अपनी मृत्यु से पूर्व स्वामी रुद्रानन्द जी ने ‘आर्यवीर’ साप्ताहिक
में एक लेख दिया। उर्दू के उस लेख में कई मधुर संस्मरण थे।
स्वामीजी ने उसमें एक बड़ी रोचक घटना इस प्रकार से दी।
आर्यसमाज का मुसलमानों से एक शास्त्रार्थ हुआ। विषय था ईश्वरीय
ज्ञान। आर्यसमाज की ओर से तार्किक शिरोमणि पण्डित श्री रामचन्द्रजी
देहलवी बोले। मुसलमान मौलवी ने बार-बार यह युक्ति दी कि
सैकड़ों लोगों को क़ुरआन कण्ठस्थ है, अतः यही ईश्वरीय ज्ञान है।
पण्डितजी ने कहा कि कोई पुस्तक कण्ठस्थ हो जाने से ही ईश्वरीय
ज्ञान नहीं हो जाती। पंजाबी का काव्य हीर-वारसशाह व सिनेमा के
गीत भी तो कई लोग कण्ठाग्र कर लेते हैं। मौलवीजी फिर ज़ी यही
रट लगाते रहे कि क़ुरआन के सैकड़ों हाफ़िज़ हैं, यह क़ुरआन के
ईश्वरीय ज्ञान होने का प्रमाण है।
श्री स्वामी रुद्रानन्दजी से रहा न गया। आप बीच में ही बोल
पड़े किसी को क़ुरआन कण्ठस्थ नहीं है। लाओ मेरे सामने, किस
को सारा क़ुरआन कण्ठस्थ है।
इस पर सभा में से एक मुसलमान उठा और ऊँचे स्वर में
कहा-‘‘मैं क़ुरआन का हाफ़िज़ हूँ।’’
स्वामी रुद्रानन्दजी ने गर्जकर कहा-‘‘सुनाओ अमुक आयत।’’
वह बेचारा भूल गया। इस पर एक और उठा और कहा-‘‘मैं
यह आयत सुनाता हूँ।’’ स्वामीजी ने उसे कुछ और प्रकरण सुनाने
को कहा वह भी भूल गया। सब हाफ़िज़ स्वामी रुद्रानन्दजी के
सज़्मुख अपना कमाल दिखाने में विफल हुए। क़ुरआन के ईश्वरीय
ज्ञान होने की यह युक्ति सर्वथा बेकार गई।
लेख में दी गई घटना ऐतिहासिक होने सहित महत्वपूर्ण है। लेख से ज्ञानवर्धन हुआ। हार्दिक धन्यवाद।