लड़के लड़कियों की सम्मिलित शिक्षा
वैदिक आदर्श यह है की लड़के और लड़कियों की शिक्षा एक जगह न होकर पृथक पृथक होनी चाइये इसी में समाज का और देश का हित है और तब ही उत्तम सदाचारी नागरिक पैदा किये जा सकते है परन्तु पश्चिमी सभ्यता के दीवाने लड़के और लड़कियों की एक साथ शिक्षा को उच्च संस्कृति का चिन्ह समझते हुए उसे उन्नत और उपयोगी समझते है और पुराने सिद्धांतों को गली सडी और बेहूदा पागलो की बातें कह कर उनकी मखौल उड़ाते है | इस बात की पुष्टि में यह लोग यूरोप और अमेरिका की दलीले पेश करते है परन्तु उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि उन देशो कि अवस्थाये और आदर्श इस देश की अवस्थाओ और आदर्शो से सर्वथा भिन्न है और भिन्न-भिन्न अवस्थाओ उअर परिस्तिथियों और आदर्शो में समान व्यवस्थाए व्यावहारिक और उपयोगी हो यह संभव नहीं हो सकता | समाज का जो आदर्श पश्चिम में है उससे स्वयं वे देश भी अब ऊब गए है और उसे सुधारने के यत्न और सुख शांति की खोज करने लगे है | परन्तु हमारे ये दीवाने अभी तक इन परिवर्तनों को देखते और सुनते हुए पश्चिमो आदर्शो के भयंकर परिणामों और समाज की दूषित अवस्था को देखते हुए भी उन्ही का दम भरते और उन्ही की नक़ल करने में गौरव अनुभव करते है | दुःख तो उस समय होता है कि जब पौर्वात्य संस्कृति का पक्षपाती आर्य समाज भी इस रोग में ग्रसित होता चला जा रहा है और ऋषि दयानंद कि शिक्षा और वैदिक सिद्धांतों कि अवहेलना करता हुआ अपने गौरव को धक्का पहुँचा रहा है | हम इन लड़कियों के अभिभावकों से प्रार्थना करते है कि वे दूरदर्शिता और विवेक से काम ले और अपनी पुत्रियों को उस स्कूल से बुला ले अन्यथा वे शिर पकड़ कर रोयेंगे और अपने दुश्मन स्वयं बनेगे |
सम्मिलित शिक्षा के सम्बन्ध में हम एक प्रसिद्ध शिक्षा विशेषज्ञ के विचार पाठकों कि जानकारी के लिए यहाँ उद्भूत करते है | हमे आशा है कि पाठक इन्हें उपयोगी पायेंगे |
“ अनुभव बतलाता है कि यूरोप और अमेरिका कि नक़ल हमारे देश के लड़के और लड़किया को सम्मिलित शिक्षा के लिए कभी उपयोगी नहीं हो सकती | भारत में जहाँ जहाँ सम्मिलित कॉलेज है वहाँ वहाँ के परिणाम खराब निकल चुके है | दक्षिण के एक खास नगर में किसी विशेष कॉलेज के एक साथ पढ़ने वालो के कुत्सित फलो को हम सुना करते थे, बम्बई के मेडिकल कॉलेज में जहाँ पारसी लड़किया और हिंदू लड़के पढते है वहाँ पारसी लड़किया हिंदू लड़कों से शादी करने पर तय्यार सुनी जाती है | पारसी लोग ऐसी बात से बहोत घबराते है | वास्तव में इसका इलाज घबराना नहीं वरन यह है कि सम्मिलित शिक्षा न हो |
यूरोप और अमेरिका में जहाँ यह त्रुटि व्यापक थी वहाँ ईश्वर कि कृपा से अब जर्मनी के LAHELAND नामक नगर में एक आदर्श शिक्षणालय अर्थात “ जर्मन कन्या गुरुकुल “ खुला है जिसमे केवल लड़किया ही पढ़ती है और पढाने वाली भी स्त्रिया ही है | सब प्रबंध स्त्रियों के हाथ में है | यूरोप और अमेरिका भर में इसकी चर्चा है |