पक्षी पिंजड़ा छोडक़र चला गया कोई देश,
डॉ. धर्मवीर की अब स्मृतियाँ ही शेष।
स्मृतियाँ ही शेष नाम इतिहास बन गया,
लेकिन हम लोगों में यह दुख खास बन गया।
लेकिन हमको याद रहे हम जिस पथ के हैं अनुगामी,
देह स्वरूप मरण धर्मा है आत्मा तत्व अपरिणामी।
मन में उनकी ले स्मृतियां याद करें अवदान को,
आर्य समाजी इस योद्धा के ना भूलें बलिदान को।
और सब मिलकर यही प्रार्थना सदा करें भगवान् से,
जो अनवरत् चला करता है चलता जाये शान से।
उनके लक्ष्यों को धारण कर ऐसा इक परिवेश बने,
वेदभक्त हो सकल विश्व यह गुरु फिर भारत देश बने।
कृतज्ञता ज्ञापन
-आनन्दप्रकाश आर्य
जिन क्षेत्रों में आर्य समाज शिथिल था सपने टूट रहे थे।
धर्मवीर जी के उपदेशों से अब वहाँ अंकुर फूट रहे थे।।
समाचार मिला ये दु:खद अचानक कि जहाँ से धर्मवीर गये।
ये शब्द सुने जिस आर्य ने उसका ही कलेजा चीर गये।।
परोपकारिणी सभा में छटा बिखेरी ज्योत्स्नापुंज चमत्कारी थे।
उत्तराधिकारिणी सभा में ऋषि के सच में उत्तराधिकारी थे।।
आर्यसमाज का यशस्वी योद्धा महा विद्वान् रणधीर गया।
दयानन्द के तरकश में से मानो एक अमूल्य तीर गया।।
देह चली गई तो क्या घुल गये हो सबकी आवाजों में।
हे धर्मवीर! तुम रहोगे जिन्दा हर जगह आर्यसमाजों में।।