दियत (हर्जाना)
मुहम्मद ने रक्तपात-शोध की पुरानी अरब प्रथा को बरक़रार रखा (4166-4174)। अतएव जब एक औरत ने अपनी गर्भवती सौत को लाठी मारी और सौत का गर्भपात हो गया, तो उसके लिए मुहम्मद ने ”उस गर्भ में जो था“ उसके एवज में ”सबसे बढ़िया किस्म के एक मर्द या औरत गुलाम“ को हर्जाने के रूप में निश्चित किया। उस औरत के एक मुखर रिश्तेदार ने हर्जाना माफ़ करने की पैरवी की और तर्क दिया कि ”क्या हमें किसी ऐसे के लिए हर्ज़ाना देना चाहिए जिसने न कुछ खाया और न कोई शोर किया और जो न-कुछ के समान था।“ मुहम्मद ने उसके एतराज को ठुकरा दिया और कहा कि वह ”काफिया-बन्द मुहावरे बोल रहा है, जैसे कि रेगिस्तान के अरब बोलते रहते हैं (4170)।
author : ram swarup