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वे कितने महान् थे!

वे कितने महान् थे!

महात्मा नारायण स्वामीजी महाराज ने अपने जीवन के कुछ नियम बना रखे थे। उनमें से एक यह था कि अपने लिए कभी किसी से कुछ माँगना नहीं। इस नियम पर गृहस्थी नारायणप्रसाद

(महात्माजी का पूर्वनाम) ने कठोरता से आचरण किया। अब उनका ऐसा स्वभाव बन चुका था कि वे किसी अज्ञात व्यक्ति से तुच्छ-से-तुच्छ वस्तु भी लेने से संकोच करते थे।

अपनी इस प्रवृज़ि को ध्यान में रखते हुए महात्माजी ने संन्यास लेते समय कुछ राशि आर्यप्रतिनिधि सभा उ0प्र0 को दान करते हुए दी और यह कहा कि आवश्यकता पड़ने पर वे इस स्थिर-निधि के सूद से कुछ राशि ले सकेंगे। श्री महाशय कृष्णजी ने इस पर आपज़ि की कि यह संन्यास की मर्यादा के विपरीत है। दान की गई राशि से यह ममत्व ज़्यों?

महात्माजी चाहते तो अपने निर्णय का औचित्य सिद्ध करने के लिए दस तर्क दे सकते थे। उनके पक्ष में भी कई विद्वान् लेखनी उठा सकते थे तथापि उस महान् विभूति ने तत्काल पत्रों में ऐसी

घोषणा कर दी कि मैं उस राशि से कभी भी सूद न लूँगा।

आपने महाशय कृष्ण के लेख को उचित ठहराते हुए, अपनी आत्मकथा में इस बात को गिरा हुआ कर्म बताया।1 महात्माजी ने स्वयं लिखा कि उन्होंने जो सूद से राशि लेनेवाली बात सोची थी यह उनकी आत्मा की निर्बलता ही थी। अपने गुण-दोष पर विचार करना और अपनी भूल का सुधार करना, यह आत्मोन्नित का सोपान है।

नारायण स्वामीजी का जीवन इसका एक ज्वलन्त उदाहरण है।

उनकी आत्मीयता

उनकी आत्मीयता

आर्यसमाज फ़तहपुर उज़रप्रदेश का वार्षिक उत्सव था। शीत ऋतु थी। श्री सुरेशचन्द्रजी वेदालंकार का व्याज़्यान सबसे अन्त में था। उन्हें व्याज़्यान से पूर्व ही ठण्डी लगने लगी। व्याज़्यान देते

गये, ज्वर चढ़ता गया। व्याज़्यान की समाप्ति पर मन्त्रीजी ने ओषधियाँ लाकर दे दीं। पण्डित श्री गंगाप्रसादजी उपाध्याय भी आमन्त्रित थे।

वे रात्रि में तीन-चार बार उठ-उठकर वेदालंकारजी का पता करने के लिए उनके कमरे में आये। प्रातः जब तक उन्हें रिज़्शा में बिठाकर विदा न कर लिया तब तक उपाध्यायजी को चैन न आया। यह उपाध्यायजी के अन्तिम दिनों की घटना है। यह थी उनकी आत्मीयता।

संध्या क्या ?,क्यों ?,कैसे ?

संध्या क्या ?,क्यों ?,कैसे ? डा. अशोक आर्य
आर्य समाज की स्थापना से बहुत पूर्व जब से यह जगत् रचा गया है , तब से ही इस जगत् में संध्या करने की परम्परा अनवरत रूप से चल रही है | बीच में एक युग एसा आया जब वेद धर्म से विमुख हो कर कार्यों का प्रचलन आरम्भ हुआ तो संध्या को भी लोग भुलाने लगे किन्तु स्वामी दयानंद सरस्वती जी का हम पर महान् उपकार है , जो हम पुन: वेद धर्म के अनुगामी बने तथा संध्या से न केवल परिचित ही हुए अपितु संध्या करने भी लगे |
संध्या क्या है ?
सृष्टि क्रम में एक निर्धारित समय पर परम पिता परमात्मा का चिंतन करना ही संध्या कहलाता है | इससे स्पष्ट है कि दिन के एक निर्धारित काल में जब हम अपने प्रभु को याद करते हैं , उसका गुणगान करते हैं , उसके समीप बैठ कर उसका कुछ स्मरण करते हैं , बस इस का नाम ही संध्या है |
संध्या कब करें ?
ऊपर बताया गया है कि एक निश्चित समय पर प्रभु स्मरण करना ही संध्या है | यह निश्चित समय कौन सा है ? यह निश्चित समय कालक्रम से सृष्टि बनाते समय ही प्रभु ने निश्चित कर दिया था | यह समय है संधि काल
| संधिकाल से अभिप्राय: है जिस समय दिन व रात का मिलन होता है तथा जिस समय रात और दिन का मिलन होता है , उस समय को संधि काल कहते
हैं | इस से स्पष्ट होता है कि प्रात: के समय जब आकाश मे हल्के हल्के तारे दिखाई दे रहे हों, सूर्य निकलने की तैयारी में हो , इस समय को हम प्रात:कालीन संध्या काल कहते हैं | प्रात:काल का यह समय संध्या का समय माना गया है | इस समय ही संध्या का करना उपयोगी है |
ठीक इस प्रकार ही सायं के समय जब दिन और रात्री का मिलन होने वाला होता है , सूर्य अस्ताचाल की और गमन कर रहा होता है किन्तु अभी तक आधा ही अस्त हुआ होता है | आकाश लालिमा से भर जाता है | इस समय को हम सायं कालीन संध्या समय के नाम से जानते हैं | सायं कालीन संध्या के लिए यह समय ही माना गया है | इस समय ही संध्या के आसन पर बैठ कर हमें संध्या करना चाहिए |
गायत्री जप ही संध्या
वास्तव में गायत्री जप का ही दूसरा नाम संध्या है किन्तु इस गायत्री जप के लिए भी कुछ विधियां बनाई गई है ,जिन्हें करने के पश्चात् ही गायत्री का यह जप आरम्भ किया जाता है | गायत्री जप के लिए भी कुछ लोग यह मानते हैं कि यह जप करते हुए कभी उठना , कभी बैठना तथा कभी एक पाँव पर खडा होना , इस प्रकार के आसन बदलते हुए गायत्री का जप करने को कहा गया है | हम यह सब ठीक नहीं मानते | हमारा मानना है कि गायत्री जप के लिए हम एक स्थिर आसन पर बैठ कर गायत्री मन्त्र का जाप करें | यह विधि ही ठीक है अन्य सब विधियां व्यवस्थित न हो कर ध्यान को भंग करने वाली ही हैं |
संध्या के प्रकार
कुछ लोग कहते हैं कि ब्राह्मण की संध्या भिन्न होती है जबकि ठाकुर लोग कुछ अलग प्रकार की संध्या करते है | इन लोगों ने ऋग्वेदियों की संध्या अलग बना ली है तो सामवेदियों की संध्या कुछ भिन्न ही बना ली है | यह सब विचारशून्य लोग ही कर सकते हैं | परमपिता परमात्मा सब के लिए एक ही उपदेश करता है , सब के लिए उसका आशीर्वाद भी एक ही प्रकार का है तो फिर संध्या अलग अलग कैसे हो सकती है ? अत: संध्या के सब मन्त्र सब समुदायों , सब वर्गों तथा सब जातियों के लिए एक ही हैं |
जाप के पूर्व शुद्धि
ऊपर बताया गया है कि गायत्री जाप का नाम ही संध्या है किन्तु इस जाप से पूर्व शुद्धि का भी विधान दिया गया है | प्रभु उपदेश करते हैं कि हे जीव ! यदि तू मुझे मिलने के लिए संध्या के आसन पर आ रहा है तो यह ध्यान रख कि तूं शुद्ध पवित्र हो कर इस आसन पर बैठ | इस शुद्धि के लिए शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धि, चित और अहंकार , यह छ: प्रकार की शुद्धि आवश्यक है | इस निमित आचमन से शरीर की शुद्धि , अंग स्पर्श से सब अंगों की शुद्धि, मार्जन से इन्द्रियों की शुद्धि, प्राणायाम से मन की शुद्धि, अघमर्षण से बुद्धि की शुद्धि ,मनसा परिक्रमा से चित की शुद्धि तथा उपस्थान से अहंकार की शुद्धि की जानी चाहिए |
शुद्धि कैसे ?
अब प्रश्न उठता है की यह शुद्धि कैसे की जावे ? इस के लिए बताया गया है कि हम प्रतिदिन दो काल स्नान करके अपने शरीर को शुद्ध करें | अपने अन्दर को शुद्ध करने के लिए राग, द्वेष, असत्य आदि दुरितों को त्याग दें | कुशा व हाथ से मार्जन करें | ओ३म् का उच्चारण करते हुए तीन बार लंबा श्वास लें तथा छोड़ें , यह प्राणायाम है | सब से अंत में गायत्री का गायन करते हुए शिखा को बांधें |

इस प्रकार यह पांच क्रियाएं करके मन व आत्मा को शांत स्थिति में लाया जावे | यह शांत स्थिति बनाने के पश्चात् संध्या के लिए छ: अनुष्ठान किया जावें ,जो इस प्रकार हैं :
संध्या के लिए छ: अनुष्ठान
१. शरीर को असत्य से दूर
शरीर को असत्य से दूर करने के लिए संध्या में बताये गए प्रथम मन्त्र ओ३म् शन्नो देवी रभिष्टये आपो भवन्तु पीतये शंयो राभिस्रवंतु न: का उच्चारण करने के पश्चात् तीन आचमन करें |
२. मार्जन पूर्वक इन्द्रियों की शुद्धि
ओ३म् वाक् वाक् ओ३म प्राण: प्राण: आदि मन्त्र से अंगों की शुद्धि करें | ओ३म भू: पुनातु शिरसि आदि मन्त्र से प्रभु के नामों का अर्थ करते हुए मार्जन पूर्वक इन्द्रियों की शुद्धि करें |
३. प्राणायाम से मन शांत
कम से कम तीन तथा अधिक से अधिक ग्यारह प्राणायाम कर अपने मन को शांत करें |
४. बुद्धि की शुद्धि तथा बोले मन्त्रों के अर्थ चिंतन
ओ३म् ऋतं च आदि इन तीन मन्त्रों से अपनी बुद्धि को समझाते हुए शुद्ध करें तथा पुन: शन्नो देवी मन्त्र को बोलते हुए अब तक जो मन्त्र हमने बोले हैं , उन सब के अर्थ को देखें तथा अर्थों पर चिंतन करें |
५. चित को सुव्यवस्थित करें
ओ३म् प्राची दिग अग्नि आदि इन छ: मन्त्रों का गायन करते हुए अपने चित को सुव्यवस्थित करें |
६. अहंकार तत्व
ओ३म् उद्वयं से ले कर ताच्च्क्शुर्देवहितं तक के मंत्रों का गायन करते हुए अहंकार तत्व से अपनी स्थिति का सम्पादन करें |
प्रधान जप
यह छ: अनुष्ठान करने के पश्चात् हम इस स्थिति में आ जाते हैं की अब हम प्रधान जप अर्थात गायत्री का जाप कर सकें | अत: अब हम गायत्री का जप करते हैं |
समर्पण
गायत्री का जप करते हुए हम स्वयं को उस पिता के पास पूरी तरह से समर्पित करने के लिए बोलते हैं , हे इश्वर दयानिधे भवत्क्रिप्यानेण जपोपास्नादि कर्मणा धर्मार्थ का मोक्षानाम सद्यसिद्धिर्भवेण | इस प्रकार हम समग्रतया उस प्रभु को समर्पित हो जाते हैं |
नमस्कार
अंत में हम उस परमात्मा को नमस्ते करते हुए अपने आज के कर्तव्य को पूर्ण करते हुए संध्या का यह अनुष्ठान पूर्ण करते हैं |
जाप की विधि
गायत्री का जाप एक आसन पर बैठ कर ऊँचे उच्चारण से किया जावे |
ध्यान के समय मौन जाप की प्रथा है किन्तु अकेले में जाप करते समय ऊँचे स्वर से किया जाता है | कुछ लोग मौन जाप का कहते है तो कुछ उच्च स्वर में जबकि कुछ का मानना है कि यह जाप इतनी मद्धम स्वर में किया जावे कि मुख से निकला शब्द केवल अपने कान तक ही जावे | इस सम्बन्ध में स्वामी जी ने संस्कार विधि में मौन जाप का विधान ही दिया है |
हम संध्या करते समय यह सब ध्यान में रखते हुए ऊपर बताये अनुसार ही संध्या करें तो उपयोगी होगा |
डा. अशोक आर्य

झट क्षमा माँग-ली

झट क्षमा माँग-ली

जब दयानन्द मठ की स्थापना का विचार स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी के मन में आया तो आपने आर्य-पत्रों में अपनी योजना रखी।

इस पर अनेक आर्य नेताओं व विद्वानों ने जहाँ आपके विचारों का समर्थन किया, वहाँ कुछ एक ने विरोध में भी लेख दिये। ऐसे लोगों में एक थे स्वर्गीय श्री पण्डित भीमसेनजी विद्यालंकार। आप तब पंजाब सभा के मन्त्री थे। सभा के पत्र में आपका एक लेख दयानन्द मठ के विषय पर छपा।

स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी तब सार्वदेशिक सभा के कार्यकर्ज़ा प्रधान थे। आपने पण्डित भीमसेनजी के लेख का उज़र देते हुए एक लेख में लिखा-सभा मन्त्रीजी ऐसा लिखते हैं आदि आदि। इस

पर पण्डित भीमसेनजी का लेख छपा कि ये मेरे निजी विचार थे।

मैंने सभामन्त्री के रूप में ऐसा नहीं लिखा। ज़्या स्वामीजी के लेख को मैं सार्वदेशिक के कार्यकर्ज़ा प्रधान का लेख जानूँ? पण्डितजी ने स्वामीजी के लेख पर इस आधार पर बड़ी आपज़ि की।

श्रीस्वामी ने इस पर एक और लेख दिया। उसमें आपने लिखा कि चूँकि लेख सज़्पादकीय के पृष्ठ पर छपा था-जिस पृष्ठ पर सभामन्त्री के नाते वे यदा-कदा लिखा करते थे, अतः मैंने इसे

सभामन्त्री का लेख जाना। मेरा जो भी लेख सार्वदेशिक के अधिकारी के रूप में होगा, उसके नीचे मैं कार्यकर्ज़ा प्रधान लिखूँगा।

मैंने पण्डितजी के लेख को सभामन्त्री का लेख समझा, यह मेरी भूल थी। इसलिए मैं पण्डितजी से क्षमा माँगता हूँ।

कितने विशाल हृदय के थे हमारे महापुरुष। उनके बड़ह्रश्वपन का परिचय उनके पद न थे अपितु उनका व्यवहार था। वे पदों के कारण ऊँचे नहीं उठे, उनके कारण उनके पदों की शोभा थी।

मुस्लिम स्कूल की लाइब्रेरी में रखी किताबों की सीख: पति चाहे तो पत्नी के साथ करे मार-पीट

मुस्लिम स्कूल की लाइब्रेरी में रखी किताबों की सीख: पति चाहे तो पत्नी के साथ करे मार-पीट

british government to take control of the muslim school where library books says husbands are allowed to beat their wives

सांकेतिक तस्वीर…
लंदन
ब्रिटेन में प्रशासन द्वारा दिए जाने वाले फंड से चल रहे एक मुस्लिम स्कूल को सरकार अपने नियंत्रण में लेने जा रही है। एक सरकारी टीम ने स्कूल के पुस्तकालय में रखी किताबों का निरीक्षण किया था। यहां कुछ ऐसी किताबें पाई गईं, जिनके मुताबिक पति चाहे तो अपनी पत्नी को पीट सकता है। किताब में बताया गया है कि पतियों को अपनी पत्नियों के साथ मार-पीट करने की इजाजत होती है। इतना ही नहीं, वह चाहे तो जबरन अपनी पत्नी के साथ सेक्स भी कर सकता है।

इस निरीक्षण के बाद जांच दल ने जून में अपनी रिपोर्ट संबंधित सरकारी विभाग को सौंप दी। रिपोर्ट में स्कूल को अयोग्य बताया गया है। इसी स्कूल में कुछ दिनों पहले एक 9 साल के छात्र की मौत हो गई थी। बच्चे को किसी किस्म का अलर्जिक रिऐक्शन हुआ और वह स्कूल में ही बेहोश हो गया। बाद में बच्चे को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उसे नहीं बचा पाए। जांच दल का कहना है कि यहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं स्कूल में पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं।

यह स्कूल फिलहाल अदालत में एक कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है। स्कूल अपने यहां पढ़ने वाले छात्रों और छात्राओं के पढ़ने की व्यवस्था अलग-अलद करने के पक्ष में है। उसका कहना है कि लड़के और लड़कियों को साथ नहीं पढ़ना चाहिए, बल्कि दोनों को पढ़ाने का इंतजाम अलग-अलग किए जाने की छूट मिलनी चाहिए। वहीं सरकारी शिक्षा विभाग ऐसी व्यवस्था के पक्ष में नहीं है। हालांकि इससे पहले नवंबर में हाई कोर्ट ने स्कूल के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन विभाग ने इस निर्णय के खिलाफ अपील की है।

source :  http://navbharattimes.indiatimes.com/world/britain/british-government-to-take-control-of-the-muslim-school-where-library-books-says-husbands-are-allowed-to-beat-their-wives/articleshow/59626175.cms

वे ऐसे व्यक्ति थे

वे ऐसे व्यक्ति थे

1908 की घटना होगी। पंजाब विश्वविद्यालय सेनिट के चुनाव हुए। डी0ए0वी0 कॉलेज लाहौर के प्राचार्य महात्मा हंसराजजी को भी प्रबन्ध समिति ने चुनाव के अखाड़े में उतरने के लिए कहा।

वे पहले भी सेनिट के सदस्य थे। उन्होंने चुनाव लड़ा, परन्तु सेनिट के चुनाव में हार गये।

उन दिनों डी0ए0वी0 कॉलेज की एक पत्रिका निकला करती थी। उसमें कॉलेज के समाचार भी छपा करते थे। एक समाचार यह भी छपा कि कॉलेज के प्राचार्य हंसराज चुनाव हार गये हैं।

पाठकवृन्द! ज़्या आज कोई छोटा-बड़ा व्यक्ति चुनाव हार जाने पर अपनी ही पत्रिका में ऐसा समाचार देने का नैतिक साहस दिखा सकता है? आज तो शिक्षा-व्यापार जगत् के इन लोगों से ऐसी आशा नहीं की जा सकती।

महापुरुषों की रीति

महापुरुषों की रीति

सार्वदेशिक सभा की बैठक थी। महात्मा नारायण स्वामीजी प्रधान थे। पण्डित चमूपति जी महाराज उठकर कुछ बोले। महात्माजी आवेश में थे। बोले-‘‘बैठ जाओ, तुज़्हें कुछ पता नहीं।’’

आचार्य प्रवर पण्डित चमूपति चुपचाप बैठ गये। बैठक समाप्त हुई। महात्माजी एक ऊँचे साधक थे। उनके मन में विचार आया कि उनसे कितनी भयङ्कर भूल हुई है। आचार्य चमूपति सरीखे

अद्वितीय मेधावी विद्वान् को यह ज़्या कह दिया?

महात्माजी आचार्यजी के पास गये। नम्रता से कहा- ‘‘पण्डितजी मुझसे बड़ी भूल हुई। मैं आवेश में था। सभा-सञ्चालन में कई बार ऐसा हो ही जाता है। मैंने आवेश में आकर कह दिया-

‘‘तुज़्हें कुछ पता नहीं या तुज़्हें ज़्या आता है।’’

आचार्य प्रवर चमूपति बोले, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं, आपने ठीक ही कहा। आपको कहने का अधिकार है। आप हमारे ज्ञानवृद्ध, वयोवृद्ध, महात्मा व त्यागी-तपस्वी नेता हैं।’’

दोनों महापुरुषों में इस प्रकार की बातचीत हुई। पाठकगण! इस घटना पर गज़्भीरता से विचार करें। दोनों महापुरुषों की बड़ह्रश्वपन व नम्रता से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। सङ्गठन की सुदृढ़ता के लिए ऐसे सद्भावों का होना आवश्यक है। आचार्य चमूपतिजी ने ही ‘सोम-सरोवर’ ग्रन्थरत्न में लिखा है कि संशय में बिखेरने की शक्ति तो है, जोड़ने व पिरोने की नहीं। आज अहं के कारण, पदलालसा व सन्देह के कारण कितने व्यक्ति हमारे सङ्गठन को बिखेरने

में लगे हुए हैं। आइए, जोड़ने की कला सीखें।

गृहस्थ ने मुझे छोड़ दिया

गृहस्थ ने मुझे छोड़ दिया

मुझे अच्छी प्रकार से याद है कि 1949 ई0 में मैंने पूज्य महात्मा नारायण स्वामीजी की जीवनी (आत्मकथा) में यह पढ़ा था कि महात्माजी को अपनी विधवा माता के आग्रह पर बचपन में

विवाह की स्वीकृति देनी पड़ी। पन्द्रह वर्ष की आयु में नारायणप्रसाद (नारायण स्वामीजी का पूर्व नाम) गृहस्थी बन गये, परन्तु पत्नी को पाँच वर्ष तक मायके में ही रज़्खा। बीस वर्ष के हो गये तो पत्नी उनके पास आ गई।

महात्माजी ने आत्म-चिन्तन करते हुए निश्चय किया कि पाँच वर्ष पहले गृहस्थी बना हूँ तो दस वर्ष पूर्व अर्थात् चालीस वर्ष की अवस्था में गृहस्थ छोड़ दूँगा। जब नारायणप्रसाद चालीस वर्ष के

हुए तो उनकी पत्नी का देहान्त हो गया। आपने स्वेच्छा से गृहस्थ को अभी छोड़ा नहीं था।

महात्माजी ने स्वयं आत्मकथा में लिखा है कि मैंने गृहस्थ को नहीं छोड़ा, गृहस्थ ने स्वयं मुझे छोड़ दिया। इस प्रकार मेरा पुराना संकल्प अपने-आप पूरा हो गया। शज़्द चाहे कुछ भी लिखे हों,

परन्तु भाव यही है।

कितने सत्यनिष्ठ थे वे लोग! कैसी सरलता से अपनी मनःस्थिति का वर्णन किया है। अपने इसी शुद्ध धर्मज़ाव से वे ऊँचे उठते गये।

एक आपबीती

एक आपबीती

मैं स्कूल का अध्यापक था। मेरे लेखों के कारण तथा सामाजिक गतिविधियों के कारण आर्यजगत् के बहुत लोग मुझे जानते थे। हिन्दी सत्याग्रह के पश्चात् मैं स्कूल छोड़कर दयानन्द कॉलेज हिसार की एम0ए0 कक्षा में प्रविष्ट हो गया। कॉलेज के प्राचार्य थे

प्रिं0 ज्ञानचन्द्रजी (स्वामी मुनीश्वरानन्दजी) हिसारवाले। वे यदा-कदा मुझे व्याज़्यान तथा प्रचार के लिए भी, कभी कहीं जाने को कह देते। कॉलेज में प्रविष्ट हुए एक-दो सप्ताह ही बीते कि उन्होंने आर्यसमाज, माडल टाउन के साप्ताहिक सत्संग में मेरा व्याज़्यान रख दिया। वे स्वयं माडल टाऊन में ही रहते थे।

व्याज़्यान से वे प्रभावित हुए। सत्संग के पश्चात् मुझे अपने घर पर भोजन के लिए कहा। मैं उनके साथ चला गया।

वे स्वयं मुझे भोजन करवाने लगे। मैंने कहा कि आप भी बैठिए। मेरे बहुत कहने पर भी प्रिंसिपल साहब न माने। घर पर सेवक भी था। उसे भी भोजन न लाने दिया। स्वयं ही परोसने लगे।

मुझे प्रतिष्ठित अतिथि बनाकर एक ओर बैठकर आर्यसमाज विषयक चर्चाएँ करते रहे। मैं इस दृश्य को कभी नहीं भूल पाता।

Mohammad Shami trolled on Twitter for sharing ‘Un-Islamic’ picture of daughter’s birthday

The attack happened two days after Irfan Pathan was trolled on social media

India pacer Mohammad Shami has once again become a victim of social media trolling after he posted pictures of his wife during their daughter’s second birthday celebrations.

The cricketer was trolled as many felt that his wife Hasin Jahan committed a “sin” by not wearing a hijab during the birthday celebrations.

“Sad to see your wife without hijab. my dear shami sir do not look at the smallness of the sin, rather look at the one whom you are disobeying,” Sharun Km from Kunnamkulam posted with a hashtag #GoToHell.

Syed Akhtar from Beijing wrote: “Do you want to please right wings by not wearing hijab nd celebrating birthday.”

Mohammad Tahir Faisal from Patna tweeted: “Drown in shame… Are you Muslim, I don’t think so you’re Muslim…Islam can’t allow you to celebrate Birthday in that fashion.”

However, the fast bowler’s fans came out in strong support of him.

“Sad to see insects like you crawl out of the gutter,” Prajay Basu from Mumbai posted.

Bhagya Teja of Bengaluru asked: “When will you’re petty mindset change?”

The trolling on social network came a day after Jadavpur police arrested three youths for allegedly attacking Shami late on July 22 when he was returning home to Katju Nagar, behind South City Mall.

Police have beefed up security in the area.

“Police patrol and officer of anti-rowdy section have been asked to patrol the area and the road in front of his apartment to prevent any untoward incident,” an officer at the Jadavpur Police Station told PTI.

This was not the first time that Shami found himself at the receiving end of social media beamers for his wife’s choice of clothes. He faced similar trolling during Christmas celebrations last year.

At that time, Shami uploaded some family pictures of his wife and daughter in western outfits.

The Twitter attack on Shami happens two days after all-rounder Irfan Pathan also faced similar social media ire after he posted an “un-Islamic” photograph with his wife wearing nail polish.

source: http://www.dnaindia.com/cricket/report-mohammad-shami-trolled-on-twitter-for-sharing-un-islamic-picture-of-daughter-s-birthday-2507328