिना परस्पर विवाह किये एकत्र रह सकते थे तो आज के युवक युवती / पुरुष स्त्री ऐसा क्यूँ नहीं कर सकते ? . “यह निर्णय महत्वपूर्ण ही नहीं , भयंकर हानिकारक भी है । इसका परिणाम यह निकलेगा कि आपकी गली में कोई पुरुष व स्त्री बिना विवाह किये आकर रहने लगेंगे, तो आप व आपकी गली में रहने वाले अन्य लोगों को उनका वहाँ रहना अत्यंत बुरा, समाज व परिवार को दूषित करने वाला प्रतीत होगा, परन्तु आप उनका कुछ भी न बिगाड़ सकेंगे । यदि आप कुछ पड़ौसियों को साथ लेकर उनके पास जाकर गली छोड़कर चले जाने को कहेंगे, तो वे उपरोक्त निर्णय दिखाएंगे । व आप असफल होकर घर वापस लौट आयेंगे । यदी आपके द्वारा पुलिस में उनकी शिकायत की जायेगी तो पुलिस स्वयं आकर समाज, धर्म व कानून के विरुद्ध ऐसा कार्य करने के अपराध में उनसे पूछताछ करेगी, तो उसे भी वे उच्चतम न्यायालय का पूर्वोक्त निर्णय दिखाएंगे तथा पुलिस भी उनके विरुद्ध केस बनाये बिना वापस लौटने के सिवाय अन्य कुछ नहीं कर पायेगी ।
में भी यह घटना पूर्वोक्त रूप में कुछ स्थानों पर कुछ लोगों को सुनायी है तो लगभग सभी श्रोताओं ने यही कहा है कि न्यायालय को भ्रष्ट करने व परिवारों की एकता को भंग करने के द्वार खोल दिए हैं, परन्तु मेरे विचार में न्यायालय का इस निर्णय में कोई दोष नहीं है क्यूंकि न्यायपालिका का काम निर्णय देना है तथा वह निर्णय देती है | विधायिका द्वारा बनाये हुए अधिनियमों के आधार पर । विधायिका द्वारा बनाये गए अधिनियमों में लिखे एक एक शब्द के गहन , पूर्ण व सत्य अर्थों पर विचार करके ही न्यायादिश निर्णय दे सकते हैं ।
उनके निजी विचार कुछ भी क्यूँ न हो, वे अधिनियम के बंधन में अक्षरसः बंधे होते हैं | इस सम्बन्ध में मैं प्रमाण प्रस्तुत करता हूँ । इंग्लैण्ड में एक समय में ऐसा कानून बनाया गया था | कि लण्डन की सडकों पर कोई घोडा-गाड़ी नहीं लायी जायेगी और यदी कोई ऐसा करेगा तो उसे दण्डित किया जायेगा । कुछ दिनों तक इस अधिनियम का पालन होता रहा परन्तु एक दिन लोगों ने देखा कि एक गाड़ी लंदन में चल रही थी । चालक को वहाँ की पुलिस ने न्यायायलय में प्रस्तुत किया, परन्तु न्यायाधीश उसे कुछ भी दंड न दे पाये, क्यूंकि चालक ने यह सिद्ध कर दिया कि वह जो गाड़ी लेकर लन्दन में घूम रहा था, वह घोडा-गाड़ी थी ही नहीं। अपितु घोड़ी-गाड़ी थी | इसी प्रकार एक दूसरे घटना भी लिखता हूँ तब एक न्यायालय में चल रहे मुकदमे में फांसी पर लटका देने का दण्ड एक अपराधी को न्यायाधीश ने लिखा- “He should be hanged” | उस अपराधी को उसके वकील ने कहा कि तुम चिंतामत करो | में तुम्हे मरने नहीं दूंगा । कुछ लोगों का विचार है कि वह वकील जवाहर लाल नेहरु के पिता मोती लाल नेहरु थे । वस्तुत: वही वकील थे या कोई अन्य मुझे पूर्ण ज्ञान नहीं है अस्तु । जब अपराधी को फांसी का फंदा डालकर लटकाया गया तो, अपराधी को तुरंत छुड़वा लिया क्यूंकि न्यायाधीश ने अपने आदेश में यह नहीं लिखा कि इसको तब तक लटकाये ही रखना है जब तक इसके प्राण न निकल जाएँ । पास खड़े उच्च अधिकारी व कर्मचारियों को उस वकील ने फांसी पर लटकाने से पूर्व ही उक्त आदेश का अर्थ समझा व मनवा लिया था कि इसमें तो इतना ही लिखा है कि इस अपराधी को लटकाया जाये । इसमें यह कहाँ लिखा है कि इसको मरने तक लटकाये रखना है । अधिवक्ता ने अपराधी को छुड़ा लिया, बचा लिया । यह उसके द्वारा शब्दार्थ की गहराई तक जाने का परिणाम था । कुछ लोग कहते हैं कि इस घटना के पश्चात् ही तत्कालीन शासन ने ऐसी व्यवस्था की न्यायाधीष ऐसे अपराधियों के मामले में निर्णय देते हुए लिखने लगे “He should be hanged till death” अर्थात इसे तब तक लटकाये रखा जाये तब तक इसकी मृत्यु न हो जाये ।
सन २०१० में पूर्वोक्त मामले में न्यायाधीशों का कोई दोष नहीं है । इस कथन को पाठकों में से वे पाठक मेरी बात अच्छी पाठक समझेंगे जिनको न्यायालयों की न्यायविधि का ज्ञान है । दोष वस्तुतः उनका है जिन्होंने पुराणों में कृष्ण जी व राधा के सम्बन्धों को अश्लील चित्रित किया था । इसके अतिरिक्त उनका भी दोष है, जिन्होंने इनके सम्बन्धों को अश्लील रूप में प्रस्तुत करने वालों के हाथ न कटवाए, न पुराण जलवाये । पुराणों की हिन्दू समाज में मान्यता व प्रतिष्ठा है । न्यायालय ने सामाजिक व धार्मिक दृष्टि से पापी व दोषी युवक व उस युवती के वकील ने वे प्रसंग प्रस्तुत किये जिनसे कृष्ण जी व राधा के शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने का वर्णन है । ( “ब्रह्मवैवर्त पुराण , श्री कृष्ण जन्म खंड अध्याय ४६ व १५ ) इसमें न्यायाधीशों का द्वेष क्या है ?
सरकार की और से प्रस्तुत हुए अधिवक्ता में पूर्वोक्त प्रमाणों को झुठला नहीं सके । पूरा हिन्दू समाज पुराणों को सत्य व ऐतिहासिक ग्रन्थ मनाता है | आर्य समाज बहुत ही पहले ही पुराणों को झुठला चुका है व “ महर्षि दयानंद सरस्वती ने श्री कृष्ण जी के सम्बन्ध् में स्पष्ट लिखा है ” देखो श्री कृष्ण जी का इतिहास महाभारत में अति उत्तम है। उनका गुण कर्म स्वाभाव व चरित्र आप्त पुरुषों के सदृश्य है जिसमें कोई अधर्म का आचरण श्री कृष्ण जी ने जन्म से मरण पर्यन्त बुरा काम कुछ भी किया हो ऐसा नहीं लिखा।“ ( सत्यार्थ प्रकाश एकादशसमुल्लास )
महाखेद की बात है कि इस अनिष्टकारी निर्णय के आने के बाद तीन वर्षों में भी पुरे देश में कोई हलचल नहीं हुयी । जगद्गुरु बने बैठे शंकराचार्यों में से एक ने भी इस निर्णय व इसमें राधा व कृष्ण जी के चरित्र को गलत रूप में न्यायालय द्वारा प्रमाण मानने से भविष्य में क्या दुष्परिणाम होंगे इसकी कोई कल्पना व इसे रोकने हेतु कोई कार्यक्रम व इच्छा नहीं है | इसके अतिरिक्त कोई संत, कोई महंत, कोई ठगंत कोई बापू कोई गुरु कोई बाबा कोई सन्यासी कोई मौलवी किसी धार्मिक सामाजिक व राजनैतिक संस्था का कोई पदाधिकारी आज तक इस विषय में कुछ नहीं बोला । इससे सिद्ध है कि उनकी दृष्टी में यह निर्णय एक युवक व एक युवती तक ही सीमित रहेगा । मेरे विचार में यह एक दूरगामी अनिष्टकारी निर्णय है तथा इसके विरोध में केवल हिंदुओं को ही नहीं सिखो मुसलमानो जैनियों व बौद्धों वनवासियों नास्तिकों व कम्युनिष्टों को भी एकत्र होकर आवाज उठानी चाहिए थी व सभी राजनैतिक, सामाजिक , धार्मिक व सांप्रदायिक मतभेद भुलाकर इस विषय पर एकजुट होना चाहिए था । खेद है हमारे देश में राजनैतिक सुख व भोग हेतु परस्पर विरोधी या भिन्न भिन्न विचारों वाली २५ -२६ पार्टियाँ एकत्रित होकर कथित न्यूनतम कार्यक्रम बना लेती हैं | परन्तु सामाजिक धार्मिक संस्थाएं राजनैतिक दल व समाज हित को लेकर एक मुद्दे पर भी एकत्रित नहीं होते । मुझे इस विषय में यह निवेदन करना है :
बागवानों ने अगर अगर अपनी रविश नहीं बदली,
तो पत्ता पत्ता इस चमन का बागी हो जायेगा |
१६ दिसम्बर को बलात्कार की दिल्ली में हुयी घटना के बाद में देश में प्रजा ने जो चेतना व विरोध भाव प्रगट किया उससे सरकार हिल गयी । इससे सिध्द है कि राजनेता केवल जनता के दवाब के आगे ही झुकते हैं । पूर्वोक्त विषय में निष्क्रिय समाज व राष्ट्र की चिन्ता कौन करेगा । आज हर कोई परेशान है | रही सही कमी प्रस्तुत निर्णय के बाद होगी । न धर्म गुरुओं को न समाज शास्त्रियों को न धार्मिक संस्थाओं को परेशान हो रहे इस समाज व राष्ट्र की कोई चिता है | अब ऐसा कानून कोई है ही नहीं जिसके अधीन ऐसे चलने वाले स्त्री पुरुष को अपराधी मानकर दण्ड दिया जा सके | तो न्यायालय उन्हें दण्ड दे ही क्यूँ सकता है ? उच्चतम नयायालय का निर्णय आने के बाद किसी राजनैतिक दल की नींद नहीं खुली व इस निर्णय के पश्चात live in relationship के नाम पर बिना विवाह किये रहने वालों की संख्या बड़ने लगी है अब उनको उच्चतम न्यायालय का निर्णय विशेष उत्साह प्रदान कर रहा है | व उनका मनोबल बड़ रहा है इस स्तिथी में एक स्पष्ट कानून बनाने की स्पष्ट आवश्यकता है | जिसके अधीन ऐसे सम्बंधों को अवैध व कठोर दंडनीय माना जाये । राधा और कृष्ण जी का कथित प्रश्न इसमें बाधा नहीं बनता ।
सामजिक धार्मिक राजनैतिक संस्थाओं समाज शास्त्रियों जागो तथा इस सरकार पर तुरंत दवाब डालो कि वह वांछनीय कानून बनाये। सुख सुविधा व धन ऐश्वर्य में डूबे राजनैतिक नेताओं निद्रा से जागो तथा देश के परम्परागत वैवाहिक आदर्श की रक्षार्थ तुरुन्त वांछनीय कानून बनाओ अन्यथा आने वाला इतिहास तुम्हें क्षमा नहीं करेगा ।
दे रही हों आंधियाँ जब द्वार पर दस्तक तुम्हारे,
तुम नहीं जगे तो ये सारा जमाना क्या कहेगा ?
बहारों को खड़ा नीलाम देखा पतझड़ कर रहा है
तुम नहीं उठे तो ये आशियाना क्या कहेगा ?