कविरत्न पं. अखिलानन्द शर्मा
पण्डित अखिलानन्द जी का जन्म गांव चन्द्र नगर जिला बदायूं में मिती माघ शुक्ला २ दिनांक १९३७ विक्रमी को हुआ । आप के पिता का नाम पं. टीका राम स्वामी तथा माता का नाम सुबुद्धि देवी था । आप अपने समय के संस्क्रत के उच्चकोटि के कवि थे ।
जब स्वामी दयानन्द सरस्वती अलीगट से लगभग तीस किलोमीटर दूर गांव कर्णवास , जो गंगा के तट पर है तथा यह वह स्थान है जहां पर स्वामी जी ने कर्णवास के राजा राजा से तलवार छीन कर तोड दी थी , इस स्थान पर ही जब स्वामी जी टहरे थे तो पंण्डित जी के पिता पं. टीका राम स्वामि जी स्वामी जी से मिले थे । इस प्रकार स्वामी जी से प्राप्त विचार ही उन्हें आर्य समाज की ओर लेकर आये तथा इस का प्रभाव पंडित अखिलानन्द जी पर भी हुआ ।
पण्डित अखिलानन्द जी ने शास्त्रों का खूब अध्ययन किया तथा इस निमित स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के सह्पाटी पं. युगलकिशोर जी तथा अल्मोडा निवासी पं. विष्णु दत जी के मार्ग दर्शन से आप ने इन शास्त्रों का अध्ययन किया तथा पारंगतता प्राप्त की ।
शास्त्रों में पारंगत होने पर आप ने अपने पिता के बताये पथ पर चलना ही उपयुक्त समझते हुए आर्य समाज के उपदेशक्स्वरुप कार्य आरम्भ किया । आप को संस्क्रत काव्य से विशेष आत्मीयता थी तथा आप इस क्शेत्र में असाधारण गति के भी स्वामी थे । इस प्रकार आप अर्य समाज के प्रचार व प्रसार करने लगे ।
जब आप आर्य समाज्के प्रचार कार्य को गति देने में लगे थे तब ही आप का आर्य समाज के सिद्दन्तो के प्रश्न पर जब वर्ण व्यवस्था का प्रशन आया तो आप को आर्य समाज्का वर्ण व्यवस्था के प्रश्न पर कुछ मतभेद हो गया तथा इस कारण ही आप ने आर्य्समाज के क्शेत्र का परित्याग कर दिया तथा सनातन धर्म के प्रवक्ता बन गए । अब आप ने आर्य समाज के विद्वानों से कई शास्त्रार्थ भी किए । आप ने संस्क्रत काव्य के आधार पर आप ने लगभग तेरह पुस्तकें भी लिखीं । आअप की लिखी द्यानन्द लहरी एक उतम पुस्तक थी । दयानन्द दिग्विजय महाकाव्य , वैदिक सिद्धान्त वर्णन आदि आदि उनके प्रमुख ग्रन्थ थे । आप का देहान्त ८ मई १९५८ इस्वी को हुआ । इस समय आप की आयु ७८ वर्ष की थी