लक्ष्मीनारायण जी बैरिस्टर :- ऋषि के पत्र-व्यवहार में एक ऋषिभक्त युवक लक्ष्मीनारायण का भी पत्र है। आप कौन थे? आपका परिवार मूलतः उ.प्र. से था। लाहौर पढ़ते थे। इनके पिता श्री आँगनलाल जी साँपला जिला रोहतक में तहसीलदार थे। आपके चाचा श्रीरामनारायण भी विद्वान् उत्साही आर्य युवक थे। लन्दन के आर्य समाज के संस्थापक मन्त्री श्री लक्ष्मीनारायण जी ही थे। इंग्लैण्ड में शवदाह की अनुमति नहीं थी। वहाँ चबा के राजा का एक नौकर (चन्दसिंह नाम था) मर गया। राजा तब फ्राँस में मौज मस्ती करने गया था। सरकार ने शव को लावारिस घोषित करके दबाने का निर्णय ले लिया।
श्री लक्ष्मीनारायण जी ने दावा ठोक दिया कि आर्यसमाज इस भारतीय का वारिस है। हम अपनी धर्म मर्यादाके अनुसार शव का दाह-कर्म करेंगे। वह शव लेने में सफल हुए। मुट्ठी भर आर्यों ने शव की शोभा यात्रा निकाली। अरथी पर ‘भारतीय नौकर की शव दाह यात्रा’ लिखा गया। सड़कों पर सहस्रों लोग यह दृश्य देखने निकले। प्रेस में आर्य समाज की धूममच गई। महर्षि के बलिदान के थोड़ा समय बाद की ही यह घटना है।
आर्यसमाज के सात खण्डी इतिहास के प्रत्येक खण्ड में इन्हें मुबई के श्री प्रकाशचन्द्र जी मूना का चाचा बताया गया है। यह एक निराधार कथन है। इसे विशुद्ध इतिहास प्रदूषण ही कहा जायेगा।
लक्ष्मीनारायण ऋषि के वेद भाष्य के अंकों के ग्राहक बने। आप पं. लेखराम जी के दीवाने थे। उनके लिखे ऋषि-जीवन के भी अग्रिम सदस्य बने थे। आप एक सच्चे, पक्के, स्वदेशी वस्तु प्रेमी देशभक्त थे। इंग्लैण्ड में आपके कार्यकाल में आर्य समाज की गतिविधियों के समाचार आर्य पत्रों में बड़े चाव से पढ़े जाते थे। ये सब समाचार मेरे पास सुरक्षित हैं। आपने मैक्समूलर को भी समाज में निमन्त्रण दिया, परन्तु वह आ न सका। और पठनीय सामग्री फिर दी जायेगी।