खुदा के भी दुश्मन यह कैसा खुदा …..
-आनन्द का सन्देशा ईमानदारों को।। अल्लाहफरिश्तों पैगम्बरों जिबरइर्ल और मीकाईल का जो शत्रु है अल्लाह भी ऐसे काफि़रों का शत्रु है | मं0 1सि01।सू0 2। आ0 97 -98
समी0 -जब मुसलमान कहते हैं कि ‘ख़ुदा लाशरीक’ है फिर यह फौज की फौज ‘शरीक’ कहासे कर दी ? क्या जो औरों का शत्रु वह ख़ुदा का भी शत्रु है ? यदि ऐसा है तो ठीक नहीं क्योंकि ईश्वर किसी का शत्रु नहीं हो सकता |
-और कहो कि क्षमा मांगते हैं हम क्षमा करंगे तुम्हारे पाप और अधिकभलाई करने वालों के।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 58
समी0 -भला यह ख़ुदा का उपदेश सब को पापी बनाने वाला है वा नहीं ? क्योंकि जब पाप क्षमा होने का आश्रय मनुष्यों को मिलता है तब पापों से कोई भी नहीं डरता, इसलिये ऐसा कहने वाला ख़ुदा और यह ख़ुदा का बनाया हुआ पुस्तक नहीं हो सकता क्योंकि वह न्यायकारी है, अन्याय कभी नहीं करता और पाप क्षमा करने में अन्यायकारी हो जाता है किन्तु यथापराध दण्ड ही देने में न्यायकारी होसकता है |
-जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिये पानी मांगा हमने कहा कि अपना असा दण्ड पत्थर पर मार, उसमें से बारह चश्मे बह निकले।। मं0 1। सि0 1। सू02। आ0 60
समी0- अब देखिये! इन असम्भव बातों के तुल्य दूसरा कोई कहेगा ? एक पत्थर की शिला में डंडा मारने से बारह झरनों का निकलना सर्वथा असम्भव है | हां, उस पत्थर को भीतर से पोला कर उसमें पानी भर बारह छिद्र करने से सम्भव है अन्यथा नहीं |
-और अल्लाह ख़ास करता है जिसको चाहता है साथ दया अपनी के।मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 105
समी0 -क्या जो मुख्य और दया करने के योग्य न हो उसको भी प्रधान बनाता और उस पर दया करता है ? जो ऐसा है तो खुदा बड़ा गड़बडि़या है क्योंकि फिर अच्छा काम कौन करेगा ? और बुरे कर्म को कौन छोड़ेगा ? क्योंकि खुदा की प्रसन्नता पर निर्भर करते हैं, कर्म फल पर नहीं, इससे सबको अनास्था होकर कर्मोच्छेद प्रसंग होगा |
-ऐसा न हो कि काफि़र लोग इर्ष्या करके तुमको ईमान से फेर देवें क्योंकि उनमें से ईमान वालों के बहुत से दोस्त हैं।। मं0 1। सि0 1ं सू0 2ं आ0 10
समी0 -अब देखिये खुदा ही उनको चिताता है कि तुम्हारे ईमान को काफिऱ लोग न डिगा दवे । क्या वह सर्वज्ञ नहीं है ऐसी बातें खुदा की नहीं हो सकती हैं |