कहा जाता है कि कार्ल मार्क्स ने अपने दर्शन की प्रेरणा हीगल से ली। हीगल जडवादी न था,परन्तु उसकी युक्ति सरणी वही थी जिसको कार्ल मार्क्स ने अपनाया।कार्ल मार्क्स का दावा है कि उसने हीगल के त्रुटिपूर्ण सिद्धांत को युक्ति संगत कर दिया। हीगल सृष्टि मे तीन वस्तुओं को देखता है -वृत्ति,वृत्ति निग्रह वृत्ति समन्वय। अपनी laider s social economics moments infra p.123 मे लिखता है कि – ” hegal s dialectic method conceived that change took place through the struggle of antagonistic elements, and the resolution of these contradictory elements into synthesis, the first two elements forming new concept by virtue of their union…
the thing on being against which the contradiction operated be called the positive ,the antaginisite or thesis was the negation. to hegal the contradiction ,antithesis or nagation was the ‘source of all movent and life ,only in so far as it contains a contradiction can anything have movement ,power and effect ,” A continued operation of the negation led to the negation of negation or synthesis.. ” इस सृष्टि मे एक घटना होती है।फिर उस घटना का विरोध होता है। इससे प्रगति ओर जीवन बनता है।उस विरोध का फिर विरोध होता है।इस प्रकार जीवन समन्वित होता है। अर्थात् सृष्टि के मूल तत्वों को हीगल ने गति,विरोध,ओर समन्वय से परिणत करके विरोध ओर समन्वय से परिणित कर विरोध को मुख्य ठहराया। इसी सिद्धांत को मार्क्स ने सीधा खडा कर दिया। मार्क्स का कहना था कि हीगल के सिद्धांत मे जो वक्रता थी उसे उसने ऋजु कर दिया।परन्तु वास्तविक बात यह है कि न हीगल ने मूल तत्वों की खोज की न मार्क्स ने।ऊपरी घटना पर दृष्टि पाात करने पर मूल तत्व का पता नही चलता है।जिसको तुम ‘विरोधिनी प्रवृत्तियाँ ‘कहतेहो वे पूरक है विरोधी नही।इसका निश्चय तो प्रयोजन पर दृष्टि रखने से हो सकता है।वैज्ञानिक लोग मानते हैं किबीज सडकर ही वृक्ष का निर्माण कर सकता है,इसलिए सडना मूलतत्त्व है।यह है मूल ।”जिस को तुम सडना कहते हो या विनाश कहते हो वह वस्तुत विनाश नही अपितु मूल अंकुर के ऊपर के खोल उतरना है जिससे अंकुरमे स्वतंत्रता से कार्य करने का अवसर मिल जाय। यदि बीज को बोने से बीज का विनाश ही अभिप्रेत होता तो बीज को भुन डालने से भी वृक्ष की उत्पत्ति हो सकती।
जिसको आप सृष्टिक्रम का विरोध कहते है वह वस्तुत विरोधाभास है | विरोध के इस सिद्धांत में कोमुनिस्ट को विरोधप्रिय बना दिया | यह विरोधप्रियता कम्यूनिस्टो के हर काम में पायी जाती है | वह जितना बिगाड़ते है उतना बनाते नही है | क्रान्ति या विरोध उनके समस्त आन्दोलन का मूल है | यह वेद के सर्वथा विरुद्ध है | वेद का अनुयायी सृष्टि पर दृष्टि डालकर ओर हर वस्तु में प्रयोजन बतलाकर ओर समता देख ईश्वर से प्रार्थना करता है –
सा मा शान्तिरेधि -यजु ३६/१७
है ईश्वर ,वही शान्ति मुझे प्रदान कर |
-गंगा प्रसाद उपाध्याय (गंगा ज्ञान धारा से)