ईसा के सम्बन्ध में अनेक विचार –
लेखक – महात्मा नारयण प्रसाद
पहला विचार जो ईसा की सत्ता के सम्बन्ध में है वह यह है की ईसा वास्तव में कोई हुआ ही नहीं, इस सम्बन्ध में जो बातें कही और प्रमाण रूप में उपस्तिथ की जाती है, ये है :-
१. समकालीन लेखकों के लिखे लेखो अथवा इतिहासों में ईसा के जीवन का संकेत भी नहीं पाया जाता –“ हिस्टोरियन हिस्ट्री ऑफ दी वल्ड “ vol 2, col 3 में लिखा है “यह निश्चित नियम है की महान पुरषों की महता उनके जीवन काल ही में उनके नामो से प्रगट होने लगती है- परन्तु ईसा के नाम अथवा जीवन घटनाओ का उस समय के इतिहासों में सर्वथा अभाव है | न केवल इतना ही है की तत्कालीन लेखो में ईसा का नाम का और जीवन घटनाओ का अभाव है किन्तु पीछे हुई कतिपय नसलो तह के लेखो में उस की सत्ता का कोई चिन्ह नहीं पाया जाता |
२. दूसरा विचार यह है- कुछ बातें कृष्ण और बुद्ध से लेकर इंजील के लेखकों ने ईसा की कल्पना कर ली है वास्तव में ईसा कोई नहीं था | इस बात की स्थापना के लिये “ कृष्ण के क्राइस्ट “ नामक पुस्तक देखने के योग्य है | पुस्तक के रचियता ने, बड़े परिश्रम के साथ, पुराण और इंजील की तुलना करते हुए इंजील का उनके आधार पर रचा जाना प्रमाणित करने का उद्योग किया है |
ईसा की जन्मतिथि भी निश्चित नहीं है | ईसवी सन जो प्रचलित है | ईसा के जन्म काल से बताया जाता है—परन्तु बात यह है की ईसा का जन्म काल अनिश्चित और विरोध पूर्ण है | इसलिए नहीं कहा जासकता कि यह सन ईसा के जन्म काल से है |
(क) चेंबर का encyclopedia ( chamber’s Encyclopedia ) में सन ईसवी से कुछेक वर्ष और कम से कम चार वर्ष पहले ईसा का जन्म काल बतलाया गया है |
(ख) Appleton’s New Cyclopedia ) में ६ वर्ष पहिले का जन्म बतलाया गया है |
(ग) (The Treasury of Bible Knowledge new Edition page 191 ) “ परट महोदय ने “ जन्म तिथि ७ वर्ष पाहिले अक्टुम्बर मांस में निश्चित की है |
(घ) इसी प्रकार जन्म वर्ष की तरह जन्मतिथि और मास भी विवाद पूर्ण और अनिश्चित है |
दूसरा विचार ईसा के सम्बन्ध में यह है की ईसा हुआ तो परन्तु वह १२ वर्ष की आयु तक जेरोसलिम आदि में रहा उस के बाद शिक्षा पाने के लिए भारत वर्ष चला आया और ३० वर्ष की आयुतक यहाँ शिक्षा पाता रहा | उस के बाद लोटकर जेरोसलिम गया | और वहाँ जाकर उसने ईसाई धर्म की स्थापना की | इस विचार के समर्थक रूस के यात्री “ निकोलस नोटोविच “ है |
नोटोविच महोदय ने एक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसका नाम है | ( ईसा का अज्ञात जीवन चरित्र ) ( Unknown Life of Christ by Nicolas Notovitch ) पुस्तक में उन्होंने “ हिमिज “ ( Himij ) के पुस्तकालय से ईसा का एक जीवन चरित्र प्राप्त कर के छापा था |
यह जीवन चरित्र, नोटोविच का कथन है कि पाली भाषा में था और हिन्दुस्थान में लिखा गया था | उस की पाली भाषा की लिपि ( तिबत ) के पुस्तकालय में है | उसी कॉपी से यह अनुवाद तिब्बती भाषा में किया गया था | जो उन्हें हिमिज के पुस्तकालय में मिला | जीवन चरित्र पद्यमय है | जो नोटोविच ने पुस्तक का प्रथम संस्करण प्रकाशित किया था | तो उस पर स्वाभाविक रीती से पादरियों और कुछेक अन्य पुरषों में जिन में मोक्षमुलर साहिब भी सम्मिलित थे, आक्षेप किये और पुस्तक का प्रभाव दूर करने का यत्न किया गया | यह भी कहा गया की नोटोविच न तिब्बत गये, न वहा कोई पुस्तकालय “ हिमिज ” नाम का स्थान है इत्यादि ……….परन्तु पुस्तक के अंग्रेजी भाषा के संस्करण में (जो फ्रेंच भाषा में था ) नोटोविच ने समस्त आक्षेपो का सफलता के साथ परिहार किया है | उन्होंने अंग्रेज कर्मचारियों के नाम भी दिये है जिनसे वे इस यात्रा में मिले थे उन में अंग्रेजी सेना के एक मुख्य कर्मचारी “ यंगहस्वेंड “ भी सम्मिलित है जिन के नेतृत्व में अंग्रेजो की और से तिब्बत पर चढाई हुई थी – “ हिमिज “ स्थान का भी उन्होंने सविवरण पता दिया है और उस का मार्ग भी बतलाया है |
जीवन चरित्र, जो उपयुक्त भांति नोटोविच महोदय को प्राप्त हुआ है | उस की मुख्य मुख्य बातें यह है | जीवन चरित्र में प्रथम बतलाया गया है | कि ये चरित्र विवरण लेखक को इसराइली व्यापारियों के द्वारा प्राप्त हुये थे :-
तत्पश्चायत चरित्र विवरण इस प्रकार वर्णित है :-
१. “ ईसा जब १३ वर्ष का हुआ तो उस के विवाह कि छेड़ छाद शरू हुई, इस से अप्रसन्न होकर व्यापारियों के साथ वह सिंध चला आया- कि यहाँ आकर बुद्धमत की शिक्षा प्राप्त करे-
सिंध से काशी आया और यहाँ ६ वर्ष तक रहकर उसने धार्मिक शिक्षा पाई – उसे वैश्यों और शुद्र से अनुराग था उन्ही में वह प्राय: रहा करता था | यंहा से शाक्य मुनि बुद्ध की जन्म भूमि में गया, पाली भाषा सीखी और ६ वर्ष में बौद्ध मत की शिक्षाओ से पूर्णतया अभिज्ञ हुआ |
तत्पश्च्यात पश्चिम की और पारसियो के देश में पंहुचा और धर्मं प्रचार करता हुआ जेरुसलिम, ३० वर्ष की आयु में पहुँच गया “ |
उस का जन्म किस प्रकार हुआ, और मृत्यु किस प्रकार उसने मार्ग में क्या क्या उपदेश किये थे, इयादी बातें भी प्राप्त जीवन चरित्र में अंकित है | परन्तु विस्तार भय से यंहा छोड़ दी गई |
ईसा का १३-३० वर्ष तक का जीवन किस प्रकार व्यतीत हुआ, उसने इस आयु में क्या क्या सिखा अथवा क्या क्या काम किये ? इन प्रश्नों का उत्तर देने में समस्त इंजील असमर्थ है | ईसा के तो जीवन चरित्र, इस नवीन “ प्राप्त जीवन चरित्र को छोड़कर, अब तक प्रकाशित हुये है, उनमे भी उपयुक्त आयु की मध्य की किसी एक घटना का भी उल्लेख नहीं किया गया है |
तीसरा विचार वह है कि ईसा जेरोसलिम की फीमैनरी सोसाइटी का सदस्य था | वही उसने शिक्षा प्राप्त की और जान द्वारा ( John, the Baptist ) जो उसके साथ ही उपयुक्त सोसाइटी का सदस्य बना था, सोसाइटी के नियमानुसार, बिपतस्मा लिया | और सोसाइटी की अनूमति ही से उसने प्रचार कार्य आरम्भ किया- उसके प्रचार से यहूदी पुजारी अप्रसन्न हुए फल स्वरुप उसे सूली मिली परन्तु सुलि से वह मरा नहीं था | राज कर्मचारियों ने उसे भ्रम से मरा समझ लिया था | क्यों की क्लेश यातना से यशु मूर्छित हो गया था |
सोसाइटी के सदस्य जोसेफ से उसका शव जो वास्तव मे जीवित शरीर था प्राप्त किया तिकोडेमस एक चिकत्सक ने उसकी चिकित्सा की वह अच्छा हो गया और कुछ दिनों तक वह फिर सोसाइटी की देख भाल में कार्य करता रहा अंत में उसकी मृत्यु हुई और समुद्र के एक स्थान में दफ़न किया गया-इस विचार का सम्रथन उस पत्र से होता है जो इंजिलो के लिखेजाने से वर्षों पहले का है और इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है | इस विचार का परिणाम यह है की ईसा के समस्त चमत्कार, और विशेष कर मृत्यु सम्बन्धी सब से बड़ा चमत्कार जिन के कथनों अकथानो से इंजील भरी पड़ी है, निर्मूल और बनावटी, केवल उस समय के अंध विश्वासी लोगो के फुसलाने के लिए उसके शिष्यों द्वारा गढे सिद्ध होते है | और इस परिणाम का फल यह होता है कि इंजीलओ का इंजीलत्व रुखसत हो जाता है | इन इंजीलओ का मुख्य और बड़ा भाग ईसा के उपयुक्त भांति कल्पित चमत्कार ही है |
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