क्या क़ुरान खुदा की लिखी है …..

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क्या क़ुरान खुदा की लिखी है …..

 

-क़सम है कुरान दृढ़ की।। निश्चय तू भेजे हुओं से है।। उस पर मार्ग सीधे के।। उतारा है ग़ालिब दयावान ने।। मं0 5। सि0 23। सू0 36। आ0 2-5

समी0 -अब देखिये ! यह क़ुरान खुदा का बनाया होता तो वह इसकी सौगंध क्यों खाता ? यदि नबी खुदा का भेजा होता तो लेपालक बेटे की स्त्री पर मोहित क्यों होता ?  यह कथनमात्र है कि कुरान के मानने वाले सीधे मार्ग पर हैं। क्योंकि सीधा मार्ग वही होता है जिसमें सत्य मानना, सत्य बोलना, सत्य करना; पक्षपात

रहित न्याय धर्म का आचरण करना आदि हैं और इससे विपरीत का त्याग करना । सो न कुरान में न मुसलमानो में और न इनके खुदा में ऐसा स्वभाव है यदि सब पर प्रबल पैग़म्बर मुहम्मद साहेब होते तो सबसे अधिक विद्यावान् और शुभगुण युक्त  क्यों न होते ? इसलिये जैसी कूंजड़ी अपने बेरों को खड्डा नहीं बतलाती, वैसी यहबात भी है |

-और फूंका जावेगा बीच सूर के बस नागहां वह कबरों में से तर्फ़ मालिक अपने की दौड़ेंगे।। और गवाही देंगे पांव उनके साथ उस वस्तु के कमाते थे।। सिवाय इसके नहीं कि आज्ञा उसकी जब चाहे उत्पन्न करना किसी वस्तु का यह कि कहता वास्ते उसके कि हो जा, बस हो जाता है।। मं0 5। सि0 23। सू0 36।आ0 53। 65। 82

समी0 -अब सुनिये उटपटांग बातें! पग कभी गवाही दे सकते हैं ? खुदा के सिवाय उस समय कौन था जिसको आज्ञा दी ? किसने सुनी ? और कौन बन गया ? यदि न थी तो यह बात झूठी और जो थी तो वह बात जो सिवाय खुदा के कुछ चीज़ नहीं थी और ख़ुदा ने सब कुछ बना दिया वह झूठी |

-वही की हमने तर्फ़ मूसा की यह कि ले चल रात को बन्दों मेरे को,निश्चय तुम पीछा किये जाओगे।। बस भेजे लोग फि़राने ने बीच नगरों के जमा करने वाले।। और वह पुरुष कि जिसने पैदा किया मुझको, बस वही मार्ग दिखलाता है।। और वह जो खिलाता है मुझको पिलाता है मुझको।। और वह पुरुष की आशा रखता हूं मैं यह कि क्षमा करे वास्ते मेरे, अपराध मेरा दिन क़यामत के।। मं0 5। सि0 19। सू0 26। आ0 52। 53। 78। 79। 82

समी0 – जब खुदा ने मूसा की ओर वही भेजी पुनः दाऊद, ईसा और मुहम्मद साहेब की ओर किताब क्यों भेजी ? क्योंकि परमेश्वर की बात सदा एकसी और बेभूल होती है। और उसके पीछे कुरान तक पुस्तकों का भेजना पहिली पुस्तक को अपूर्ण भूल माना जायगा। यदि ये तीन पुस्तक सच्चे हैं तो यह कुरान झूठा होगा। चारों का जो कि परस्पर प्रायः विरोध रखते हैं, उनका सर्वथा सत्य होना नहीं होसकता। यदि खुदा ने रूह अर्थात् जीव पैदा किये हैं तो वे मर भी जायेंगे अर्थात् उनका कभी भाव कभी अभाव भी होगा ? जो परमेश्वर ही मनुष्यादि प्राणियों को खिलाता-पिलाता है तो किसी को रोग होना न चाहिये और सबको तुल्य भोजन देना चाहिये। पक्षपात से एक को उत्तम और दूसरे को निकृष्ट जैसा कि राजा और कंगले को श्रेष्ठ-निकृष्ट भोजन मिलता है, न होना चाहिये। जब परमेश्वर ही खिलाने-पिलाने और पथ्य कराने वाला है तो रोग ही न होना चाहिये। परन्तु मुसलमान आदि को भी रोग होते हैं। यदि खुदा ही रोग छुड़ाकर आराम करनेवाला है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग न रहना चाहिये। यदि रहता है तो खुदापूरा वैद्य नहीं है। यदि पूरा वैद्य है तो मुसलमानों के शरीर में रोग क्यों रहते हैं ? यदि वही मारता और जिलाता है तो उसी खुदा को पाप-पुण्य लगता होगा। यदि जन्म-जमान्तर के कर्मानुसार व्यवस्था करता है तो उसको कुछ भी अपराध नहीं। यदि वह पाप क्षमा और न्याय क़यामत की रात में करता है तो खुदा पाप बढ़ानेवाला होकर पापयुद्ध होगा। यदि क्षमा नहीं करता तो यह कुरान की बात झूठी होने से बच नहीं सकती है |

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