कुछ मासाहारी ,मुस्लिम ,राजपूत समुदाय (केवल मासाहारी ),कामरेड वादी ,संस्कृति द्रोही लोग सनातन धर्म में मासाहार सिद्ध करने के लिए राजा दशरथ द्वारा शिकार पर जाना ओर हिरण के धोखे में श्रवण को मारने का उलेख करते है | लेकिन उनकी यह बात बाल्मिक रामायण के अनुरूप नही है वे लोग आधा सच दिखाते है ओर आधा छुपाते है | राज्य व्यवस्था व न्याय के निपुण आचार्य चाणक्य (ऋषि वात्साययन ) भी अपने सूत्रों में शिकार का निषेध बताते हुए लिखते है – ” मृगयापरस्य धर्मार्थो विनश्यत ” (चाणक्यसूत्राणि ७२ ) अर्थात आखेट करने वाले ओर व्यवसनी के धर्म अर्थ नष्ट हो जाते है | जब इस काल के आचार्य निषेध करते है तब दशरथ के समय जब एक से बढ़ एक ऋषि थे जेसे वशिष्ठ ,गौतम ,श्रृंगी ,वामदेव ,विश्वामित्र तब कैसे दशरथ शिकार कर सकते है | रामयाण के अनुसार दशरथ वन में शिकार के लिए नही बल्कि व्यायाम के लिए गये थे जेसा कि बाल्मिक रामायण के अयोध्याकाण्ड अष्टचत्वारिश: सर्ग: में आया है –
तस्मिन्निति सूखे काले धनुष्मानिषुमान रथी |
व्यायामकृतसंकल्प: सरयूमन्वगान्नदीम ||८||
अथान्धकारेत्वश्रौष जले कुम्भस्य पूर्यत: |
अचक्षुर्विषये घोष वारणस्येवनर्दत: ||
अर्थ – उस अति सुखदायी काल में व्यायाम के संकल्प से धनुषबाण ले रथ पर चढ़कर संध्या समय सरयू नदी के तट पर आया ,वहा अँधेरे में नेत्रों की पहुच से परे जल से भरे जाते हुए घट का शब्द मैंने इस प्रकार सूना जेसे हाथी गर्ज रहा हो ||
यहा पता चलता है कि वे व्यायाम हेतु गये थे ओर उन्हें जो शब्द सुनाई दिया वो हाथी की गर्जना समान सुनाई दिया न कि हिरण के समान …
राजा दशरथ इसे हाथी समझ बेठे और उन्होंने इसे वश में करना चाहा | ये हम सभी जानते है कि राजाओं की सेना में हाथी रखे जाते है उनहे प्रशीक्षण दिया जाता है ये हाथी जंगल से पकड़े जाते है और हाथी पकड़ने के लिए उसे या तो किसी जगह फसाया जाता है या फिर बेहोश कर लाया जाता है अत: हाथी को बेहोश कर वश में करने के लिए दशरथ ने तीर छोड़ा न कि जीव हत्या या शिकार के उद्देश्य से |
हाथी को सेना में रखने का उद्देश्य चाणक्य अपने अर्थशास्त्र में बताते है –
” हस्तिप्रधानो हि विजयो राज्ञाम | परानीकव्यूहदुर्गस्कन्धावारप्रमर्दना ह्मातिप्रमाणशरीरा: प्राणहरकर्माण हस्तिन इति ||६ || (अर्थशास्त्र भूमिच्छिद्रविधानम ) अर्थात हस्तिविज्ञान के पंडितो के निर्देशानुसार श्रेष्ठ लक्षणों वाले हाथियों को पकड़ते रहने का अभियान सतत चलाना चाहिए ,क्यूंकि श्रेष्ठ हाथी ही राजा की विजय के प्रधान और निश्चित साधन है | विशाल और स्थूलकाय हाथी शत्रु सेना को , शत्रुसेना की व्यूह रचना को दुर्ग शिविरों को कुचलने तथा शत्रुओ के प्राण लेने में समर्थ होते है और इससे राजा की विजय निश्चित होती है |
राजा दशरथ ने भी हाथी को प्राप्त करने के लिए बाण छोड़ा था न कि मारने के लिए इसकी पुष्टि भी रामयाण के अयोध्याकाण्ड अष्टचत्वारिश सर्ग से होती है –
ततोअहम शरमुध्दत्य दीप्तमाशीविषोपमम |
शब्द प्रति गजप्रेप्सुरभिलक्ष्यमपातयम ||
तत्र वागुषसि व्यक्ता प्रादुरासीव्दनौकस: |
हां हेति पततस्तोये वाणाद्व्यथितमर्मण:||
राजा दशरथ कहते है कि तब मैंने हाथी को प्राप्त करने की इच्छा से तीक्ष्ण बाण निकालकर शब्द को लक्ष्य में रखकर फैंका ,और जहा बाण गिरा वहा से दुखित मर्म वाले ,पानी में गिरते हुए मनुष्य की हा ! हाय ! ऐसी वाणी निकली ||
तो पाठक गण स्वयम ही देखे राजा दशरथ हाथी को वश में प्राप्त करना चाहते थे लेकिन ज्ञान न होने से तीर श्रवण को लग गया | ओर सम्भवत तीर ऐसा होगा (या तीर में लगा कोई विष ) जिससे हाथी आदि मात्र बेहोश होता है लेकिन मनुष्य उसे सह नही पाता और प्राण त्याग देता है इसलिए श्रवण उस तीर के घात को सह नही सका और प्राण त्याग दिए |
अत: शिकार और मासाहार के प्रकरण में दशरथ का उदाहरण देना केवल एक धोखा मात्र है |
अति सूंदर !!
आपका लेख सत्य और झूठ का पर्दाफास करने वाला है ।।
तो क्या वे नहीं गये थे? और क्या उन्हों ने हाथी के पानी पीते समय जैसे को सुनकर उस भ्रम में श्रवण कुमार को नहीं मार दिया था?
विद्वान् लेखके ने यह भी लिखा है कि वे शिकार करने नहीं प्रत्युत व्यायाम करने के लिये गये थे? परन्तु क्या उसके लिये धनुष बाण लेकर और रथारूढ होकर जाया जाता है?
आपने लेख को अति सुन्दर और असत्य का पर्दा फास करने वाला बतलाया है। परन्तु कैसे और किस असत्य का पर्दा फास किया गया है इसमें और कैसे?
सादर सविनय,
डा० रणजीत सिंह (यू०के०)
hmne jo likha hai raamyan se likha hai vaha spsht vyaayaam shbd hai ..ab rhi aapki baat kyun gye to vyaaym ke liye gye ..van me ekaant mil jata hai jaha vyaayam sndhya aadi ho jati hai ..fir aapne pucha dhanush le kr kyun gye ..are bhaai vo koi chhote mota insan nhi tha kaushal pur ka raja tha or raja pr kb jaane konsa sankat aa jaaye .isliye dhanusha baan le kr gye ..aaj kal neta log bhi kai shaanti vaarta ke liye jaate hai to army ka kafila sath le kr jaate h
to dasrth apne sath dhanush baan vaniya pashu ,vaniya daaku aadi se surksha ke liye le gye …ab hathi ki baat to maine post me sb bta diya hai aavaaj sun use vash me krna uddeshya tha jo pura post me likha hai lekin fir bhi aap puch bethe ,,shrvan mar gya ye satya hai lekin dhokhe me mra jaanbujh nhi ..
“वश में करना उद्देश्य” इस बातको बतलाने, इसको दर्शाने वाले शब्द उस समूच प्रसङ्ग में कहाँ और कौनसे हैं; क्या आप बतलायेंगे? उसके बिना यह कैसे विदित हो सकेगा/ सिद्ध हो पायगा?
‘तस्मिन्नतिसुखे काले’ यह पद आपके दिये श्लोकमें क्यों और क्या दर्शाने के लिये आये थे; तथाच, क्या व्यायाम करने के लिये घोर अन्धकार और मध्य रात्रिमें और दूर नदी तटपर जाया जाना हुआ करता है? राज्य-प्रासाद के उद्यान में क्या वह सम्पादित नहीं हो सकता? (शेष आगे)
(विगत से आगे)
श्लोक २०,२२ तो आपने उद्धृत किये, परन्तु मध्यवर्ती २१वां क्यों छोड़ दिया; उसे उद्धृत क्यों नहीं किया? क्या इसीलिये न कि उसमें ‘जिघांसुरजितेन्द्रियः’ आये पद आपकी परिकल्पना, आपके थीसिस को खण्डित करते थे? उनसे मृगया के लिये जाना स्पष्ट सिद्ध होता था?
यदि नहीं; तो बतलाइये ‘जिघांसुः’ पदका क्या अर्थ होता है। वह क्या दर्शाता है; क्या प्रकाश डालेंगे? इतना ही नहीं, श्लोक १४ में आये ‘प्रावृडानुप्राप्ता मम कामविवर्धनी’ पदों की क्या आवश्यकता, क्या औचित्य था? (क्रमशः)
(विगत से आगे) क्या काम बढने और कामुकता का उद्रेक होने पर ही व्यक्ति व्यायाम के लिये प्रवृत्त होता है? उसकी इच्छा जागृत होती है?
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,
डा० रणजीत सिंह
कितना समय लगा करता है आपको मौडरेट करने के लिये आदरणीय महोदय?
कब तक हमारे कौमैन्ट को मौडरेशन के लिये अवेट करना पडे़गा मौडरेटर महोदय?
अब विश्वाश हुआ है जय जय राम
अब विश्वास हआ है जय राम जय जय राम
हम जहाँ भी प्रभु राम की तस्वीर देखते हैं, चाहे वो राज्याभिषेक की हो, चाहे सीता माता के साथ हो वो धनुष बाण आदि लिए सुसज्जित दीखते हैं, क्या कभी आपने सोचा ऐसा क्यों ? क्योंकि क्षत्रिय का धर्म है, किसी भी परिस्थिति में अपने युद्ध सामान को न छोड़े, इसलिए वो धारण किये रहते हैं, ऐसे ही शंकर जी त्रिशूल के साथ, हनुमान जी गदा के साथ और अन्य देवी देवता अपने अपने शस्त्र के साथ दीखते हैं, क्योंकि ये क्षत्रियो का धर्म है और धर्म का त्याग नहीं होता, अतः वो भी शस्त्र आदि अपने साथ लेकर गए
मान्य श्री रजनीश बंसलजी,
मान्यवर! शङ्का तो युगपत् यह भी उठायी गयी थी कि क्या व्यायाम करने के लिये/ व्यायामके उद्देश्य से घोर अन्धकार मयी मध्यरात्री में भी कभी जाया जाता है, कि वे इसके लिये गये होंगे? इस कार्यके लिये क्या यह समय उचित होता है/ समझा जाता है या कहीं भी, किसी भी शास्त्र में कहा गया/ निश्चित किया, निर्धारित किया गया है? किस में? तथाच क्या यह समय निद्रा के लिये निश्चित होता है अथवा व्यायाम करने के लिये?
(शेष आगे)
(विगत से आगे)
प्रभु रामका धनुषबाण लिये सुसज्जित रहना तो क्षत्रिय धर्मानुसार समझ में आता है, परन्तु शंकरजी, हनुमानजी एवं अन्यान्य देवी देवताओं पर आप इसे कैसे घटा रहे हैं? कारण वे तो क्षत्रिय नहीं हैं। रामजी तो आयुधों के साथ अवश्य होते हैं परन्तु सीता जी कब हुआ करती हैं? इसके विपरीत माँ दुर्गा काली आदि स्व-आयुधों के सहित होती हैं। इसे आप कैसे विशद करेंगे/ समझाँयगे? क्या ये सब भी क्षत्रिय हैं और क्षत्रियधर्मका पालन कर रहे होते हैं? यदि हाँ; तो क्या जान सकते हैं कि कैसे?
डा० रणजीत सिंह (यू०के०)
क्षत्रिय जन्म से नहीं कर्म से होता है श्रीमान जी, सीता जी क्षत्रिय नहीं थी क्योंकि वो युद्ध नहीं लड़ी, लेकिन दुर्गा आदि माता शस्त्र और आयुध सहित चित्रित होती हैं, अतः वो क्षत्राणी थी, इसके आलावा अनेको देवी देवता जो अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित रहते वो सब क्षत्रीय हैं, रही बात दशरथ जी की तो प्रभात और संध्यबेला दोनों समय संध्या की जाती है, उस श्लोक में सायं (संध्या) का जिक्र है ध्यानपूर्वक पढ़े क्योंकि जंगल घना होता है अतः संध्या समय में भी वो मध्यरात्रि के समय सा प्रतीत हो रहा था, ऐसा लिखा है,
अतः सिद्ध है की दशरथ सायं समय व्यायाम के लिए गए होंगे, या फिर संध्या करने। एक बात और स्पष्ट कर दू, सीता माता एक क्षत्रिय राजा जनक की पुत्री थी, परन्तु वो युद्ध में नहीं लड़ी सिद्ध है इसलिए उनके हाथ में अस्त्र शस्त्र नहीं दीखते और काली, दुर्गा आदि के हाथो में शस्त्रों का अम्बार है, अतः सिद्ध है की जन्म से क्षत्रिय नहीं कर्म से क्षत्रिय होता है। आशा है आप समझ पाएंगे।
Dr ranjit aap kya saabit karna chahte hai…mansahari manusya
फिर वही बात! “Your comment is awaiting moderation”। But how long Sir? क्या अनिश्चित काल तक के लिये?
Dear Dr. Ranjeet Singh,
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