ः- एक लबे समय से आर्य समाज में इतिहास प्रदूषण के महारोग और आन्दोलन को गभीरता से जाना, समझा फिर इस नाम से एक पुस्तक लिखी। एक-एक बात का प्रमाण दिया। अपनी प्रत्येक पुस्तक के प्राक्कथन में यह लिखना इस लेखक का स्वभाव बन गया है कि यदि जाने, अनजाने से, अल्पज्ञता से, स्मृति दोष से पुस्तक में कोई भूल रह गई हो तो गुणियों के सुझाने पर अगले संस्करण में दूर कर दी जावेगी। परोपकारी में कई बार स्मृति दोष से किसी लेख में पाई गई भूल पर निसंकोच खेद प्रकट किया। यह पता ही था कि इस पुस्तक पर खरी-खरी लिखने पर भी कुछ कृपालु कोसेंगे, खीजेंगे। उनका तिलमिलाना स्वभाविक ही है। कुछ लोगों ने नर्िाय होकर स्वप्रयोजन से आर्य समाज के इतिहास को प्रदूषित किया है।
दर्शाई गई किसी भूल, गड़बड़, मिलावट, बनावट व गड़बड़ को तो कोई झुठला नहीं सका। लेखक की दो भूलों को खूब उछाला जा रहा है। सेाच-सोच कर हमारे परम कृपालु भावेश मेरजा जी ने एक प्रश्न भी पूछा है सेवा का एक अवसर देने पर अपने बहुत प्यारे भावेश जी का हृदय से आभार मानना हमारा कर्त्तव्य बनता है।
यह चूक आपने पकड़ी है कि देवेन्द्र बाबू के ग्रन्थ में भी एक स्थान पर प्रतापसिंह ने ऋषि से पूछा कि यदि आपको अली मरदान ने विष दिया हो तो…………………
दूसरी चूक यह बताई गई कि भारतीय जी ने अपने ग्रन्थ में एक स्थान पर नन्हीं को वेश्या लिखा है। मेरा यह लिखना कि उन्होंने कहीं भी उसे वेश्या नहीं लिखा ठीक नहीं।
मेरा निवेदन है कि ये दोनों भूलें असावधानी से हो गई। इसका खेद है। दुःख है। भूल स्वीकार है। प्राक्कथन में दिये आश्वासन को पूरा किया जाता है। क्या भावेश जीाी नैतिक साहस का परिचय दे कर पुस्तक में दर्शाई गई आपके महानायक की एक-एक भूल को स्वीकार कर इस पाप पर कुछ रक्तरोदन करेंगे? इतिहास प्रदूषण का दूसराााग भी अब छपेगा। उसमें महानायक जी के कुछ पत्र पढ़कर हमें कोसने वाले चौंक जायेंगे। बस प्रतीक्षा तो करनी पड़ेगी ।
प्रतापसिंह ने ऋषि से विष दिये जाने की बात कब की? यह तो बता देते। वह जोधपुर की राज परपरा के अनुसार विष दिये जाने के 27 दिन के पश्चात् ऋषि से मिलने आया। तब ऋषि क्या होश में थे? मूर्छा का उल्लेख बार-बार मिलता है। प्रतापसिंह ने केवल ऋषि का हालचाल ही पूछा था। विष की कतई कोई चर्चा नहीं हुई। वह बस पूछताछ करके चला गया। ऋषि का पता पूछने जोधपुर तो राजपरिवार आया नहीं। ये सारी जानकारी देवेन्द्र बाबू व भारतीय जी ने पं. लेखराम जी के ग्रन्थ से ली है। वही सबका स्रोत है। विष की बात तो जोड़ी गई है। यह गढ़न्त है। पं. लेखराम जी ने एक – एक दिन की घटना तत्कालीन ‘आर्य समाचार’ मासिक मेरठ का नाम लेकर अपने ग्रन्थ में दी है। ‘आर्य समाचार’ का वह ऐतिहासिक अंक आज धरती तल पर केवल जिज्ञासु के पास है। उसके पृष्ठ 213 पर प्रतापसिंह के दर्शनार्थ जाने का उल्लेख है। कोई बात हुई ही नहीं। हदीस गढ़ने वाला कोई भी हो, है यह हदीस। तब ठा. भोपाल सिंह व जेठमल तो वहीं थे। किसी ने कभी यह गढ़न्त न सुनाई । शेष चर्चा फिर करेंगे। जिसमें हिमत हो इसका प्रतिवाद करे।
एक नया प्रश्नः- भावेश जी इस समय अकारण आवेश में हैं। वह पूछते हैं यह कहाँ लिखा है कि माई भगवती लड़की नहीं बाल विधवा थी? श्रीमान् जी उत्तर दक्षिण के आर्य व अन-आर्य समाजी तो छोटी-छोटी घटनायें इस सेवक से पूछते रहते हैं और आप पंजाब में कभी घर-घर में चर्चित माई जी के बारे में इस साहित्यिक कुली से ‘‘कहाँ लिखा है?’’ यह पूछते हैं।
महोदय हमने माई जी के साथ वर्षों कार्य करने वाले मेहता जैमिनि जी (आर्य समाज के त्र.ह्र.रू.), दीवान श्री बद्रीदास, ला. सलामतराय जी, महामुनि स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी, महाशय कृष्ण जी, पूज्य ‘प्रेम’ जी के मुख से सुना। महोदय माई जी का एक साक्षात्कार लिया गया था। उसकी स्कैनिंग करके छपवा दी। ‘प्रकाश’ में छपे उस साक्षात्कार में माई जी को साक्षात्कार लेने वाला ‘माता भगवती’ लिखता है। उनका कभी फोटो छपा देखा उस पर भी ‘माई भगवती’ शीर्षक था। पंजाब में माई लड़की को कोई नहीं कहता। माई का अर्थ माता या बूढ़ी ही लिया जाता है फिर भी कहाँ लिखा का हठ है तो थोड़ा आप ही हाथ पैर मारकर देखें। स्वामी श्रद्धानन्द जी के आरभिक काल का साहित्य देखें। ‘बाल विधवा’ शब्द न मिले तो फिर लेखक की गर्दन धर दबोच लेना। जैसे भारतीय जी ने ‘कहाँ लिखा है’ की रट लगाकर जब हड़क प मचाया था तो हमने ‘लिखा हुआ’ सब कुछ दिखा दिया था- आपकोाी रुष्ट नहीं करेंगे। आप हमारे हैं, हम आपके हैं। आपको भी प्रसन्न कर देंगे।