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उत्तर दिया जायः- राजेन्द्र जिज्ञासु

उत्तर दिया जायः-

मिर्जाइयों द्वारा नेट का उपयोग करके पं. लेखराम जी तथा आर्यसमाज के विरुद्ध किये जा रहे दुष्प्रचार का उत्तर देना मैंने उ.प्र. के कुछ आर्य युवकों की प्रबल प्रेरणा से स्वीकार कर लिया। मेज-कुर्सी सजा कर घरों में बैठकर लबे-लबे लेख लिखने वाले तो बहुत हैं, परन्तु जान जोखिम में डालकर विरोधियों के प्रत्येक प्रहार का प्रतिकार करना प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं। वास्तव में इस बारे में नया तो कुछाी नहीं। वही घिसी-पिटी पुरानी कहानियाँ, जिनका उत्तर पूज्य पं. देवप्रकाश जी के ‘दाफआ ओहाम’ खोजपूर्ण पुस्तक तथा मेरे ग्रन्थ ‘रक्तसाक्षी पं. लेखराम’ तथा मेरी अन्य पुस्तकों में भी समय-समय पर दिया जा चुका है।

अब की बार परोपकारी व किसी अन्य पत्रिका में इस विषैले प्रचार का निराकरण नहीं करूँगा। ‘रक्तसाक्षी पं. लेखराम’ ग्रन्थ का संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण प्रेस में दिया जा चुका है। मैं जानता हूँ कि विधर्मियों से टकराना जान जोखिम में डालने जैसा काम है। गत 61 वर्ष से इस कार्य को करता चला आ रहा हूँ। अब भी पीछे नहीं हटूँगा। पं. धर्मभिक्षु जी, पं. विष्णुदत्त जी, पं. सन्तरामजी, पं. शान्तिप्रकाश जी, पं. निरञ्जनदेव जी से लेकर इस लेखक तक मिर्जाइयों की कुचालों व अभियोगों का स्वाद चखते रहे हैं। श्री रबे कादियाँ जी (पं. इन्द्रजित्देव के कुल के एक धर्मवीर) पर तो मिर्जाइयों ने इतने अभियोग चलाये कि हमें उनकी ठीक-ठीक गिनती का भी ज्ञान नहीं।

सन् 1996 में स्वामी सपूर्णानन्द जी के आदेश से कादियाँ में दिये गये व्यायान पर जब गिरतारी की तलवार लटकी तो मैंने श्री रोशनलाल जी को कादियाँ लिखा था कि श्री सेठ हरबंसलाल या पंजाब सभा मेरी जमानत दे-यह मुझे कतई स्वीकार नहीं। स्वामी सर्वानन्द जी महाराज या श्री रमेश जीवन जी मेरी जमानत दे सकते हैं। तब श्री स्वामी सपूर्णानन्द जी मेरे साथ जेल जाने को एकदम कमर कसकर तैयार थे। यह सारी कहानी वह बता सकते हैं। हमें फँसाया जाता तो दो-दो वर्ष का कारावास होता। मेरा व्यायान प्रमाणों से परिपूर्ण था सो मिर्जाइयों की दाल न गली।

सिखों में एक सिंध सभा आन्दोलन चला था। सिंध सभा नाम की एक पत्रिका भी खूब चली थी। इसका सपादक पं. लेखराम जी का बड़ा भक्त था। उस निडर सपादक ने मिर्जाई नबी पर खूब लेखनी चलाई। उसका कुछ लुप्त हो चुका साहित्य मैंने खोज लिया है। रक्तसाक्षी पं. लेखराम ग्रन्थ के नये संस्करण में इस निर्भीक सपादक के साहित्य के हृदय स्पर्शी प्रमाण देकर मिर्जाइयत के छक्के छुड़ाऊँगा। जिन्हें मिशन का दर्द है, जाति की पीड़ा है, वे आगे आकर इस ग्रन्थ के प्रसार में प्रकाशक संस्था को सक्रिय सहयोग करें। श्री महेन्द्रसिंह आर्य और अनिल जी ने उत्तर प्रकाशित करने का साहसिक पग उठाया है। श्री प्रेमशंकर जी मौर्य लखनऊ व उनके सब सहयोगी इस कार्य में सब प्रकार की भागदौड़ करने में अनिल जी के साथ हैं।

एक जानकारी देना रुचिकर व आवश्यक होगा कि जब प्राणवीर पं. लेखराम मिर्जा के इल्हामी कोठे पर गये थे, तब सिंध सभा का सपादक भी उनके साथ था। नबी के साथ वहाँ पण्डित जी की संक्षिप्त बातचीत-उस ऐतिहासिक शास्त्रार्थ के प्रत्यक्ष दर्शी साक्षी ने नबी को तब कैसे पिटते व पराजित होते देखा-यह सब वृत्तान्त प्रथम बार इस ग्रन्थ में छपेगा। न जाने पं. लेखराम जी ने तब अपने इस भक्त का अपने ग्रन्थ व लेखों में क्यों उल्लेख नहीं किया? औराी कई नाम छूट गये। पूज्य स्वामी सर्वानन्द जी महाराज की उपस्थिति में सन् 1996 के अपने व्यायान में सपादक जी के साहित्य के आवश्यक अंश मैंने कादियाँ में सुना दिये थे। सभवतः उन्हीं से मिर्जाइयों में हड़कप मचा था।

शैतानी किसने कर दी? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

शैतानी किसने कर दी?

एक बार कादियाँ (पंजाब) में अल्लाह मियाँ पहुँचा था। कादियाँ के नबी मिर्जा गुलाम अहमद के मरने पर अल्लाह शोक मनाने (पंजाब में मकानी बोलते हैं) आया था। यह नबी ने आप लिखा है। तब कादियाँ वालों को अल्लाह के आने का पता तक न चला। मैं कॉलेज का विद्यार्थी था। आर्य सभासदों के चन्दे मैं ही लाकर कोषाध्यक्ष को दिया करता था। जब ला. दाताराम का चन्दा लेने जाता था, तब उनके बहुत वृद्ध पिताजी ला. मलावामल की बैठकर बातें सुनने लग जाता था। आप मिर्जा के संगी साथी थे। आपने कभी अल्लाह के कादियाँ में आने की बात की पुष्टि नहीं की थी। आपने तब उसे  देखा ही नहीं था तो पुष्टि क्या करते?

टी.वी. देखते-देखते जब हज की दुर्घटना का दुखद दृश्य देखा तो अल्लाह के कादियाँ आने की घटना याद आ गई। इतने भोले-भाले हज यात्री स्त्रियाँ और वृद्ध मारे गये। दृश्य देाा नहीं गया। जैसे भारत में हिन्दू मन्दिरों व तीर्थों में भगदड़ मचने से आबाल वृद्ध मारे कुचले जाते हैं, वही कुछ वहाँ हुआ। परपरा से एक स्थान विशेष पर हाजी शैतान को पत्थर मारकर हज के कर्मकाण्ड को पूरा करते हैं। अंधविश्वास हिन्दू मुसलमान सब में फैले हुए हैं।

मक्का को मुसलमान ‘बैत अल्लाह’ (अल्लाह का घर) मानते हैं। अल्लाह के पास फरिश्तों की भारी सेना है-यह कुरान बताता है। न जाने फिर शैतान अल्लाह के घर में कैसे घुस जाता है? भगदड़ मचने का कारण क्या था? शैतानी वहाँ शैतान ने तो की नहीं। कहा जाता है कि किसी हाजी ने ही शैतानी की। अब वहाँ की सरकार यह जाँच करेगी कि शैतानी की किसने? शैतान को तो किसी ने वहाँ कभी देखा ही नहीं। जिसे अल्लाह इतने लबे समय से नहीं पकड़ पाया, उसका इन कंकरों से क्या बिगड़ेगा? हमारी हितकारी सीख बहुत कुछ तो मुसलमानों ने मान ली है, परन्तु जन-जन तक नहीं पहुँचाई। हम क्या कर सकते हैं?

शैतान विषयक हमारा न सही, सर सैयद की सीख ही सुन लेते तो इतने अभागे हाजी न मरते। सर सैयद ने लिखा है, ‘‘एक मौलाना ने सपने में शैतान को देख लिया। झट से कसकर एक हाथ से उसकी दाढ़ी पकड़कर खींची। दूसरे हाथ से शैतान के गाल पर पूरी शक्ति से थप्पड़ मारा। शैतान का गाल लाल-लाल हो गया। इतने में मौलाना की नींद टूट गई। देखा तो उसके हाथ में उसी की दाढ़ी थी और वह लाल-लाल गाल जिस पर थप्पड़ मारा गया था, वह भी मियाँ जी का अपना ही गाल था। सो पता चल गया कि शैतान कहीं बाहर नहीं है। आपके भीतर के आपके दुरित, दुर्गुण ही हैं।’’ आशा है इतनी बड़ी दुर्घटना से सब शिक्षा लेंगे।

हटावट का उदाहरण माँगा गया हैः- इतिहास में मिलावाट की तो बहुत चर्चा होती है। मैंने इतिहास प्रदूषण

मिर्ज़ा साहब गर्भवती हो गए ………

मिर्ज़ा गुलाम अहमद को इस्लाम के मनाने वाले मुहम्मद साहब के बाद अंतिम रसूल ए खुदा मानते हैं. हालांकि ज्यादातर मुसलमान मुहम्मद साहब को ही अंतिम रसूल मानते हैं लेकिन अहमदिया सम्प्रदाय मुहम्मद साहब के साथ नबुबत का खात्मा न मानकर इसे मिर्ज़ा गुलाम अहमद के साथ खात्मा मानते हैं और मिर्ज़ा गुलाम अहमद को अंतिम नबी मानते हैं.

मशहूर कादियानी शायर काजी अकमल के शेर का हवाला  देते हुए मौलाना मुहम्मद अब्दुर्रउफ़ ने लिखा है कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद को मुहम्मद साहब से श्रेष्ठ मुलमानों का यह संप्रदाय मानता है. ये शेर मिर्ज़ा गुलाम अहमद मिर्ज़ा की मौजूदगी में पढ़े गए और मिर्ज़ा साहब ने भी उन्हें पसंद किया :

मुहम्मद फिर उतर आये हैं  हममें

और आगे से हैं बढ़कर अपनी शान में

मुहम्मद देखने हों जिसने अकमल

गुलाम अहमद को देख कादियां में

मुहम्मद साहब के बाद नबी होने के अतिरिक्त मिर्ज़ा गुलाम अहमद उनकी भविष्य वाणियों के लिए जाने गए . अल्लाह के द्वारा वही आने का दावा इस्लाम में  मुहम्मद साहब के बाद मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  ने भी किया. वही भी नायाब  कहीं महामारी फ़ैली किसी की मृत्यु हुयी किसी का क़त्ल हुआ मिर्ज़ा गुलाम अहमद तुरंत वही का दावा कर दिया करते थे .

लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं जो मिर्ज़ा साहब और उनके इस्लाम का एक अलग ही नज़ारा प्रस्तुतु करती हैं. ये कुछ ऐसे वाकये हैं जो इस्लाम में मिर्ज़ा साहब से पहले किसी ने किये हों ऐसा मालूम नहीं होता.

मिर्ज़ा जी गर्भवती हो गए

मिर्ज़ा साहब फरमाते हैं  कि मरियम की तरह ईसा की रूह मुझमें फूंकी गई और लाक्षणिक रूप में मुझे गर्भ धारण कराया गया और की महीने के बाद दस महीने से ज्यादा नहीं , इह्लाम के जरिये से मुझे मरियम से ईसा बनाया गया . इस प्रकार से में मरियम का बेटा ईसा (इब्न मरियम ) ठहरा

– कश्ती ए नूह पृष्ट – ४६, ४७ संस्करण १९०२ ई

मिर्ज़ा साहब खुदा की बीवी

काजी यार मुहम्मद साहब कादियानी लिखते हैं कि हजरत मसीह मौउद ने एक अवसर पर अपनी यह स्तिथी प्रकट की कि “कश्फ़” (इलहाम या वहय) की हालात  आप पर इस तरह तारी हुयी कि मानों आप औरत हें और अल्लाह तआला ने अपनी पौरुष शक्ति (Sex Power) को जाहिर किया I समझदारों के लिए इशारा ही काफी है

– ट्रैक्ट १३४, इस्लामी कुर्बानी , पृष्ट १२ लेखक काजरी यार मुहम्मद

अभी तक तो इस्लाम के रसूल अल्लाह से बात करने, फरिश्तों  के युद्ध में लड़ने, चाँद के टुकडे होने जैसे चमत्कारों की बात किया करते थे.

लेकिन मिर्ज़ा साहब ने इससे आगे जाकर ये चमत्कार भी बढ़ा दिए कि वो गर्भवती हुए थे और  अल्लाह तआला पुरुषों पर अपनी पौरुष शक्ति (Sex Power) को जाहिर करता है I

हत्यारा मनुष्य था फ़रिश्ता नहीं :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

हत्यारा मनुष्य था फ़रिश्ता नहीं :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

१. मिर्ज़ा तथा मिर्जाई  पण्डित जी के हत्यारे को खुदा का भेजा फ़रिश्ता बताते व लिखते  चले आ रहे हैं .
कितना भी झूठ गढ़ते  जाओ , सच्चाई सौ पर्दे फाड़ कर बाहर  आ जाती है . मिर्जा  ने स्वयं  स्वीकार किया है . वह उसे एक शख्स ( मनुष्य ) लिखता है . उसने पण्डित लेखराम के पेट में तीखी छुरी मारी . छुरी मार कर वह मनुष्य लुप्त हो गया  पकड़ा नहीं गया

२. वह हत्यारा मनुष्य बहुत समय पण्डित लेखराम के साथ रहा . यहाँ बार बार उसे मनुष्य लिखा गया है . फ़रिश्ता नहीं . झूठ की पोल अपने आप खुल गयी
– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २३९ प्रथम संस्करण

हत्यारा मनुष्य ही था :- मिर्जा पुनः लिखता है ” मैं उस मकान की ओर चला जा रहा हूँ . मेने एक व्यक्ति को आते हुए देखा जो कि एक सिख सरीखा प्रतीत होता था ” कुछ ऐसा दिखाई देता था जिस प्रकार मेने लेखराम के समय एक मनुष्य को स्वप्न में देखता था .
– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – ४४०  प्रथम संस्करण

यहाँ  फ़रिश्ते को सिख, अकालिया, सरीखा आदि तथा डरावना बताकर सीखो को तिरस्कृत किया साथ ही वह भी बता दिया की कादियानी अल्लाह के फ़रिश्ते शांति दूत नहीं क्रूर डरावने व हत्यारे  होते हैं . झूठ की फिर पोल खुल गयी .

अल्लाह का फ़ारसी पद्य पढ़िए :-

मिर्जा ने अपने एक लम्बी फ़ारसी कविता में पण्डित जी को हत्या की धमकी दते हुए अल्लाह मियां रचित निम्न पद्य दिया है :-

अला अय दुश्मने नादानों बेराह

बतरस अज तेगे बुर्राने मुहम्मद

– दृष्टव्य – हकीकत उल वही  पृष्ठ – २८८   तृतीय  संस्करण

अर्थात अय मुर्ख भटके हुए शत्रु तू मुहम्मद की तेज काटने वाले तलवार से डर

प्रबुद्ध, सत्यान्वेषी और निष्पक्ष पाठक ध्यान दें की अल्लाह ने तलवार से काटने की धमकी दी थी परन्तु मिर्जा ने स्वयं स्वीकार किया है की पण्डित लेखराम जी की हत्या तीखी छुरी से की गयी . मिर्ज़ा झूठा नहीं सच्चा होगा परन्तु मिर्ज़ा का कादियानी अलाल्ह जनाब मिर्ज़ा की साक्षी से झूठा सिद्ध हो गया . इसमें हमारा क्या दोष

न छुरी , न तलवार प्रत्युत नेजा ( भाला )

मिर्ज़ा लिखता है ” एक बार मेने इसी लेखराम के बारे में देखा कि एक नेजा ( भाला ) हा ई . उसका फल बड़ा चमकता है और लेखराम का सर पड़ा हुआ है उसे नेजे से पिरो दिया है और खा है की फिर यह कादियां में न आवेगा . उन दिनों लेखराम कादियां में था और उसकी हत्या से एक मॉस पहले की घटना है

 

– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २८७   प्रथम संस्करण

 

यह इलहाम एक शुद्ध झूठ सिद्ध हुआ . पण्डित लेखराम जी का सर कभी भाले पर पिरोया गया हो इसकी पुष्टि आज तक किसी ने नहीं की .मिर्ज़ा ने स्वयं पण्डित जी के देह त्याग के समय का उनका चित्र छापा है मिर्जा के उपरोक्त कथन की पोल वह चित्र तथा मिर्जाई लेखकों के सैकड़ों लेख खोल रहे हैं

अपने बलिदान से पूर्व पण्डित जी ने कादियां पर तीसरी बार चढाई की मिर्ज़ा को  पण्डित जी का सामना करने की हिम्मत न हो सकी . मिर्जा को सपने में भी पण्डित लेखराम का भय सततता था उनकी मन स्तिथि का ज्वलंत प्रमाण उनका यह इलहामी कथन है :

झूठ ही झूठ :- मिर्जा का यह कथन भी तो एक शुध्ध झूठ है की पण्डित जी अपनी हत्या से एक मॉस पूर्व कादियां पधारे थे . यह घटना जनवरी की मास  की है जब पण्डित जी भागोवाल आये थे . स्वामी श्रद्धानन्द  जी ने तथा  इस विनीत ने अपने ग्रंथो में भागोवाल की घटना दी है . न जाने झूठ बोलने में मिर्जा को क्या स्वाद आता है .

तत्कालीन पत्रों में भी यही प्रमाणित होता है की पूज्य पण्डित जी १७-१८ जनवरी को भागोवाल पधारे सो कादियां `१९-२० जनवरी को आये होंगे . उनका बलिदान ६ मार्च को हुआ . विचारशील पाठक आप निर्णय कर लें की यह डेढ़ मास  पहले की घटना है अथवा एक मास पहले की . अल्पज्ञ जेव तो विस्मृति का शिकार हो सकता है . क्या सर्वज्ञ अल्लाह को भी विस्मृति रोग सताता है ?

अल्लाह का डाकिया कादियानी  नबी :-

मिर्जा ने मौलवियों का, पादरियों का , सिखों का , हिन्दुओं का सबका अपमान किया . सबके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया तभी तो “खालसा ” अखबार के सम्पादक सरदार राजेन्द्र सिंह जी ने मिर्जा की पुस्तक को ” गलियों की लुगात ” ( अपशब्दों का शब्दकोष ) लिखा है . दुःख तो इस बात का है की मिर्ज़ा बात बार पर अल्लाह का निरादर व अवमूल्यन करने से नहीं चूका . मिर्जा ने लिखा है मेने एक डरावने व्यक्ति को देखा . इसको भी फ़रिश्ता ही बताया है – ” उसने मुझसे पूछा कि लेखराम कहाँ है ? और एक और व्यक्ति का नाम लिया की वह कहा है ?

– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २२५   प्रथम संस्करण

पाठकवृन्द ! क्या  यह सर्वज्ञ अल्लाह का घोर अपमान नहीं की वह कादियां फ़रिश्ते को भेजकर अपने पोस्टमैन मिर्ज़ा गुलाम अहमद से पण्डित लेखराम तथा एक दूसरे व्यक्ति ( स्वामी श्रद्धानन्द ) का अता पता पूछता है . खुदा के पास फरिश्तों की क्या कमी पड़  गयी है ? खुदा तो मिर्ज़ा पर पूरा पूरा निर्भर हो गया . उसकी सर्वज्ञता पर मिर्जा ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया .

एक और झूठ गढ़ा गया : – ऐसा लगता है कि कादियां में नबी ने झूठ गढ़ने की फैक्ट्री लगा दी . यह फैक्ट्री ने झूठ गढ़ गढ़ कर सप्लाई करती थी पाठक पीछे नबी के भिन्न भिन्न प्रमाणों से यह पढ़ चुके हैं कि पण्डित जी की हत्या :
१. छुरी से की गयी

२. हत्या तलवार से की गए

३. हाथ भाले से की गयी

नबी के पुत्र और दूसरे खलीफा बशीर महमूद यह लिखते हैं :-

४. घातक ने पण्डित जी पर खंजर से वर किया
देखिये – “दावतुल अमीर ” लेखक मिर्जा महमूद पृष्ठ – २२०

अब पाठक इन चरों कथनों के मिलान कर देख लें की इनमें सच कितना है और झूठ कितना . म्यू हस्पताल के सर्जन डॉ. पेरी को प्रमाण मानते ही प्रत्येक बुद्धिमानi यह कहेगा कि बाप बेटे के कथनों में ७५ % झूठ है .

 

मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी की शालीनता

मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  कादियानी  और  उसकी उम्मत  लगातार ये कहती  आयी है कि  पण्डित लेखराम की वाणी अत्यन्त तेज  व  असभ्य थी . मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  और  न ही उसके चेले  आज तक  इस  सन्दर्भ में कोई  प्रमाण प्रस्तुत  कर पाए हैं . इसके विपरीत मिर्ज़ा  गुलाम अहमद स्वयम कहता है कि पण्डित लेखराम  सरल  स्वाभाव  के थे :

‘ वह अत्यधिक  जोश के होते हुए भी अपने स्वभाव से सरल था ”
सन्दर्भ- हकीकुत उल वही पृष्ट  -२८९ ( धर्मवीर पण्डित लेखराम – प्र राजेन्द्र जिज्ञासु)

मिर्ज़ा गुलाम अहमद और उनके चेले तो धर्मवीर पण्डित लेखराम जी के वो शब्द तो न दिखा सके न ही दिखा सकते हैं क्योंकि झूठ के पांव नहीं होते .

आइये आपको मिर्ज़ा गुलाम अहमद की भाषा की शालीनता के कुछ नमूने उनकी ही किताबों से देते हैं :

 

रंडियों की औलाद  

” मेरी इन किताबों को हर मुसलमान  मुहब्बत  की नजर से देखता है और उसके इल्म से फायदा उठाता है और मेरी अरु मेरी दावत के हक़ होने की गवाही देता है और इसे काबुल करता है .

किन्तु रंडियों (व्यभिचारिणी औरतों ) की औलादें मेरे हक़ होने  की गवाही नहीं देती ”

– आइन इ कमालाते  इस्लाम पृष्ट -५४८ लेखक – मिर्जा गुलाम अहमद प्रकाशित सब १८९३ ई

 

हरामजादे

” जो हमारी जीत का कायल नहीं होगा , समझा जायेगा कि उसको हरामी (अवैध संतान ) बनने का शौक हिया और हलालजादा (वैध संतान ) नहीं है .”

– अनवारे इस्लाम पृष्ट -३० , लेखक – मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी प्रकाशित – सन १८९४ ई

मर्द सूअर  और औरतें  कुतियाँ

” मेरे  विरोधी जंगलों के सूअर हो गए और उनकी  औरतें  कुतियों से बढ़ गयीं ”

– जज्जुल हुदा पृष्ठ – १० लेखक  मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  कादियानी प्रकाशित – १९०८ ई

जहन्नमी

मिर्ज़ा जी बयान करते हैं :

‘ जो व्यक्ति मेरी पैरवी नहीं करेगा और मेरी जमाअत में दाखिल नहें होगा वह खुदा और रसूल की नाफ़रमानी करने वाला है जहन्नमी है ”

– तबलीग रिसालत पृष्ट – २७ , भाग – ९

मौलाना मुहम्मद अब्दुर्रउफ़ “कादियानियत की हकीकत” में लिखते हैं कि मानो कि तमाम मुसलमान जो मिर्ज़ा गुलाम अहमद के हक़ होने की गवाही न तो वह जहन्नमी और हरामजादे , जंगल के सूअर और रण्डियों की औलादें हैं और मुसलमान औरतें हरामजादियां रंडियां (वैश्याएँ) और जंगल की कुतियाँ और जहन्नमी हैं

– पृष्ट -५४, प्रकाशन – २०१०

 

मिर्ज़ा गुलाम अहमद की भाषा शैली किस स्तर तक गिरी हुयी थी ये उसके चुनिन्दा नमूने हैं अन्यथा भाषा की स्तर इस कदर गिरा हुआ है कि हम उसे पटल पर रखना ठीक नहीं समझते .

समझदारों के लिए इशारा ही काफी है .

 

Pandit Lekhram gave Mirza Ghulam Ahmad a very hard time for a number of years. He would respond to the latter’s challenges, and would show up to meet him, and also wrote in an equally tough, though more civil tone, but nevertheless very sarcastic.  Here references are given of sarcastic & unplished tone of Mirza Ghulam Ahamd