‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-तत्त्व और चिन्तन’ पुस्तक मेरे सामने है। इसके पृष्ठ 19 पर सिद्धान्त और व्यवहार के टकराव या दूरी पर डॉ. हेडगेवार जी की चेतावनी संघ को ही रास नहीं आ रही। ‘‘संसार असार है, यह जीवन मायामय है, आदि तात्त्विक बातें केवल पुस्तकों में ही शोभा देती है।’’ इस सोच को आप पतन का कारण मानते हैं। जगत् मायामय है, मिथ्या है। विवेकानन्द भी तो यही मानते थे। जगत् मिथ्या है तो फिर जगत्गुरु किसके गुरु हैं?
‘‘मुझे एक भी उदाहरण बतावें जहाँ कहीं किसी मनुष्य के केवल पूजा-पाठ करने से सौ रुपये उसके चरणों पर आ पड़े हों। ऐसा तो कभी नहीं होता।’’ यह चिन्तन मनन ऋषि दयानन्द का है। शब्द डॉ. हेडगेवार जी के हैं परन्तु राष्ट्रधर्म ने तो तेलंग स्वामी के चमत्कारों की झड़ी-सी लगा दी थी।
अवतारवादी सोच पतन का एक कारणः– इसी पुस्तक के पृष्ठ 45 से 47 तक पढ़िये। इसका बहुत थोड़ा अंश आज देंगे। विस्तार से फिर लिखेंगे। डॉ. हेडगेवार जी के घर एक अतिथि (सभवतः उनके मामाजी थे) पधारे। उनको पूजा-पाठ करते देखकर आपने एक प्रश्न पूछ लिया। वह भड़क उठे और बोले, ‘‘आप रामचन्द्र जी और भगवान् का उपहास करते हैं? भगवान् के गुण कभी मनुष्य में आ सकते हैं? हम लोग गुण ग्रहण करने की दृष्टि से नहीं, अपितु पुण्य-संचय और मोक्ष-प्राप्ति के लिए ग्रन्थ पाठ करते हैं।’’
इस पर डॉ. हेडगेवार जी ने यह प्रतिक्रिया दी, ‘‘जहाँ कहीं भी कोई कर्त्तव्यशाली या विचारवान् व्यक्ति उत्पन्न हुआ कि बस हम उसे अवतारों की श्रेणी में ढ़केल देते हैं, उस पर देवत्व लादने में तनिक भी देर नहीं लगाते।’’
संघ को डॉ. हेडगेवार जी का यह विचार भी रास नहीं आया। गुरु गोलवलकर जी ने उनकी भव्य समाधि बनवा दी और फिर गुरु जी की भी वैसी ही बनानी पड़ गई। डॉ. हेडगेवार जी ने छत्रपति शिवाजी व गुरु रामदास से प्रेरणा लेने को कहा। घिसते-घिसते वे सब घिस गये। सबका स्थान विवेकानन्द जी ने ले लिया। गुजरात के पड़ौस में जन्मे शिवाजी व गुजरात में जन्मे ऋषि दयानन्द को गुजरात से निष्कासित कर दिया गया है। जिस महर्षि दयानन्द पर भाव-भरित हृदय से सरदार पटेल ने अन्तिम भाषण दिया, उस पर अवतारवादियों की इस कृपा पर हम बलिहारी।
कावड़िये दुर्घटना ग्रस्तः– हिन्दुओं के तीर्थ यात्री वर्षभर दुर्घटना ग्रस्त होते रहते हैं। जड़ बुद्धि, पाषण हृदय तथाकथित हिन्दू नेता इनके कारण और निवारण पर सोचते ही नहीं। परोपकारी में हर बार इन दुःखद घटनाओं पर हम रक्तरोदन करते रहते हैं। अभी दूरदर्शन पर बिहार के भोलेभाले काँवड़ियों के मरने का समाचार सुनकर हृदय पर गहरी चोट लगी। रो-रो कर हमारे नयनों में भी नीर नहीं। आर्यसमाज की तो यह अंधविश्वासी हिन्दू समाज सुनता नहीं। राजनेता ही अब तो हिन्दुओं के धार्मिक व्यायाकार बने बैठे हैं। हम किसको अपना रोना सुनावें। बाबा रामदेव ने भी कभी काँवड़ियों को महिमा मण्डित किया था। काँवड़ियों के काल कराल के गाल में विलीन होने पर बाबा रामदेव भी अभी तक तो मौन हैं।
आर्यसमाज के पाखण्ड खण्डन पर अंधविश्वासी खीजते हैं। अब पता लगा कि अंधविश्वास के पोषकों की कृपा से हिन्दू मरते रहते हैं। जब प्रत्येक कुरीति हिन्दू संस्कृति के नाम पर महिमा-मण्डित की जायेगी तो विनाश व पतन ही होगा।