दूसरे मतों के प्रति मुसलमानों की असहनशीलता :
-सब स्तुति परमेश्वर के वास्ते हैं जो परवरदिगार अर्थात् पालन करनहारा है सब संसार का क्षमा करने वाला दयालु है | मं. 1। – सि. 1। सूरतुल्फातिहा आयत 1। 2
समीक्षक – जो कुरान का खुदा संसार का पालन करने हारा होता और सब पर क्षमा और दया करता होता तो अन्य मत वाले और पशु आदि का भी मुसलमानों के हाथ से मरवाने का हुक्म न देता । जो क्षमा करनेहारा है तो क्या पापियों पर भी क्षमा करेगा ? और जो वैसा है तो आगे लिखेंगे कि “काफिरों का कतल करो” अर्थात् जो कुरान और पैगम्बर को न माने वे काफिर हैं एसा क्यों कहता ? इसलिये कुरान ईश्वर कृत नहीं दीखता |
-जो तुम उस वस्तु से सन्देह में हो जो हमने अपने पैगम्बर के उपर उतारी तो उस क़ैसी एक सूरत ले आओ और अपन साक्षी अपने लोगों को पुकारो अल्लाह के विना जो तुम सच्चे हो | जो तुम और कभी न करागे तो उस आग से डरो कि जिस का ईंधन मनुष्य है, और काफिरों के वास्ते पत्थर तैयार किये गये हैं | – मं-1। सि-1। सू-2। आ-23। 24
समीक्षक– भला यह कोई बात है कि उस के सदृश कोई सूरत न बने क्या अकबर बादशाह के समय में मौलवी फैजी ने बिना नुकते का वफरान नही बना लिया था. वह कौन सी दोजख की आग है ? क्या इस आग से न डरना चाहिये ? इस का भी इन्ध्न जा कुछ पड़े सब है। जैसे कुरान में लिखा है कि काफिरों के वास्ते दोजख की आग तैयार की गई है तो वैसे पुराणों में लिखा है कि म्लेच्छों के लिए घोर नरक बना है ! अब कहिय किस की बात सच्ची मानी जाय | अपने-अपने वचन से दोनों स्वर्गगामी और दूसरे के मत से दोनों नरकगामी होते हैं। इसलिए इन सब का किन्तु जो धार्मिक हैं वे सुख और जो पापी हैं वे सब मतों में दुःख पावेंगे |
जो लोग अल्लाह के मार्ग में मर जाते हैं उन के लिए यह मत कहो कि ये मृत हैं किन्तु जीवित हैं. मं – १ सि -२ सू २ आ १४५
समीक्षक – भला ईश्वर के मरने मारने की आवश्यकता है ? यह क्यों नहीं कहते हो कि यह बात अपने मतलब सिद्ध करने के लिए है कि यह लोभ देंगे तो लोग खूब लड़ेंगे अपना विजय होगा , मारने से न डरेंगे, लूट मार कराने से ऐश्वर्य प्राप्त होगा; पश्चात विषयानन्द करेंगे इत्यादि स्वप्रयोजन के लिए यह विपरीत व्यवहार किया है
– और यह कि अल्लाह कठोर दुःख देने वाला है | शैतान के पीछे मत चलो निश्चय वो तुम्हारा प्रत्यक्ष शत्रु है. उसके बिना और कुछ नहीं कि बुराई और निर्लज्जता की आज्ञा दे. और यह कि तुम कहो अल्लाह पर जो नहीं जानते। मं -१, सि -२,सूरा -२ आ १६८ ,१६९ ,१७०
समीक्षक – क्या कठोर दुःख देने वाला दयालु खुद पापियों पुण्यात्माओं पर है अथवा मुसलामानों पर दयालु और अन्य पर दयाहीन है. जो ऐसा है तो वह ईश्वर नहीं हो सकता। और पक्षपाती नहीं है तो जो मनुष्य कहीं धर्म करेगा उस पर ईश्वर दयालु और जो अधर्म करेगा उस पर दण्ड दाता होगा तो फिर बीच में मुहम्मंद साहेब और क़ुरान को मानना आवश्यक न रहा। और जो सब को बुराई करने वाला मनुष्यमात्र का शत्रु शैतान है उस को खुदा ने उत्पन्न ही क्यों किया ? क्या वह भविष्यत् की बात नहीं जानता था ? जो कहो कि जानता था परन्तु परीक्षा के लिए बनाया तो भी नहीं बन सकता क्योंकि परीक्षा करना अल्पज्ञ का काम है सर्वज्ञ तो सब जीवों के अच्छे बुरे कर्मों को सदा से ठीक ठीक जानता है और शैतान सब को बहकाता है तो अन्य भी आप से आप बहक सकते हैं बीच में शैतान का क्या काम ? और जो खुदा ही ने शैतान को बहकाया तो खुदा शैतान का भी शैतान ठहरेगा। ऐसी बात ईश्वर की नहीं हो सकती। और जो बहकाता है वह कुसंग तथा अविद्या से भ्रांत होता है.
-तुम पर मुर्दार, लोहू और गोश्त सूअर का हराम हैऔर अल्लाह के विना जिस पर कुछ पुकारा जावे | – मं- 1। सि- 2। सू- 2। आ- 173
समीक्षा – यहां विचारना चाहिये कि मुर्दा चाहे आप से आप मरे वा किसी के मारने से दोनों बराबर है। हाँ! इनमे कुछ भेद भी है तथापि मृतकपन में कुछ भेद नही। और जब एक सूअर का निषेद किया तो क्या मनुष्य का मांस खाना उचित है क्या यह बात अच्छी हो सकती है कि परमेश्वर के नाम पर शत्रु आदि को अत्यन्त दुःख देकर प्राणहत्या करनी | इससे ईश्वर का नाम कलंकित हो जाता है। हां! ईश्वर ने विना पूर्वजन्म के अपराध के मुसलमानों के हाथ से दारुण दुःख क्यों दिलाया ? क्या उन पर दयालु नहीं है ? उन को पुत्रवत नहीं मानता ?
जिस वस्तु से अधिक उपकार होवे उन गाय आदि के मारने का निषेध न करना जानो हत्या कर खुदा जगत का हानिकारक है। हिंसारूप पाप से कलंकित भी हो जाता है. ऐसी बातें खुदा और खुदा के पुस्तक की कभी नहीं हो सकतीं |
-और अपने हाथों को न रोकें तो उन को पकड़ लो और जहाँ पाओ मार डालो। मुसलमान को मुसलमान का मारना योग्य नहीं। जो कोई अनजाने से मार डाले बस एक गर्दन मुसलमान का मारना योग्य है और खून बहा उन लोगों की और सोंपी हुयी जो उस कौन से होंवें और तुम्हारे लिए दान कर देवें जो दुश्मन की कौम से अरु जो कोई मुसलमान को जाना कर मार डाले वह सदैव काल दोजख में रहेगा उस पर अल्लाह का क्रोध और लानत है | म – १. सी -५ सु ४ आ ९१, ९२, ९३
समीक्षका – अब देखिय महा पक्षपात की बात कि जो मुसलमान न हो उस को जहाँ पाओ मार डालो और मुसलामानों को न मारना। भूल से मुसलामानों के मारने में प्रायश्चित और अन्य को मरने से बहिश्त मिलेगा ऐसे उपदेश को कुए में डालना चाहिए। ऐसे एसी पुःतक ऐसे ऐसे पैगम्बर ऐसे एसी खुदा और ऐसे ऐसे मत से सिवाय हानि के लाभ कुछ भी नहीं। ऐसों का न होना अच्छा और ऐसे प्रामादिक मतों से बुद्धिमानो को अलग रह कर वेदोक्त सब बातों को मानना चाहिए क्योंकि उस में असत्य किंचित मात्र भी नहीं है। और जो मुसलमान को मारे उस को दोजख मिले और दूसरे मत वाले कहते है कि मुसलमान को मरे तो स्वर्ग मिले। अब कहो इन दोनों मतों में से किस को माने किस को छोड़े? किन्तु ऐसे मुड़ प्रकल्पित मतों को छोड़ कर वेदोक्त मत स्वीकार करने योग्य सब मनुष्यों के लिए है कि जिस में आर्य मार्ग अर्थात श्रेष्ठ पुरुषों के मार्ग में चलना और दस्यु अर्थात दुष्टों के मार्ग से अलग रहना लिखा है ; सर्वोत्तम है।
– और शिक्षा प्रकट होने के पीछे जिस ने रसूल से विरोध किया और मुसलमानो से विरुध्द पक्ष किया अवश्य हम उनको दोजख में भेजेंगे। म -१ सी ५ सूरत ४ आयत ११५
समीक्षक – अब दिखिए खुदा और रसुल की पक्षपात की बातें ! मुहम्मद साहेब आदि समझते थे कि जो खुदा के नाम से ऐसी हम न लिखेंगे तो अपना मजहब न बढ़ेगा और पदार्थ न मिलेंगे आनंद भोग न रहेगा इसी से विदित होता है कि वे अपने मतलब करने में पुरे थे और नय के प्रयोजन बिगाड़ने में| इस से ये अनाप्त थे इनकी बात का प्रमाण आप्त विद्वानों के सामने कभी नहीं हो सकता।
-जो अल्लाह फरिश्तों किताबों रसूलों और क़यामत के साथ कुफ्र करे निश्चय वह गुमराह है। निश्चय जो लोग इस्मान लाये फिर काफिर ईमान लाये पुनः फिर गए और कुफ्र में अधिक बड़े। अल्लाह उनको कभी क्षमा न करेगा और न मार्ग दिखलावेगा। म -१ सी ५ सु ४ आ १३६/१३७
समीक्षक – क्या अब भी खुदा लाशरीक रह सकता है ? क्या लाशरीक कहते जान और उस के साथ बहुत से शरीक भी माते जाना यह परस्पर विरुध्द बातें नहीं हैं ? क्या तीन बार क्षमा के पश्चात् खुद क्षमा नहीं करता ? और तिन बार कुफ्र करने पर रास्ता दिखलाता है ? वे छुत ही बार से आगे नहीं दिखलाता ? यदि चार चार बार भी कुफ्र सब लोग करें तो कुफ्र बहुत ही बढ़ जाए।।
-निश्चय अल्लाह बुरे लोगों और काफिरों को जमा करेगा दोजख में। निश्चय बुरे लोग धोका देते हैं अल्लाह को और उनको वह धोखा देता है। ऐ ईमान वालो ! मुसलमानों को छोड़ काफिरों को मित्र न बनाओ म -१ सी – सु ४ आ १४० ,१४२,१४४
समीक्षक – मुसलमानों के बहिश्त और अन्य लोगों के दोजख में जाने का प्रमाण ? वाह जी वाह ! बुरे लोगों के धोखे में आता और अन्य को धोखा देता है ऐसा खुद हम से अलग रहे किन्तु जो धोकेबाज है उन से जाकर मेल करे वो वे उस से मेल करें। क्योंकि :यादृशी शीतला देवी तादृशः खरवाहन : जैसे को तैसा मिले तभी निर्वाह होता है। जिस का खुदा धोख़ेबाज़ है उस के उपासक लोग धोखेबाज क्यों न हों? क्या दुष्ट मुसलमान हो उस से मित्रता और अन्य श्रेष्ठ मुसलमान भिन्न से शत्रुता करना किसी को उचित हो सकती है |