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महर्षि दयानन्द जी और राधास्वामी समप्रदाय

महर्षि दयानन्द जी और राधास्वामी समप्रदाय

– धर्मेन्द्र जिज्ञासु

राधास्वामी समप्रदाय के कुछ बन्धुओं ने यह राग छेड़ा कि ऋषि दयानन्द जी ने हमारे मत के संस्थापक से आगरा में भेंट करके राधास्वामी मत का मन्त्र लिया या दीक्षा ली। इसका प्रमाण यह है कि महर्षि ने अपने ग्रन्थ में राधास्वामी मत का खण्डन नहीं किया।

आर्यसमाज के ‘भीष्म पितामह’ श्रद्धेय श्री राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने ‘परोपकारी’ पत्रिका में राधास्वामियों के इस राग की खटिया खड़ी कर दी। अभी प्रकाशित अपने संस्मरणों के तीसरे भाग ‘साहित्यिक जीवन की यात्रा’ के पृष्ठ 171 व 172 पर इसके खंडन में ये प्रमाण दिए गए हैं-

  1. तब यह मत नया था, अतः ऋषि ने समीक्षा करना आवश्यक न समझा।
  2. जालन्धर में मौलवी अहमद हसन से चमत्कार विषय पर शास्त्रार्थ करते हुए श्री शिवदयाल का नामोल्लेख चमत्कार-खंडन में किया गया है।

(‘महर्षि दयानन्द सरस्वती-सपूर्ण जीवन-चरित्र’ पं. लक्ष्मण जी आर्योपदेशक (राजेन्द्र जिज्ञासु)-पृष्ठ 80 पर)

  1. राधास्वामी मत के गुरु हुजूर जी महाराज, गुरु साहिब जी महाराज तथा बाबा सावनसिंह जी की पुस्तक में ऋषि की चर्चा है, पर गुरु-मन्त्र लेने या दीक्षा का वर्णन कहीं भी नहीं है।

इस सफेद झूठ का मुँह काला करने हेतु कुछ और तथ्य इस लेख में प्रस्तुत हैं।

राधास्वामी सत्संग व्यास से सन् 1997 में प्रकाशित ‘सार वचन राधास्वामी (छन्द-बन्द)’ के अनुसार-

संत हुजूर स्वामीजी महाराज सेठ शिवदयालसिंह जी का जन्म अगस्त सन् 1818 ई. को आगरा में हुआ। आपके खानदान में सभी गुरु नानक साहिब की वाणी का पाठ किया करते थे। हुजूर स्वामी जी महाराज ने जितना अरसा सत्संग किया, गुरु ग्रन्थ साहिब और तुलसी साहिब की वाणी का पाठ करते रहे। (पृ. क)

जनवरी सन् 1861 ई. को स्वामी जी महाराज ने अपने मकान पर सन्त मत का उपदेश शुरू किया, जो सत्रह वर्ष तक जारी रहा। जून सन् 1878 ई. को इन्होंने अपना चोला छोड़ा।

राधास्वामी मत का दूसरा नाम ‘संत-मत’ है। राधा यानि आदि सुरत या आत्मा और स्वामी आदि शबद, कुल का कर्त्ता है। (पृ. ङ)

परन्तु सिक्ख मिशनरी कॉलेज लुधियाना से प्रकाशित पुस्तक- ‘देहधारी गुरुडम की शंकाओं के उत्तर’ में इस दर्शन का खंडन करते हुए लिखा हैः-

‘‘राधास्वामी नाम कोई ईश्वरवादी नाम नहीं। न ही इसके अर्थ-सुरत-शबद के हैं। यह शिवदयाल स्वामी की पत्नी ‘राधा’ के नाम से चला मत है, जिसके अर्थ और रूप को बाद में बदलने का व्यर्थ यत्न किया गया है।’’ (राधास्वामी सत्संग व्यास से प्रकाशित पुस्तक- ‘जिज्ञासुओं के लिए’ पृ. 28)

यह बात ‘सार-वचन राधास्वामी’ पुस्तक के वर्णन के आधार पर सोलह आने सच साबित होती है। देखिए वचन 5:-

‘‘फिर स्वामी जी महाराज ने राय साहिब सालगराम की तरफ फरमायाः- कि जैसा मुझको समझते हो वैसा ही अब राधा जी को समझना और राधा जी और छोटी माता जी को बराबर जानना। (पृष्ठ ट) (इस पृष्ठ पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि माता जी का असली नाम नारायण देवी था। महाराज जी के मँझले भाई की सुपत्नी को छोटी माता कहा है।)’’

वचन 6:- फिर राधा जी ने महाराज को हुकम दिया कि सिबो और बुक्की और बिशनों को पीठ न देना। (पाद टिप्पणी- ये तीनों हुजूर स्वामी जी महाराज की खास सेविकायें थीं।)

वचन 10:- गृहस्थी औरतें बाग में जाकर किसी साधु की पूजा और सेवा न करें। राधा जी के दर्शन और पूजा करें। (पृष्ठ ठ)

वचन 14:- फिर सेठ प्रतापसिंह को फरमाया- मेरा मन तो सतनाम और अनामी का था और राधास्वामी मत सालगराम का चलाया हुआ है। इसको भी चलने देना। (पृष्ठ ड)

वचन 18:- फिर राधा जी की तरफ फरमाया- मैंने स्वार्थ और परमार्थ दोनों में कदम रखा है, यानि दोनों बरते हैं, सो संसारी चाल भी सब करना और साधुओं को भी अपनी रीति करने देना। (पृष्ठ ढ)

ये सभी वचन दिनांक 15 जून सन् 1878 अर्थात् शरीर छोड़ने वाले दिन के हैं।

यह उल्लेखनीय तथ्य है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी राधास्वामी महाराजों के श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के अर्थ को सही नहीं मानती। इस कारण इनमें टकराव भी होता रहता है। हुजूर महाराज चरनसिंह जी के सन् 1964 ई. में अमरीका यात्रा के समय के प्रश्नोत्तरों को ‘सन्त-संवाद भाग-1’ में संकलित किया गया है। पृष्ठ 24 पर हुजूर महाराज फरमाते हैंः-

‘‘गुरुमत सिद्धान्त’’ यह पुस्तक हुजूर महाराज सावनसिंह जी ने श्री आदि ग्रन्थ के आधार पर विशेष रूप से सिक्खों के लिए लिखी थी। जब पंजाब में राधास्वामी मत के उपदेश को समझाना शुरू किया गया, तब सिक्खों में खलबली मच गई। लोग समझने लगे कि महाराज जी श्री आदि ग्रन्थ का अर्थ सही नहीं बता रहे हैं।

सन् 2012 ई. में अमृतसर के गाँव वरायच में गुरुद्वारे को नुकसान पहुँचाया गया, जिसकी वजह से राधास्वामियों और सिक्खों में काफी तनातनी रही। मामले ने इतना तूल पकड़ा कि राधास्वामी सत्संग व्यास के सचिव जे.सी. सेठी ने स्पष्टीकरण दिया-

“ we would like to make it clear that radha swami satsang beas holds the revered 10 sikhs gurus and the holy shri guru granth sahib ji in the highest esteem “

‘अर्थात् हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि राधास्वामी सत्संग यास पूजनीय 10 सिक्ख गुरुओं तथा पवित्र श्री गुरु ग्र्रन्थ साहिब जी का सर्वोच्च समान करता है।’

(हिन्दुस्तान टाइस (अंग्रेजी), जालन्धर, शुक्रवार, 20 जुलाई 2012 ई. पृष्ठ 3)

सत्यार्थ प्रकाश में राधास्वामी मत का खण्डन क्यों नहीं किया गया?

  1. सत्यार्थ प्रकाश का प्रथम संस्करण (आदिम संस्करण) सन् 1875 ई. में प्रकाशित हुआ। राधास्वामी मत का प्रचार सन् 1861 ई. में आगरे में श्री शिवदयाल जी ने शुरू किया तथा सन् 1878 ई. में उनकी मृत्यु हो गई। सत्यार्थ प्रकाश छपने तक राधास्वामी मत को चले मात्र 13-14 वर्ष हुए थे, अतः इसका प्रभाव इतना नहीं था कि इसके बारे में अलग से कुछ लिखा जाता।
  2. जैसा कि विगत पृष्ठों में राधास्वामी मत की पुस्तक ‘सार-वचन’ में वर्णन है कि श्री शिवदयाल जी के परिवार में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी व तुलसी साहिब का ही पाठ होता था। वो खुद भी इनका ही पाठ करते थे। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में श्री गुरु नानक देव जी आदि 6 गुरुओं तथा 30 अन्य साधुओं जैसे कबीर, दादू, तुलसी, मीरा आदि की वाणियाँ/शबद हैं।

सत्यार्थ प्रकाश के एकादश समुल्लास में कबीर-पन्थ समीक्षा, नानक-पन्थ समीक्षा, दादू-पन्थ समीक्षा के माध्यम से अपरोक्ष रूप से इस मत के सिद्धान्तों की भी समीक्षा समझी जा सकती है।

  1. राधास्वामी मत में गुरु-मन्त्र लेने व गुरु-धारण करने का अत्यधिक महत्त्व है। सत्यार्थ प्रकाश तृतीय समुल्लास में गुरु-मन्त्र व्याया तथा एकादश समुल्लास में गुरु-माहात्य समीक्षा से इस मत के 2 मुखय स्तमभ भरभरा कर गिर जाते हैं।

ऋषि दयानन्द जी के जीवन में अनेक ऐसे प्रसंग हैं, जो राधास्वामी मत के मुय आधारों- नाम-दान, गुरु-धारण, गुरु-मन्त्र इत्यादि का खण्डन ही करते हैं, जैसे-

  1. ऋषि दयानन्द जी दण्डी विरजानन्द जी प्रज्ञाचक्षु को ‘गुरु दक्षिणा’ में अपना समस्त जीवन भारतवर्ष में आर्ष ग्रन्थों की महिमा व वैदिक-धर्म की स्थापना करने हेतु दान कर चुके थे। इसके बाद ही वे आगरा गए थे। किसी भी जीवन-चरित्र में उनका श्री शिवदयाल जी से मिलना नहीं लिखा। हाँ, पुष्कर निवास के समय एक शिवदयालु का नाम आता है, परन्तु वह ब्रह्मा-मन्दिर के पुजारी थे।
  2. 2. सन् 1872 ई. में आरा में ऋषि दयानन्द जी ने एक व्याखयान में कहा- ‘‘दीक्षा ग्रहण करने की रीति आधुनिक है, मन्त्र देने का अर्थ कान में फूँक मारने का नहीं।’’ (महर्षि दयानन्द का जीवन चरित्र, देवेन्द्रनाथ मु. पृ. 211)
  3. मुझे गुरु मत मानो- प्रयाग में सन् 1874 ई. में कहा- ‘‘ऋषि-प्रणाली का अनुसरण करो, मुझे गुरु मानने से तुमहारा क्या प्रयोजन है?’’ (त्रयोदश अध्याय पृ. 265)
  4. 4. ठाकुर उमराव सिंह ने स्वामी जी से कहा कि मुझे शिष्य बना लीजिए तथा मन्त्र दे दीजिए। स्वामी जी ने कहा कि हम किसी को शिष्य नहीं बनाते और सारे मन्त्र तो वेद में हैं, हम क्या मन्त्र देंगे? (भरुच-सन् 1874 ई., पञ्चदश अ., पृ. 290)
  5. चाँदपुर में स्वामी दयानन्द जी का उपदेश-

‘‘संसार में अन्धकार फैल रहा है, अनेक प्रकार से जनता को धोखा दिया जा रहा है, लोग महन्त बनकर मनुष्यों को ठगते और उनका धन हरण करते हैं, कोई कहता है- कान बन्द करके अनहद शद सुनो, उसमें सब प्रकार के बाजों के शबद सुनाई देते हैं। कोई कहता है कि ‘सोऽहम’ आदि स्वर से जपो, फिर जब जीव मरेगा, उसी शबद में समा जाएगा और उसका आवागमन न होगा।’’

(मार्च 1877 ई. सप्तदश अध्याय)

  1. अमृतसर में मनसुखराम ने गुरुमन्त्र देने की प्रार्थना की तो स्वामी जी बोले कि गायत्री-मन्त्र ही गुरु-मन्त्र है। (सन् 1877 ई., एकोनविंश अ., पृ. 384)

और अब चोट लुहार की

अब राधास्वामी बन्धुओं की सेवा में दो सीधी-सादी घटनायें प्रस्तुत हैंः-

  1. 1. महर्षि दयानन्द जी सन् 1878 ई. में मुलतान में थे। वहाँ एक व्याखयान में आपने सन्त-मत की और दूसरे में सिक्ख-मत की आलोचना की थी।

(विंश अध्याय, पृ. 414)

सन्त-मत राधास्वामी मत का ही दूसरा नाम है, यह सप्रमाण पीछे बताया जा चुका है।

  1. 2. 26 दिसबर सन् 1880 ई. को आगरा नगर में आर्यसमाज स्थापित हो गया।

आगरा में राधास्वामी साधुओं का भ्रम भंजन

राधास्वामी साधु, गुरु की सहायता और उपदेश के बिना कोई मनुष्य संसार-सागर से पार नहीं हो सकता।

स्वामी दयानन्द जी- गुरु की शिक्षा तो आवश्यक है, परन्तु जब तक शिष्य अपना आचरण ठीक न करे तब तक कुछ नहीं हो सकता।

राधा0- ईश्वर के दर्शन किस प्रकार हो सकते हैं?

स्वामी जी- इस प्रकार नहीं हो सकते जिस प्रकार तुम लोग अपनी मूर्खता से करना चाहते हो।

राधा0- ईश्वर तो भक्त के अधीन है।

स्वामी जी- ईश्वर किसी के अधीन नहीं। उसकी भक्ति तो अवश्य करनी चाहिए, परन्तु पहले यह तो समझ लो कि भक्ति है क्या वस्तु? जिस प्रकार से तुम लोग भक्ति करना चाहते हो, वह तो सामप्रदायिक है, ऐसे-ऐसे तो बहुत से समप्रदाय लोगों को बिगाड़ने वाले हुए हैं, इनसे इस लोक वा परलोक का कोई लाभ नहीं है। बिना पुरुषार्थ किए कोई वस्तु अपने आप प्राप्त नहीं हो सकती।

राधा0- हम और हिन्दुओं से तो अच्छे हैं (मूर्त्ति-पूजा नहीं करते)

स्वामी जी- नहीं, हिन्दू तो राम-कृष्ण को ही ईश्वर का अवतार मानते हैं, तुम तो गुरु को परमेश्वर से भी बड़ा मानते हो।

राधा0- वेद के पढ़ने में बहुत समय नष्ट होता है, परन्तु उससे भक्ति की उपलबधि नहीं होती।

स्वामी जी- जो कुछ भी पुरुषार्थ नहीं करते और भिक्षा माँगकर  पेट पालना चाहते हैं, उसके लिए वेद पढ़ना कठिन है, फिर उसे भक्ति प्राप्त ही कैसे हो सकती है?

(आगरा सन् 1880 ई., षड्विंश अध्याय, पृ. 542 से 543) उपरोक्त घटनाओं के सन्दर्भ में राधास्वामी मत के खंडन करने की बात अन्य किसी प्रमाण की अपेक्षा नहीं रखती।

Imam puts Rs 22L ‘counter-offer’ on BJP leader who put price on Mamata’s head

A Muslim cleric, known for announcing fatwas against political leaders including Prime Minister Narendra Modi and author Salman Rushdie, made a counter-offer of Rs 22 lakh for the BJP youth wing leader’s head who announced a reward of Rs 11 lakh for beheading West Bengal chief minister Mamata Banerjee.

Yogesh Varshney, a leader of the Bharatiya Janata Yuva Morcha in Aligarh, announced the price on Banerjee’s head following state police action against a saffron rally billed as a show of strength.

The threat came a day after police baton charged hundreds of saffron activists who took out massive rallies in the heart of Kolkata to mark Hanuman Jayanti, highlighting the growing muscle of right-wing forces in a state the BJP barely managed a toehold in the past.

“Mamata Banerjee is our respected leader and I consider her as my sister. I will pay Rs 22 lakh to anyone who brings me the head of the BJP leader. It is expected that fascist RSS-BJP will be speaking the language of hoodlums,” Nur-ur Rehman Barkati, imam of Kolkata’s Tipu Sultan Shahi Mosque and one of the most influential Muslim clerics in the state, told Hindustan Times.

Banerjee, however, was unruffled by the issue, saying she is regularly targeted with offensive words.

“But, the more they say such things, the more we will progress. From Bengal to Jharkhand to Uttar Pradesh — we will spread out towards Delhi,” Banerjee said at a public rally at Domkal in Murshidabad district on Wednesday.

The issue was raised in both Houses of Parliament by Trinamool Congress members and all major political parties, including the Congress, Left, Bahujan Samaj Party and the Samajwadi Party, and the government condemned the statement.

Party Rajya Sabha member Sukhendu Shekhar Roy highlighted the matter on the floor of the in the Upper House, saying the BJP youth activist publicly described West Bengal CM as a “demon” and announced the bounty.

“There were attempts on her life in the 90s. Later, she was beaten up and dragged by her hairs during various movements during the Left Front regime. These people are misfits in politics and it seems they have opened a dictionary of bad words be it Dilip Ghosh (Bengal BJP president) or this BJP leader from Aligarh,” Partha Chatterjee, secretary general of Trinamool Congress, said.

“The BJP leader should be immediately arrested. Why is he roaming free after making such a statement?” added Chatterjee.

Bharatiya Janata Party state president Dilip Ghosh known for his acerbic comments, too, condemned the statement. “Such madness has no place in politics,” Ghosh said.

Intellectuals in Kolkata also expressed their shock at the statement.

“How can one say such things? He should be immediately arrested. In which country are we living? One cannot say such things,” noted writer Nabanita Deb Sen said.

Debesh Chattopadhyay, theatre personality, said, “It is time people should get together against such religious fundamentalism. This is an attack against democracy.”

 

Varshney made the statement on Tuesday.

“Those who will cut and bring West Bengal chief minister Mamata Banerjee head, I will give that person Rs11 lakh. Mamata Banerjee never allows Saraswati Puja, fairs during Ram Navami and during Hanuman Jayanti procession, people were lathi charged and brutally beaten up. She organises Iftar party and always supports Muslims,” Yogesh Varshney, a leader of the Bharatiya Janata Yuva Morcha, told ANI.

West Bengal – where Banerjee returned to power with a thumping majority last year – has seen mounting clashes between state forces and right-wing elements, who say the Trinamool Congress is biased towards Muslims and is anti-Hindu.

The state sends 42 members to the Lok Sabha and is widely considered one of the toughest bastions for the BJP – which has won a string of assembly elections – to breach.

source: http://www.hindustantimes.com/india-news/rs-11-lakh-reward-on-mamata-banerjee-s-head-bengal-s-fatwa-imam-puts-rs-22-lakh-counter-price/story-5uCxp3yeg3F5k4QTyToxQM.html

छात्र ने कहा – बाइबिल नहीं वन्देमातरम गाऊँगा .. बस , उसकी जिंदगी और कैरियर दोनों हो गए तबाह

छात्र ने कहा – बाइबिल नहीं वन्देमातरम गाऊँगा .. बस , उसकी जिंदगी और कैरियर दोनों हो गए तबाह

ये कृत्य बहुत पहले से चल रहा था . उसे सब जानते थे . क़ानून मंत्रालय भी , शिक्षा मंत्रालय भी .. पर सब आँख मूँद कर देख रहे थे .. और इसका विरोध करने की हिम्मत जब एक ने की तो उसकी जिंदगी और कैरियर कर डाला बर्बाद .  मामला इलाहाबद के नैनी क्षेत्र स्थित शियाट्स कालेज का है . वहां बहुत पुराना नियम है कि वहां प्रार्थना हमेशा बाइबिल की करवाई जाती है. काफी लम्बे समय से ये सब वहां चलता रहा , कभी किसी ने इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई और सब भले ही वो किसी धर्म , पंथ या मज़हब से रहे हो , वो चुपचाप बाइबिल गाते रहे .  अचानक कुछ लोगों को बदले परिवेश और माहौल में ये कार्य थोड़ा उचित नहीं लगा . उन्होंने सोचा कि एक वर्ग भर को सम्बोधित करने वाली बाइबिल के बजाय यहाँ सम्पूर्ण भारत को सम्बोधित करता हुआ वन्देमातरम का गान होना चाहिए और इसी आशा और उम्मीद के साथ एक PHD छात्र अभय ने कालेज प्रबंधन को प्रार्थना पत्र दे दिया . उसमे निवेदन था कि कृपया भारत की सीमा के अंदर आने वाले इस विश्व विद्द्यालय में बाइबिल के बजाय वन्देमातरम करवाई जाय . कालेज प्रबंधन उस प्रार्थना पत्र को पाते ही आग बबूला हो गया और सीधे उस छात्र को बुलाते हुए कहा कि ये सब यहाँ नहीं चल सकता और अगर तुम्हारे ऊपर ज्यादा ही देश्बक्ति सवार है तो उसका इलाज हम कर देते हैं . अगले दिन उस छात्र के हाथ में निलंबन का लेटर पकड़ा कर कहा गया कि आगे की पढ़ाई वहां से जाओ करो जहाँ तुम्हारा वन्देमातरम चलता हो .. अभय अपना कैरियर और जीवन तबाह होता देख कर एक बार तो चकरा गया पर उसकी एक भी दलील सुनने को शियाट्स कालेज प्रबंधन तैयार नहीं था .  हार कर ये बात उसने अपने अन्य साथियों को बताई तो काफी दिन से दबा कुचला छात्र वर्ग आंदोलित हो उठा और अपने मित्र अभय की बहाली की मांग करने लगा . पर कालेज प्रशाशन जरा सा भी झुकने को तैयार नहीं हुआ . अंत में वो छात्र अपने मित्र छात्रों के साथ इलाहाबाद के जिलाधिकारी से मिला और अपने लिए न्याय माँगा .. छात्र अभय का कहना है कि अभी तक कालेज या इलाहाबाद प्रशासन ये नहीं बता पाया कि उसे किस बात की सज़ा मिली है . ये घटना राष्ट्र के अंदर चल रही एक बहुत बड़ी आतंरिक षड्यंत्र को चिन्हित करती है जिसका सीधा सम्बन्ध उन छात्रों से है जिन्हे डाक्टर , इंजीनियर या कुछ और बनने से पहले अपने धर्म या मजहब के लिए समर्पण करवाया जा रहा है वो भी जबरदस्ती …

source: http://www.sudarshannews.com/category/national/student-dismiss-due-to-demand-of-vandematarm-1057

धर्म और दर्शन के क्षेत्र में ऋषि दयानन्द की देन

धर्म और दर्शन के क्षेत्र में ऋषि दयानन्द की देन

प्रस्तुत सपादकीय प्रो. धर्मवीर जी के द्वारा उनके निधन से पूर्व लिखा था। इसे यथावत् प्रकाशित किया जा रहा है।

-समपादक

हर आर्यसमाजी को एक चिन्ता सताती है कि आर्यसमाज का प्रचार-प्रसार कैसे हो। अलग-अलग लोग अपनी-अपनी सममति देते हैं। सबसे पहले वे लोग हैं जो लोगों को आकर्षित करने के लिये लोकरञ्जक उपायों को अपनाने का सुझाव देते हैं। कोई सत्संग में भोजन का सुझाव देता है, तो कोई बच्चों में मिठाई बाँटने की बात करता है। खेल-मेले, आयोजन की बात करता है। स्वामी सत्यप्रकाश जी कहा करते थे कि आज आर्यसमाज का सारा कार्यक्रम तीन बातों तक सिमट गया है- जलसा, जूलूस और लंगर। भीड़ जुटाने के लिये हमारे पास विद्यालय के छात्रों के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं। बच्चों और विद्यालय के अध्यापकों की संखया जोड़कर आर्यसमाज के कार्यक्रम सफल किये जाते हैं।

नगर के स्तर पर यदि दो-चार समाजें हैं तो उत्सव के समय आर्यसमाजों के लोग मिलकर एक-दूसरे के कार्यक्रम में समिलित हो जाते हैं, तो संखया सौ-पचास हो जाती है और हम उत्सव सफल मान लेते हैं, प्रान्तीय स्तर हो या राष्ट्रीय स्तर, सभी स्थानों पर वही मूर्तियाँ आपको दिखाई देती हैं। यदि इस संखया को बढ़ाना हो तो हम अपने कार्यक्रम में किसी राजनेता को बुला लेते हैं।

ऐसे व्यक्ति के आने से उनके साथ आने वालों की संखया से समारोह की भीड़ बढ़ जाती है। समाज का भी कोई कार्य हो जाता है तथा राजनेताओं को जन-समपर्क करने का अवसर मिल जाता है। हमारी इच्छा रहती है कि हम कोई ऐसा कार्य करें, जिससे हमारे कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी बढ़े। हम अपने कार्यक्रमों की तुलना समाज के पन्थों, महन्तों के कथा आयोजनों से करते हैं। आजकल ये कथाएँ भागवत, सत्यनारायण, सुन्दरकाण्ड, और भी बहुत सी पौराणिक कथायें चलती हैं, इनसे लोगों का मनोरञ्जन हो जाता है, कथावाचक को अच्छी दक्षिणा की प्राप्ति हो जाती है और आयोजक भी  सोचता है कि वह पुण्य का भागी है। आर्यसमाज के पास ऐसी लोक लुभावन कथा तो है नहीं। आर्यसमाज वेद-कथा करता है, इस कथा को करने वाले ही नहीं मिलते तो सुनने वाले कहाँ से मिलेंगे।

हमें समझना चाहिए कि हमारे पास ऐसा कोई उपाय नहीं, जिससे भीड़ को आकर्षित किया जा सके। भीड़ आकर्षित करने का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रकार है- चमत्कार दिखाकर जनसामान्य को मूर्ख बनाना। साईं बाबा, सत्य सांई, आसाराम, निर्मल दरबार, सच्चा सौदा व सैंकड़ों मत-मतान्तर हैं, जो चमत्कारों से जनता पर कृपा की वर्षा करते हैं, ऋषि दयानन्द ने किसी को कोई चमत्कार नहीं दिखाया।

न कोई झूंठा आश्वासन दिया। आज व्यक्ति ही नहीं बल्कि मत-समप्रदाय भी लोगों को चमत्कारों से ही मूर्ख बनाते हैं। ईसाई लोग चंगाई का पाखण्ड करते हैं, दूसरों के पाप ईसा के लिये दण्ड का कारण बताते हैं। ईसा पर विश्वास लाने पर सारे पाप क्षमा होने की बात करते हैं। मुसलमान खुदा और पैगमबर पर ईमान लाने की बात करते हैं। खुदा पर ईमान लाने मात्र से ईमान लाने वाले को जन्नत मिल जाती है। जिहाद करने, काफ़िर को मारने से और कुछ भी बिना किये खुदा जन्नत बखश देता है। पौराणिक गंगा-स्नान कराके ही मुक्त कर देता है। व्रत-उपवास, कथाओं से ही दुःख ढ़ल जाते हैं, स्वर्ग मिल जाता है। मन्दिर में देव-दर्शन से पाप कट जाते हैं। सारे ही लोग जनता को मूर्ख बनाते हैं और भीड़ चमत्कारों के वशीभूत होकर ऐसे गुरु, महन्त, मठ, मन्दिरों पर धन की वर्षा करती है। क्या ऋषि दयानन्द ने कोई चमत्कार किया अथवा क्या आर्यसमाज के पास कोई चमत्कार है, जिसके भरोसे भीड़ को अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है?

इसके अतिरिक्त लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का उपाय है-प्रलोभन। कोई व्यक्ति किसी के पास किसी के लाभ विचार से जाता है। कुछ लोग भोजन, वस्त्र, धन का प्रलोभन देते हैं। ईसाई लोग गरीबों में भोजन, वस्त्र बाँटकर लोगों को अपने पीछे जोड़ते हैं। कुछ लोग प्रतिष्ठा के लिये किसी गुरु, महन्त के चेले बन जाते हैं। किसी मठ-मन्दिर में नौकरी, समपत्ति का लोभ मनुष्य  को उनके साथ जोड़ता है। मुसलमान और ईसाई लोगों को नौकरी और विवाह का प्रलोभन देते हैं। आर्यसमाज में प्रलोभन के अवसर बहुत थोड़े हैं, परन्तु उनका उपयोग नये लोगों को अपने साथ जोड़ने या पुराने लोगों से काम लेने के लिये नहीं किया जाता, आर्यसमाज की समपत्ति या उसकी संस्थाओं का उपयोग अधिकारी प्रबन्धक लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिये करते हैं। इसी कारण इन संस्थाओं में कार्य करने वाला व्यक्ति आर्य-सिद्धान्तों से जुड़ना तो दूर जानने की इच्छा भी नहीं करता।

आर्यसमाज में आने का एक लोभ रहता है- सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना। समाज की प्रजातान्त्रिक चुनाव-पद्धति के कारण किसी का भी इस संस्था में प्रवेश सरल है, दूसरे लोग संस्थाओं में घुसकर सपत्ति व पदों पर अधिकार कर लेते हैं, इनका विचार या सिद्धान्त से विशेष समबन्ध नहीं होता। संगठन के पास ऐसे अवसर इतने अधिक भी नहीं हैं कि इनसे अन्य मत-मतान्तर के लोगों में इसके प्रति कोई आकर्षण उत्पन्न हो सके। ऋषि दयानन्द के पीछे आने वाले लोगों में पहले भी कोई प्रलोभन नहीं था। आज तो संस्था के पास समपत्ति, भूमि, भवन, विद्यालय, दुकानें आदि बहुत कुछ हैं, परन्तु आर्यसमाज के प्रारमभिक दिनों में आर्यसमाज में आने वालों ने अपना समय, धन, प्रतिष्ठा, प्राण सभी कुछ समाज और ऋषि की भावना के लिये अर्पित किया। फिर कौन सा कारण है, जिससे हमें लगता है कि लोग ऋषि के पीछे आते थे और आज हमारे पीछे क्यों नहीं आते?

लोग चमत्कारों के पीछे जाते हैं। हमारे पास चमत्कार नहीं है, ऋषि के पास भी नहीं थे। हमारे पास भी किसी को लाभ पहुँचाने के लिये कोई साधन नहीं है। फिर कौन सी बात है, जिसके कारण लोग ऋषि के अनुयायी बने, उनके पीछे चले और फिर आज हमारे में कौन सी कमी आ गई है, जिसके कारण लोग हमारी ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं? वह इन सब बातों का एक उत्तर है- ऋषि दयानन्द ने जो कुछ कहा था, वह बुद्धि को स्वीकार करने योग्य और तर्क-संगत था। जो कहा, यथार्थ था, सत्य था, तर्क और प्रमाण से युक्त था। लोगों को स्वीकार करने में संकोच नहीं होता था। जो भी उनकी बात सुनता था, उसकी समझ में आ जाती थी और वह उनका अनुयायी हो जाता था।

ऋषि दयानन्द ने दुकानदारी का सबसे बड़ा आधार कि भगवान् पाप क्षमा करता है, इसे ही समाप्त कर दिया। ईश्वर ने संसार बनाया और जीवों के उपकार के लिये बनाया। प्रत्येक प्राणी के जीवन के लिये जो जितना आवश्यक है, उसे देता है, परन्तु जिसका जितना व जैसा कर्म है, उसको उतना और वैसा ही फल देता है। वह अपनी इच्छा से कम या अधिक नहीं कर सकता। इसका कारण बताया कि वह न्यायकारी है। यदि किसी को कुछ भी दे सकता तो सबको सब कुछ बिना किये ही दे देता। सबको सब कुछ बिना किये ही मिलता तो किसी को कुछ भी करने की आवश्यकता ही नहीं थी। कर्म करने की आवश्यकता नहीं रही, तो संसार के बनाने की भी आवश्यकता नहीं रहेगी।

ऋषि कहते हैं- ईश्वर से जीव भिन्न है, न वह उससे बना है और न कभी उसका उसमें लय होता है। न जीव कभी ईश्वर बनता है और न ईश्वर कभी जीव बनता है। अवतारवाद पाखण्ड है। गंगा आदि में स्नान करने से मुक्ति मानना पाखण्ड है। देवता जड़ भी होते हैं, चेतन भी। परमेश्वर निराकार चेतन देवता है, शरीरधारी साकार चेतन तथा शेष जड़ देवता हैं। मूर्ति न परमेश्वर है, न मूर्ति-पूजा परमेश्वर की रजा है, यह तो व्यापार है, ठगी है। तीर्थ यात्रा से भ्रमण होता है, कोई पुण्य या स्वर्ग नहीं मिलता। जन्म से ऊँच-नीच, जाति-व्यवस्था मानना मनुष्य समाज का दोष है, इससे दुर्बलों को उनके अधिकार से वञ्चित किया जाता। विद्या-ज्ञान का अधिकार सब मनुष्यों को समान रूप से प्राप्त है। इस प्रकार सैकड़ों पाखण्ड इस समाज में व्याप्त थे, उन सबका ऋषि दयानन्द ने प्रबल खण्डन किया। यह अनुचित है तो फिर ईसाई हो या मुसलमान, जैन हो या बौद्ध, हिन्दू हो या पारसी, आस्तिक हो या नास्तिक, कुरान में हो या पुराण में, देशी हो या विदेशी, जहाँ पर जो भी गलत लगा, ऋषि ने उसका खण्डन किया। इस प्रकार उनके भाषण, उनकी पुस्तकें, जिसके पास भी पहुँची, उसे बुद्धिगय होने से स्वीकार्य लगीं। यही ऋषि दयानन्द के विचारों का तीव्रता से फैलने का कारण था।

आज हमारी समस्या यह है कि हम दूसरे के पाखण्ड का खण्डन करने में असमर्थ हैं और स्वयं पाखण्ड से दूसरों को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं। इस कारण इस कार्य में सफलता कैसे मिल सकती है। सफलता के लिये बुद्धिमान लोगों तक ऋषि के विचारों का पहुँचना आवश्यक है, जिसमें हम असफल रहे हैं। आज समाज में युवा-वर्ग अपनी भाषा से दूर हो गया है, उस तक उसकी भाषा में पहुँचना आवश्यक है। इसके लिये सभी भाषाओं में साहित्य और प्रचारक दोनों ही सुलभ नहीं हैं, परिणामस्वरूप नई पीढ़ी से हमारा समपर्क समाप्त प्राय है। समाज को यदि बढ़ना है तो बुद्धिजीवी व्यक्ति तक वैदिक विचारों को पहुँचाने की आवश्यकता है, इसके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं।

नान्यः पन्था विद्यतेऽभनाय।

– धर्मवीर

 

नाहिदा चली थी 3 तलाक को टक्कर देने. बेचारी सदा के लिए कर दी गयी खामोश

नाहिदा चली थी 3 तलाक को टक्कर देने. बेचारी सदा के लिए कर दी गयी खामोश

तलाक का विरोध करने वाली महिलाओं को अब तक विभिन्न कट्टरपंथी मौलाना केवल टी वी डिबेट पर ही डांटते और फटकारते दिखते थे पर अब तीन तलाक के हिमायतियों ने शुरू कर दिया अपना खूनी खेल . इस खूनी खेल का आगाज़ हुआ है उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से जहाँ इसकी पहली शिकार बनी एक मासूम नाहिदा. परसेंडी गाँव की नाहिदा का निकाह फरखपुर निवासी शफीक अहमद के साथ हुआ था . नाहिदा बेहद खुश थी क्योंकि वो शादी को ले कर ढेर सारे सपने देख चुकी थी . उसने शफीक अहमद में अपना सबसे बड़ा हीरो देखा और तमाम सपने लिए वो शफीक के घर आ गयी .  शफ़ीक़ आखिर में वो नहीं निकला जो नाहिदा ने सोचा था . बात बात पर मारना पीटना , ताने देना और खरी खोटी सुनाना शफीक की दिनचर्या में शामिल हो गया . शफ़ीक़ ने हद तब पार की जब वो नाहिदा को प्रताड़ित करने के लिए अपने घर वालों को भी उकसाने लगा . हर बार नाहिदा को अपने मायके से ज्यादा पैसा लाने का दबाव बनाया जाने लगा और पैसा ना लाने पर 3 तलाक की धमकी भी दी जाने लगी . नाहिदा शुरू से ही स्वाभिमानी थी . वो बार बार बोलती थी की उसके घर वालों को जो और जितना देना था वो दे चुके . अब खुद कमाओ और खाओ . यही बात शफीक के घर वालों को पसंद नहीं आती थी और वो फिर उसे मारना पीटना शुरू कर देते थे . जब शफीक और उसके घरवालों ने देखा की ये बिलकुल भी नहीं डर रही तो शादी के सिर्फ 4 माह बाद ही नाहिदा को 3 तलाक बोल दिया और घर से तुरंत निकल जाने को बोलै . स्वाभिमानी नाहिदा ने घर छोड़ने से इंकार कर दिया और अपने अधिकार को मान कर उसी घर में रहने लगी . ये बात शफ़ीक़ और उसके घर वालों को एक चुनौती जैसी लगी और उन्होंने नाहिदा को रास्ते से हटाने का इरादा बना लिया . नाहिदा के परिजन रोते बिलखते हुए बताते हैं कि शफीक के घर वालों ने मिल कर पहले नाहिदा को बुरी तरह मारा पीटा और जब अधमरी हो चुकी नाहिदा निढाल हो कर गिर पड़ी तब उकसा गला दबा कर उसकी जान ले ली . नाहिदा के परिजन कहते हैं कि अपने पापों को छुपाने के लिए शफीक के घर वालों ने उनकी बेटी नाहिदा को फांसी के फंदे पर लटका दिया. पुलिस ने मुकदमा पंजीकृत करते हुए शफीक और उसके परिवार से 5 लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया जिसमे शफीक के पिता भी शामिल हैं . नाहिदा की हत्या कर के शफीक का परिवार फरार है . पुलिस का कहना है कि नाहिदा के सारे हत्यारे जल्द ही क़ानून की गिरफ्त में होंगे .

source:  http://www.sudarshannews.com/category/national/women-kill-when-she-refuse-to-accept-triple-talaq-1060

मस्जिद में चुपके से हुआ भगाई लड़की का निकाह. पहले हिन्दू संगठन पहुचे, फिर पहुची पुलिस. मौलवी हिरासत में

अगर किसी ने जवानी के जोश में कोई गलती की थी तो एक बुजुर्ग मौलाना हो कर उन्हें दोनों को समझाना था , पर वो तो देने लगे थे बढ़ावा उस कार्य को जो अपराध था , मानवता की नजर में भी और कानून की नजर में भी . लव जिहाद के दायरे में लाने के लिए किसी को भी ना किसी कानून की फ़िक्र है , ना ही किसी प्रकार के नियमों की . वो जैसे भी , जहाँ भी , जिसको भी चाहे शकार बना लेते हैं . ऐसा ही एक मामला एक बुजुर्ग मौलाना और पवित्र कही जाने वाली मस्जिद में चल रहा था जहाँ एक अबोध बालिका का निकाह चुपके से पढ़ाया गया . मौलाना को पता था कि चुपके से केवल अपराध किये जाते हैं और वो ऐसा ही कर रहे थे . चुपके से निकाह रूप अपराध के 3 पहलू थे . हिन्दू संगठन हिन्दू रक्षा दल का पहला आरोप है कि वो बालिका नाबालिग थी और नाबालिग बालिका से विवाह किसी भी प्रकार से सामजिक और कानूनी अपराध है . दूसरा पहलू था कि बालिका दूसरे धर्म की थी इसलिए मौलाना को और जल्दी थी इसे करने की .. तीसरा पहलू था कि ये बालिका तेलंगाना से भगा कर लाई गयी थी जिसके माता पिता का अपनी बेटी को खोज कर बुरा हाल था . उनके आंसू नहीं थम रहे थे अपनी बेटी के इस तरह अचानक गायब हो जाने पर .. मौलाना ये सारा कुकृत्य गाजियाबाद के नंदग्राम इलाके की एक मस्जिद में कराया था जहां एक स्थानीय वर्ग विशेष निवासी ने इनको छुपा कर रखा था . इस पूरे प्रकरण में लिप्त लोगों को जबकि निश्चित रूप से उसे कानून की पूरी जानकारी थी . अपनी नजर चरों तरफ गड़ाए बैठे हिन्दू संघठनो को इस बात की भनक लग गयी ..उसके बाद हिन्दू रक्षा दल नाम के संगठन ने मस्जिद और जिस घर में लड़की को छिपाया गया था उसको घेर लिया और मौलवी के साथ लड़की को छिपा कर रखे स्थानीय को बाहर निकालने लगे. थोड़ी देर में वहां पुलिस आ गयी और मौलाना ,  नाबालिग लड़की को भगा कर लाये अपराधी व् लड़की को हिरासत में ले कर थाने गयी .  हिन्दू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं के अनुसार तेलंगाना से भगा कर लाने के बाद उस नाबालिग लड़की का लगभग 10 दिनों से नई बस्ती नंदग्राम में रख कर शारीरिक शोषण किया जा रहा था. पुलिस के अनुसार विवेचना जारी है . हिन्दू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं का कहना है कि वो इस विषय से जुड़े एक एक लोगों को सज़ा दिलाने तक चुप नहीं बैठेंगे.
source: http://www.sudarshannews.com/category/national/love-jihad-in-ghaziabad-up-1004

The women who sleep with a stranger to save their marriage

Islamic brideImage copyrightGETTY IMAGES

A number of online services are charging “divorced” Muslim women thousands of pounds to take part in “halala” Islamic marriages, a BBC investigation has found. Women pay to marry, have sex with and then divorce a stranger, so they can get back with their first husbands.

Farah – not her real name – met her husband after being introduced to him by a family friend when she was in her 20s. They had children together soon afterwards but then, Farah says, the abuse began.

“The first time he was abusive was over money,” she tells the BBC’s Asian Network and Victoria Derbyshire programme.

“He dragged me by my hair through two rooms and tried to throw me out of the house. There would be times where he would just go crazy.”

Despite the abuse, Farah hoped things would change. Her husband’s behaviour though became increasingly erratic – leading to him “divorcing” her via text message.

“I was at home with the children and he was at work. During a heated discussion he sent me a text saying, ‘talaq, talaq, talaq’.”

“Triple talaq” – where a man says “talaq”, or divorce, to his wife three times in a row – is a practice which some Muslims believe ends an Islamic marriage instantly.

It is banned in most Muslim countries but still happens, though it is impossible to know exactly how many women are “divorced” like this in the UK.

“I had my phone on me,” Farah explains, “and I just passed it over to my dad. He was like, ‘Your marriage is over, you can’t go back to him.'”

Media captionFarah would have had to consummate her halala marriage

Farah says she was “absolutely distraught”, but willing to return to her ex-husband because he was “the love of my life”.

She says her ex-husband also regretted divorcing her.

This led Farah to seek the controversial practice known as halala, which is accepted by a small minority of Muslims who subscribe to the concept of a triple talaq.

They believe halala is the only way a couple who have been divorced, and wish to reconcile, can remarry.

Halala involves the woman marrying someone else, consummating the marriage and then getting a divorce – after which she is able to remarry her first husband.

But in some cases, women who seek halala services are at risk of being financially exploited, blackmailed and even sexually abused.

It’s a practice the vast majority of Muslims are strongly against and is attributed to individuals misunderstanding the Islamic laws around divorce.

But an investigation by the BBC has found a number of online accounts offering halala services, several of which are charging women thousands of pounds to take part in temporary marriages.

‘Desperation’

One man, advertising halala services on Facebook, told an undercover BBC reporter posing as a divorced Muslim woman that she would need to pay £2,500 and have sex with him in order for the marriage to be “complete” – at which point he would divorce her.

The man also said he had several other men working with him, one who he claims initially refused to issue a woman a divorce after a halala service was complete.

There is nothing to suggest the man is doing anything illegal. The BBC contacted him after the meeting – he rejects any allegations against him, claiming he has never carried out or been involved in a halala marriage and that the Facebook account he created was for fun, as part of a social experiment.

In her desperation to be reunited with her husband, Farah began trying to find men who were willing to carry out a halala marriage.

“I knew of girls who had gone behind families’ backs and had it done and been used for months,” she says.

“They went to the mosque, there was apparently a designated room where they did this stuff and the imam or whoever offers these services, slept with her and then allowed other men to sleep with her too.”

Khola Hasan
Image captionKhola Hasan says halala services are “abusing vulnerable people”

But the Islamic Sharia Council in East London, which regularly advises women on issues around divorce, strongly condemns halala marriages.

“This is a sham marriage, it is about making money and abusing vulnerable people,” says Khola Hasan from the organisation.

“It’s haram, it’s forbidden. There’s no stronger word I can use. There are other options, like getting help or counselling. We would not allow anyone to go through with that. You do not need halala, no matter what,” she adds.

Farah ultimately decided against getting back with her husband – and the risks of going through a halala marriage. But she warns there are other women out there, like her, who are desperate for a solution.

“Unless you’re in that situation where you’re divorced and feeling the pain I felt, no-one’s going to understand the desperation some women feel.

“If you ask me now, in a sane state, I would never do it. I’m not going to sleep with someone to get back with a man. But at that precise time I was desperate to get back with my ex-partner at any means or measure.”

source: http://www.bbc.com/news/uk-39480846

Hindus were being converted by the missionaries, who lured them with money to change their religion

In Uttar Pradesh, cops halt church prayer after Hindu group alleges conversion

Yogi Adityanath

People inside the church on Friday. Eleven US nationals were also present in the church. (HT Photo)

Police stopped a prayer attended by more than 150 people, including 11 American tourists, at an Uttar Pradesh church on Friday after the right-wing Hindu Yuva Vahini complained that the event was a cover for religious conversion.

The youth group, set up by chief minister Yogi Adityanath in 2002, filed a complaint against Yohannan Adam, the pastor of the church at Dathauli of Maharajganj district.

The organisation accused him of converting Hindus to Christianity, a charge the pastor denied.

“No prior permission was taken before the meeting. We stopped the meet after a complaint was registered. A probe is underway and appropriate action will be taken if the charges are correct,” said police officer Anand Kumar Gupta.

The US tourists were let off after police checked their visas and relevant documents.

“The presence of US nationals indicates that innocent and illiterate Hindus were being converted by the missionaries, who lured them with money to change their religion,” said Krishna Nandan, a Hindu Yuva Vahini leader who surrounded the church with his supporters in the afternoon.

They dispersed after police promised a probe and adequate action, though Nandan was not happy that the Americans were cleared.

The church authorities dismissed the conversion allegations.

“The charges are absolutely baseless. The people were attending a prayer meeting voluntarily. We prayed. Nothing else was done,” pastor Adam said.

The Hindu right wing has been at loggerheads with Christian missionaries, accusing them of converting people through coercion and allurement to their faith.

Several Hindu organisations have conducted ghar wapsi or homecoming of such people, which minority groups say is a couched term for re-conversion.

Earlier this year, Hindu Yuva Vahini activists attacked the Full Gospel Church in Gorakhpur, accusing it of religious conversion.

 source:http://www.hindustantimes.com/india-news/in-gorakhpur-cops-halt-church-prayer-after-hindu-group-alleges-conversion/story-EBbeOl71ckLuIPyQzx3ksL.html

नाइजीरिया में 92 वर्षीय एक मौलवी ने 107 शादियां की जिनमें से 97 बीवियां अभी जिंदा हैं और 185 बच्चे हैं

6 बीवियां, 54 बच्‍चे: जनगणना में 70 साल के हाजी अब्‍दुल निकले सबसे ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करनेवाले पाकिस्‍तानी

हाजी के इन 42 बच्चों में 22 लड़के हैं और 20 लड़कियां हैं।

इनमें हाजी के पोते-पोतियों को जोड़ा जाए तो पूरे परिवार की संख्या 150 बैठती है। (Photo Source: Twitter)

पाकिस्तान में बलूचिस्तान के नोशकी में जनगणना करने पहुंची एक टीम जनगणना के दौरान काफी अचंभित हो गई जब उन्हें पता चला कि एक व्यक्ति अपने 42 बच्चों के साथ रहता है। इस व्यक्ति का नाम हाजी अब्दुल मज़ीद मेंगल है। हाजी पेशे से ड्राइवर है। हाजी की 6 बीवियां हैं। इन बीवियों से उसे 54 बच्चे हुए, जिनमें से 12 की मृत्यु हो गई। हाजी फिलहाल अपनी चार बीवियों के साथ रह रहा है। उसकी दो बीवियों की भी मौत हो चुकी है। हाजी के इन 42 बच्चों में 22 लड़के हैं और 20 लड़कियां हैं। अगर इनमें हाजी के पोते-पोतियों को जोड़ा जाए तो पूरे परिवार की संख्या 150 बैठती है।

इससे पहले क्वेटा के रहने वाले जन मोहम्मद खिलजी के सबसे ज्यादा 36 बच्चे होने के खबर सामने आई थी। वहीं नाइजीरिया में भी ऐसा ही एक मामला पिछले साल देखने को मिला था। यहां रहने वाले 92 वर्षीय एक मौलवी के 185 बच्चे हैं। इस मौलवी ने वैसे तो 107 शादियां की जिनमें से 97 बीवियां अभी जिंदा हैं। ये सभी बच्चे मौलवी की 107 बीवियों के हैं। जब उनसे इस बारे में बात की गई थी तो उन्होंने अपने जवाब में कहा था कि अभी मैं जिन्दा हूं और आगे भी शादी करना जारी रखूंगा। मुस्लिम उलेमा की बात करें तो उनका कहना है कि एक व्यक्ति चार औरतों से शादी कर सकता है, बशर्ते वह सभी का बराबरी रूप से ख्याल रख सके।

आपको बता दें कि पाकिस्तान में दो दशकों के बाद जनगणना का काम शुरू किया गया है। 1998 के बाद से पाकिस्तान में जनगणना का काम नहीं किया गया था। संविधान के मुताबिक प्रत्येक 10 साल में जनगणना कराना जरूरी है। जनगणना के लिए सरकार की सर्व सम्मति होना जरूरी है। इस जनगणना में पहली बार तीसरी श्रेणी में आने वाले लोगों की भी गिनती की जाएगी। पाकिस्तान में यह छठी जनगणना है। इसका आरंभ 15 मार्च से हुआ था। जनगणना अधिकारियों को 25 मई तक पाकिस्तानी नागरिकों की गिनती पूरी करनी है।

source :http://www.jansatta.com/international/pakistani-man-have-42-children-reported-in-census-at-balochistan/292701/

जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

 

 

  • जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

    एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ मुस्लिम महिलाएं तलाक के बाद अपनी शादी बचाने के लिए मोटी रकम देकर ‘हलाला’ विवाह करती हैं. कुछ मुस्लिमों के द्वारा माने जाने वाले ‘हलाला’ परंपरा में तलाक के बाद महिला अगर पहले पति के पास जाना चाहती है तो उसे किसी दूसरे पुरुष से शादी करनी पड़ती है और फिर उसे तलाक देना होता है.

  • जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

     

    बीबीसी लंदन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डिजिटल एज में हलाला सर्विस देने के नाम पर कई ऑनलाइन एकाउंट चल रहे हैं. किसी अजनबी के साथ हलाला विवाह करने के लिए महिलाएं से सर्विस एजेंसी पैसे मांगती है और उस शख्स के साथ उसे सोना भी पड़ता है.

  • जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

    हालांकि, काफी मुस्लिम हलाला को गलत मानते हैं. लंदन के इस्लामिक शरिया काउंसिल भी इस परंपरा का कड़ा विरोध करती है.

  • जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

    हालांकि, काफी मुस्लिम हलाला को गलत मानते हैं. लंदन के इस्लामिक शरिया काउंसिल भी इस परंपरा का कड़ा विरोध करती है.

  • जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं
     

    रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि ऑनलाइन एजेंसी सर्विस देने के लिए महिलाओं से 2 लाख रुपए तक चार्ज करते हैं. ऐसी ही एक सर्विस देने वाले शख्स ने यह भी बताया कि एक बार हलाला होने के बाद एक पुरुष महिला को तलाक देने से इनकार करने लगा.

  • जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

    कई बार हलाला के तहत महिलाओं को कई मर्दों के साथ भी सोना पड़ता है. उनका यौन शोषण भी होता है.

  • जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

    लंदन के इस्लामिक शरिया काउंसिल की खोला हसन कहती हैं कि हलाला पाखंड है. यह सिर्फ पैसा बनाने के लिए किया जाता है.

  • जब मुस्लिम महिलाएं शादी बचाने के लिए अजनबी के साथ सोती हैं

    खोला हसन यह भी कहती हैं कि महिलाओं को इससे बचाने के लिए काउंसिलिंग मुहैया कराई जानी चाहिए.

    source:http://aajtak.intoday.in/gallery/muslim-women-sleep-stranger-save-marriage-4-11853.html