क्या मुहम्मद का नाम अथर्ववेद में है ?
बहुत से मुसलमान ऐसा कहा करते और लिखा व छपवाया करते है कि हमारे मजहब की बात अथर्ववेद में लिखी है. इस का या उत्तर है कि अथर्ववेद में इस बात का नाम निशान भी नहीं है.
प्रश्न : क्या तुम ने सब अथर्ववेद देखा है ? यदि देखा है तो अल्लोपनिषद देखो। यह साक्षात उसमें लिखी है। फिर क्यों कहते हो कि अथर्ववेद में मुसलमानों का नाम निशान भी नहीं है। जो इस में प्रत्यक्ष मुहम्मद साहब रसूल लिखा है इस से सिध्द होता है कि मुसलामानों का मतवेदमूलक है।
उत्तर : यदि तुम ने अथर्ववेद न देखो तो तो हमारे पास आओ आदि से पूर्ति तक देखो अथवा जिस किसी अथर्ववेदी के पास बीस कांडयुक्त मंत्र संहिता अथर्ववेद को देख लो. कहीं तुम्हारे पैगम्बर साहब का नाम व मत का निशान न देखोगे और जो यह अल्लोपनिषद है वह न अथर्ववेद में न उसके गोपथब्राहम्मण व किसी शाखा में है यह तो अकबरशाह के समय में अनुमान है कि किसी ने बनाई है। इस का बनाने वाला कुछ अरबी और कुछ संस्कृत भी पढ़ा हुआ दीखता है क्योंकि इस में अरबी और संस्कृत के पद लिखे हुए दीखते हैं। देखो ! (अस्माल्लामइल्लेमित्रावरुणादिव्यानिधत्ते ) इत्यादि में जो कि दश अंक में लिखा है जैसे – इस में अस्माल्लाम और इल्ले ) अरबी और ( मित्रावरुणादिव्यानिधत्ते ) यह संस्कृत पद लिखे हैं वैसे ही सर्वत्र देखने में आने से किसी संस्कृत और अरबी के पढे हुए ने बनाई है. यदि इस का अर्थ देखा जाता है तो यह कृत्रिम आयुक्त वेद और व्याकरण रीति से विरुद्ध है। जैसी यह उपनिषद बनाई है वैसी बहुत सी उपनिषदेंमतमतान्तर वाले पक्षपातियों ने बना ली हैं। जैसी कि स्वरोपनिषदनृसिंहतापानि राम तापनी गोपालतापनी बहुत सी बना ली हैं
प्रश्न -आज तक किसी ने ऐसा नहीं कहा अब तुम कहते हो हैम तुम्हारी बात कैसे माने ?
उत्तर -तुम्हारे मानने व न मानने से हमारी बात झूठ नहीं हो सकती है। जिस प्रकार से मीन इस को आयुक्त ठहरेई है उसी प्रकार से जब तुम अथर्वेदगोपथ व इस की शाखाओं से प्राचीन लिखित पुस्तकों में जैसे का तैसा लेख दिखलाओ और अर्थसंगति से भी शुद्ध करो तब तो सप्रमाण हो सकता है.
प्रश्न – देखो ! हमारा मत कैसा अच्छा है कि जिसमें सब प्रकार का सुख और अंत में मुक्ति होती है
उत्तर – ऐसे ही अपने अपनेमत वाले सब कहते हैं कि हमारा मत अच्छा है बाकी सब बुरे। बिना हमारे मत में मुक्ति नहीं हो सकती। अब हम तुम्हारी बात को सच्ची माने व उनकी ? हम तो यही मानते हैं कि सत्यभाषण, अहिंसा, दया आदि शुभ गुण सब मतों में वाद विवाद ईर्ष्या, द्वेष, मिथ्याभाषणादि कर्म सब मतों में बुरे हैं। यदि तुम को सत्य मत ग्रहण की इच्छा हो तो वैदिक मत को ग्रहण करो।