महर्षि दयानन्द जी का प्रादुर्भाव विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। महर्षि का बोध पर्व उससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण घटना है। आज पूरे विश्व में मानव के अधिकारों तथा मानव की गरिमा का मीड़िया में बहुत शोर मचाया जाता है। ऋषि के प्रादुर्भाव से पूर्व मानव के अस्तित्व का धर्म व दर्शन में महत्व ही क्या था?
बाइबिल की उत्पत्ति की पुस्तक में आता है कि परमात्मा ने जीव, जन्तु, पक्षी, प्राणी पहले बनाये फिर उसने कहा, ‘‘Let us make man in our image’’ अब नये बाइबिल में श द बदल गये हैं। अब हमें पढ़ने को मिलता है, ‘‘Let us make human beings in our image, in our likeness.’’ अर्थात् परमात्मा ने कहा हम ‘पुरुष को’ (अब मानवों को) अपनी आकृति जैसा और अपने सरीखा बनायें। यह कार्य छठे दिन किया गया। मानव की इसमें गरिमा क्या रही? वह जीव-जन्तुओं से पीछे बनाया गया और क्यों बनाया गया? इसका उत्तर ही नहीं।
इस्लाम में मनुष्य को बन्दः कहा जाता है और भक्ति को उपासना को बन्दगी कहा जाता है। बन्दः का अर्थ है दास और बन्दगी का अर्थ दासता, सेवा करना आदि। तो यहाँ भी मानव की गरिमा क्या हुई? अबादत का अर्थ भी बन्दगी-दासता ही है। हिन्दू तो जगत् को मिथ्या व ब्रह्म को-केवल ब्रह्म की सत्ता को स्वीकार करते थे। कुछ आत्मा को अनादि भी मानते थे। सब कुछ अस्पष्ट था।
महर्षि दयानन्द जी ने सिंह गर्जना करके कहा कि ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीनों अनादि हैं। तीनों की सत्ता है। जीव की कर्म करने की स्वतन्त्रता का घोष करके ऋषि मानव की गरिमा पहली बार इस युग में संसार को बताई।
जहाँ कर्ता है, वहीं क्रिया होगी और जहाँ क्रिया है वहाँ कर्ता को मानना पड़ता है। सूर्य, चन्द्र, तारे, ग्रह, उपग्रह सब गति करते हैं। गति देने वाले परमात्मा की सत्ता तो स्वतः सिद्ध हो गई। उपादान कारण के बिना आज भी कुछ बनते नहीं देखा गया सो जगत् के उपादान कारण प्रकृति का अनादित्व भी सिद्ध हो गया। विज्ञान ऐसा ही मानता है। यह महर्षि दयानन्द की विश्व को बहुत बड़ी देन है।
मनुष्य की उत्पत्ति की बात चली तो यह भी जान लें कि बाइबिल में आता है I give you every seed bearing plant on the face of the whole earch and every tree that has fruit with seed in it. They will be yours for fodd. फिर लिखा है, Trees that were pleasing to the eyes and good for food.
अर्थात् दो बार ईश्वर ने बाइबिल के अनुसार शाकाहार को मानव का पवित्र भोजन बताया व बनाया। यही वेदादेश है परन्तु ईसाई व मुसलमान ही मांसाहार व पशुहिंसा में अग्रणी हैं। ऋषि ने पेड़, पौधों, जलचर, नभचर व गाय आदि सब प्राणियों की मानव कल्याण व विश्व शान्ति के लिये सुरक्षा को आवश्यक बताया।
ऋषि बोध पर्व के दिन ऋषि के जन्म-जन्मान्तरों के संस्कार जाग उठे। उन्हें पता चला कि ईश्वर वह नहीं जिसे हम बनाते हैं। ईश्वर वह है जो सृष्टि का कर्ता है। ईश्वर खाता नहीं, वह खिलाता है। वह भोक्ता नहीं भोग देता है। वह द्रष्टा है। कर्म फल का भोग करने वाला जीव है। सर सैयद अहमद ने लिखा कि शिवरात्रि के दिन दयानन्द जी को जो ज्ञान हुआ क्या वह इलहाम (ईश्वरीय ज्ञान) नहीं था? आत्मा को प्रभु की आवाज सुनाई न दे तो दोष किसका? ऋषि ने स्वयं लिखा है कि आत्मा में नित्य गूञ्जने वाली आपकी आवाज को प्रभु हम सुनते रहें। मन में भय, लज्जा और शङ्का जो दुष्कर्म, पाप करते समय मनुष्य के मन में उत्पन्न होती है, ऋषि ने इसे ईश्वर की आवाज बताया है। पश्चिम के विद्वान् ने भी इसी बात को इन शब्दों में कहा है, there is a candle of the lord within us अर्थात् हमारे भीतर प्रभु की एक बत्ती प्रकाश करती रहती है।
महर्षि दयानन्द अपनी काया से बलवान् थे, वे अपने मन व मस्तिष्क से बलवान् थे और अपने आत्मा से भी महान् व बलवान् थे। कोलकाता विश्वविद्यालय के एक पूर्व दार्शनिक विद्वान् डॉ. महेन्द्रनाथ जी ने अत्यन्त मार्मिक शब्दों में लिखा है- Strong is the epithet that can be applied in truth to Dayanand, strong in intellect strong in adventures strong in heart and strong and organizing forces. And his teachings through life and writings cab summed up in one word STRENGTH अर्थात् बलवान् एक ऐसी उपाधि है जो दयानन्द पर ठीक-ठीक चरितार्थ होती है, विचारों में- मस्तिष्क से बलवान्, साहसिक कार्य के कारण बलवान्, हृदय से बलवान् तथा शक्तियों के गठन करने में बलवान् और उसके जीवन एवं साहित्य द्वारा उसकी शिक्षाओं को एक शब्द में बताना है तो वह है ‘शक्ति’।
इससे अधिक हम ऋषि की महानता पर क्या कहें? ऋषि ने अपने सन्देश, उपदेश व जीवन द्वारा मानव समाज को प्रकाश दिया और मृतकों में नवजीवन का संचार किया। उनके बोध पर्व पर हम उन्हें शत बार नमन करते हैं।
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