घमण्डी अल्लाह
-उन लोगों का रास्ता कि जिन पर तूने निआमत की।। और उनका मार्ग मत दिखा कि जिनके ऊपर तूने ग़ज़ब अर्थात् अत्यन्त क्रोध की दृष्टि की और न गुमराहों का मार्ग हमको दिखा।। मं0 1। सि0 1। सू0 1। आ0 6।7
समी0- जब मुसलमान लोग पूर्वजन्म और पूर्वकृत पाप-पुण्य नहीं मानते तो किन्हीं पर ‘‘निआमत’’ अर्थात् फ़जल वा दया करने और किन्हीं पर न करने से खुदा पक्षपाती हो जायगा, क्योंकि बिना पाप-पुण्य, सुख-दुःख देना केवल अन्याय की बात है। और बिना कारण किसी पर दया और किसी पर क्रोध दृष्टि करना भी स्वभाव से बहिः है। क्योंकि बिना भलाई-बुराई के’ वह दया अथवा क्रोध नहीं कर सकता और जब उनके पूर्व संचित पुण्य-पाप ही नहीं, तो किसी पर दया और किसी पर क्रोध करना नहीं हो सकता | और इस सूरत की टिप्पन पर-‘‘यह सूरः अल्लाह साहेब ने मनुष्यों के मुखसे कहलाई कि सदा इस प्रकार से कहा करें’’, जो यह बात है तो ‘‘अलिफ बे’ आदि अक्षर भी खुदा ही ने पढ़ाये होंगे जो कहो कि नहीं,तो बिना अक्षर ज्ञान के इस सूरः को कैसे पढ़ सके? क्या कण्ठ ही से बुलाए और बोलते गये ? जो ऐसा है तो सब कुरान ही कण्ठ से पढ़ाया होगा। इससे एसेा समझना चाहिये कि जिस पस्तक मे पक्षपात की बात पाई जाये वह पस्तक ईश्वर कृत नहीं हो सकता | जसैा कि अरबी भाषा में उतारने से अरबबालों का इसका पढऩा सुगम, अन्य भाषा बोलने वालों को कठिन होता है, इसी से खुदा में पक्षपात आता है। और जैसे परमेश्वर ने सृष्टिस्थ सब देशस्थ मनुष्यों पर न्याय दृष्टि से सब देश भाषाओं से विलक्षण संस्कृत-भाषा कि जो सब देशवालों के लिये एक से परिश्रम से विदित होती है, उसी में वेदों का प्रकाश किया है, करता तो कुछ भी दोष नहीं होता |
-यह पुस्तक कि जिसमें सन्देह नहीं, परहेज़गारों को मार्ग दिखलाती है।।जो कि ईमान लाते हैं साथ ग़ैब ;परोक्ष के, नमाज पढ़ते, और उस वस्तु से जो हमने दी, खर्च करते हैं।। और वे लोग जो उस किताब पर ईमान लाते हैं, जो तेरी ओर’वा तुझसे पहिले उतारी गई, और विश्वास कयामत पर रखते हैं।। ये लोग अपने मालिक की शिक्षा पर हैं और ये ही छुटकारा पानेवाले हैं।। निश्चय जो काफि़र हुए, और उन पर तेरा डराना न डराना समान है, वे ईमान न लावेंगे।।अल्लाह ने उनके दिलों, कानों पर मोहर कर दी और उनकी आखों पर पर्दा है और उनके वास्ते बड़ा अजाब है।। मं1। सि0 1। सूरः2। आ0 2-71
समी0-क्या अपने ही मुख से अपनी किताब की प्रशंसा करना खुदा की दम्भ की बात नही? जब ‘परहेज़गार’ अर्थात् धार्मिक लोग हैं वे तो स्वतः सच्चेमार्ग में हैं, और जो झूठे मार्ग पर हैं, उनको यह कुरान मार्ग ही नहीं दिखला सकता फिर किस काम का रहा ? क्या पाप-पुण्य और पुरुषार्थ के विना खुदा अपने ही खजाने से खर्च करने को देता है ? जो देता है तो सबको क्यों नहीं देता ? और मुसलमान लोग परिश्रम क्यों करते हैं ?और जो बाइबिल इन्जील आदि पर विश्वास करना योग्य है तो मुसलमान इन्जील आदि पर ईमान जैसा कुरान पर है, वैसा क्यों नहीं लाते ? और जो लाते हैं तो कुरान का होना किसलिये ? जो कहें कि कुरान में अधिक बातें हैं तो पहिली किताब में लिखना खुदा भूल गया होगा। और जो नहीं भूला तो कुरान का बनाना निष्प्रयोजन है। और हम देखते हैं तो बाइबल और कुरान की बातें कोई2 न मिलती होंगी, नहीं तो सब मिलती हैं। एक ही पुस्तक जैसा कि वेद है क्यों न बनाया ? क़यामत पर ही विश्वास रखना चाहिये अन्य पर नहीं ? क्या ईसाई और मुसलमान ही खुदा की शिक्षा पर हैं, उनमें कोई भी पापी नहीं है ? क्या जो ईसाई और मुसलमान अधर्मी हैं, वे भी छुटकारा पावें और दूसरे धर्मात्मा भी न पावें तो बड़े अन्याय और अन्धेर की बात नहीं है ?और क्या जो लोग मुसलमानी मत को न माने उन्हीं को काफि़र कहना वहएकततर्फीडिगरी नहीं है ? जो परमेश्वर ही ने उनके अन्तःकरण और कानों पर मोहर लगाई और उसी से वे पाप करते हैं तो उनका कुछ भी दोष नहीं। यह दोष खुदा ही का है। फिर उन पर सुख-दुःख वा पाप-पुण्य नहीं हो सकता, पुनः उनको सज़ा जज़ा क्यों करता है ? क्योंकि उन्होंने पाप वा पुण्य स्वतंत्रता से नहीं किया |
-उनके दिलों में रोग है, अल्लाह ने उनको रोग बढ़ा दिया।।मं0 1। सि0 1।सू0 2। आ0 101
समी0- भला, विना अपराध खुदा ने उनको रोग बढ़ाया, दया न आई, उन बिचारों को बड़ा दुःख हुआ होगा। क्या यह शैतान से बढ़कर शैतानपन का कामनहीं है ? किसी के मन पर मोहर लगाना, किसी को रोग बढ़ाना, यह खुदा का काम नहीं हो सकता। क्योंकि रोग का बढ़ना अपने पापों से है |