देव दयानंद अकेला था…….
थे न मठ मंदिर हवेली हाट ठाट बाट ,
सोना चांदी कहाँ पास पैसा था न धेला था |
तन पै न थे सुवस्त्र हाथ थे न अस्त्र शस्त्र ,
जोगी न जमात कोई चेली थी न चेला था ||
सत्य की सिरोही से संहारे सब मिथ्या मत ,
संकट विकट मर्दानगी से झेला था |
सारी दुनियां के लोग एक तरफ थे प्रकाश,
एक ओर अभय दयानंद अकेला था ||