क्या क़ुरान विश्वासी शिक्षित हो सकता है ?
-और वह जो लड़का, बस थे मां बाप उसके ईमान वाले, बस डरे हम यह कि पकड़े उनको सरकशी में और कुफ्र में।। यहाँ तक कि पहुंचा जगह डूबने सूर्य की, पाया उसको डूबता था बीच चश्मे कीचड़ के। कहा उननेऐजुलकफ्ररनैननिश्चय याजूजमाजूजफि़साद करने वाले हैं बीच पृथिवी के।। मं0 4। सि0 16। सू018। आ0 80। 88।944
समी0 -भला! यह खुदा की कितनी बेसमझ है। शंका से डरा कि लड़के के मां-बाप कहीं मेरे मार्ग से बहका कर उलटे न कर दिये जावें। यह कभी ईश्वर की बात नहीं हो सकती। अब आगे की अविद्या की बात देखिये कि इस किताब का बनाने वाला सूर्य को एक झील में रात्रि को डूबा जानता है, फिर प्रातःकाल निकलता है, भला ! सूर्य तो पृथिवी से बहुत बड़ा है, वह नदी वा झील वा समुद्र में कैसे डूब सकेगा ! इससे यह विदित हुआ कि कुरान के बनाने वाले को भूगोल खगोल की विद्या नहीं थी। जो होती तो ऐसी विरुद्ध बात क्यों लिख देते ? और इस पुस्तक के मानने वालों को भी विद्या नहीं है। जो होती तो ऐसी मिथ्या बातों से युक्त पुस्तक को क्यों मानते ? अब देखिये ख़ुदा का अन्याय ! आप ही पृथिवी का बनाने वाला राजा न्यायाधीश है और याजूजमाजूज को पृथिवी में फ़साद भी करने देता है। यह ईश्वरता की बात से विरुद्ध है। इससे ऐसी पुस्तक को जंगली लोग माना करते हैं, विद्वान् नहीं |
-और याद करो बीच किताब के मर्यम को, जब जा पड़ी लोगों अपनेसे मकान पूर्वी में।। बस पड़ा उनसे उधर पर्दा, बस भेजा हमने रूह अपनी को अर्थात् फ़रिश्ता, बस सूरत पकड़ी वास्ते उसके आदमी पुष्ट की।। कहने लगी निश्चय मैं शरण पकड़ती हूँ रहमान की तुझसे, जो है तू परहेज़गार।। कहने लगा सिवाय इसके नहीं कि मैं भेजा हुआ हूँ मालिक तेरे के से, तो कि दे जाऊं मैं तुझको लड़का पवित्र।। कहा कैसे होगा वास्ते मेरे लड़का नहीं हाथ लगाया मुझ को आदमी ने, नहीं मैं बुरा काम करने वाली।। बस गर्भित हो गई साथ उसके और जा पड़ी साथ उसके मकान दूर अर्थात् जंगल में।। मं0 4। सि0 16। सू0 19। आ016-20। 223
समी0 -अब बुद्धिमान विचार लें कि फ़रिश्ते सब खुदा की रूह हैं तो खुदा से अलग पदार्थ नहीं हो सकते। दूसरा यह अन्याय कि वह मर्यम कुमारी के लड़का होना, किसी का संग करना नहीं चाहती थी।परन्तु खुदा के हुक्म से फ़रिश्ते ने उसको गर्भवती किया, यह न्याय से विरुद्ध बात है। यहाँ अन्य भी असभ्यता की बातें बहुत लिखी हैं उनको लिखना उचित नहीं समझा |